पाठ – 13
नए इलाके में, खुशबू रचते हैं हाथ
In this post we have given the detailed notes of Class 9 Hindi chapter 13 नए इलाके में, खुशबू रचते हैं हाथ These notes are useful for the students who are going to appear in Class 9 board exams
इस पोस्ट में कक्षा 9 के हिंदी के पाठ 13 नए इलाके में, खुशबू रचते हैं हाथ के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 9 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 9 |
Subject | Hindi (स्पर्श) |
Chapter no. | Chapter 13 |
Chapter Name | नए इलाके में, खुशबू रचते हैं हाथ |
Category | Class 9 Hindi Notes |
Medium | Hindi |
पाठ 13 नए इलाके में, खुशबू रचते हैं हाथ
-अरुण कमल
सारांश
भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने शहर में हो रहे अंधा-धुंध निर्माण के बारे में बताया है। रोज कुछ न कुछ बदल ही रहा है। आज अगर कुछ टूटा हुआ है, या कहीं कोई खाली मैदान है, तो कल वहाँ बहुत ही बड़ा मकान बन चुका होगा। नए-नए मकान बनने के कारण रोज नए-नए इलाके भी बन जा रहे हैं। जहाँ पहले सुनसान रास्ता हुआ करता था। आज वहाँ काफी लोग रहने लगे हैं और चहल-पहल दिखने लगी है। यही कारण है कि लेखक को रास्ते पहचानने में तकलीफ़ होती है और वह अक्सर रास्ता भूल जाता है।
धोखा दे जाते हैं पुराने निशान
खोजता हूँ ताकता पीपल का पेड़
खोजता हूँ ढ़हा हुआ घर
और ज़मीन का खाली टुकड़ा जहाँ से बाएँ
मुड़ना था मुझे
फिर दो मकान बाद बिना रंगवाले लोहे के फाटक का
घर था एकमंज़िला
भावार्थ : इन पंक्तियों में लेखक हमें अपने रास्ते भूल जाने का कारण बताते हैं। लेखक ने जिस घर, जिस मैदान और जिस फाटक को अपने लिए चिन्ह बनाकर रखा था। जिन्हें देख कर उन्हें यह पता चलता था कि वह सही रास्ते पर चल रहे हैं, उन चिन्हों में से अब कोई भी अपनी जगह पर नहीं है। अब लेखक के खोजने के बाद भी उन्हें पुराना पीपल का पेड़ नहीं दिखाई देता है और ना ही अब उन्हें टूटा हुआ घर दिखता है, जिसे देख कर वे रास्ता पहचानते थे। ना ही अब उन्हें वह खाली ज़मीन कहीं दिखाई दे रही है, जहाँ से लेखक को बांये मुड़ना होता था। उसके बाद ही तो उनका जाना-पहचाना एक बिना रंग के लोहे के फाटक वाला एक मंजिला घर था।
और मैं हर बार एक घर पीछे
चल देता हूँ
या दो घर आगे ठकमकाता
भावार्थ : इन्हीं कारणों की वजह से लेखक हमेशा रास्ता भटक जाता है। वह कभी भी सही ठिकाने तक नहीं पहुँच पाता। या तो वह एक-दो घर आगे निकल जाता है या फिर एक-दो घर पहले ही रुक जाता है।
यहाँ रोज़ कुछ बन रहा है
रोज़ कुछ घट रहा है
यहाँ स्मृति का भरोसा नहीं
भावार्थ : यहाँ रोज कुछ न कुछ बन रहा है। किसी न किसी इमारत का निर्माण हो रहा है। जिसकी वजह से आप अपने रास्ते को पहचानने के लिए किसी इमारत या पेड़ को स्मृति नहीं बना सकते। क्या पता कल उसकी जगह पर कुछ और बन जाए और आप रास्ता भटक जाएं।
एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है दुनिया
जैसे वसंत का गया पतझड़ को लौटा हूँ
जैसे बैसाख का गया भादों को लौटा हूँ
अब यही है उपाय कि हर दरवाज़ा खटखटाओ
और पूछो – क्या यही है वो घर?
भावार्थ : कवि ने शीघ्र होते हुए परिवर्तन के बारे में बताया है। ऐसा नहीं है कि कवि बहुत समय के बाद यहाँ लौटा है, इसलिए उसे सब बदला हुआ प्रतीत हो रहा है। ऐसा नहीं है कि वह वसंत के बाद पतझड़ को लौटा है, ऐसा नहीं है कि वह वैसाख को गया और भादों को लौटा है। वह तो कुछ ही दिनों में वापस आया, लेकिन फिर भी उसे सब बदला हुआ दिख रहा है और वह अपना घर भी नहीं पहचान पा रहा। अब तो एक उपाय यही है कि कवि हर घर में खट-खटाये और पूछे की क्या यही वह घर है?
समय बहुत कम है तुम्हारे पास
आ चला पानी ढ़हा आ रहा अकास
शायद पुकार ले कोई पहचाना ऊपर से देखकर।
भावार्थ : भटक जाने के कारण कवि अभी तक घर नहीं ढूंढ पाया है और अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि बारिश भी होने वाली है। कवि के पास समय बहुत ही कम है। अब तो कवि इसी आस में बैठा है कि काश कोई जान-पहचान का व्यक्ति उन्हें देखकर पहचान ले।
कई गलियों के बीच
कई नालों के पार
कूड़े-करकट
के ढ़ेरों के बाद
बदबू से फटते जाते इस
टोले के अंदर
खुशबू रचते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ।
भावार्थ : कवि ने अपनी इन पंक्तियों में जीवन के कठोर यर्थाथ को दर्शाया है। जिस प्रकार कमल कीचड़ में ही खिलते हैं, उसी प्रकार कवि ने बताया है कि वातावरण को सुगन्धित कर देने वाली अगरबत्ती गंदी झुग्गी एवं झोपड़ियों में बनायी जाती है। ऐसी बस्तियाँ जहाँ से गंदे नाले निकलते हैं। जहाँ पर कूड़े-करकट का ढेर लगा होता है। बदबू से भरी गंदी बस्तियों में रहने वाले लोग ही खुशबूदार अगरबत्ती बनाते हैं। इसीलिए कवि ने इस कविता में कहा है “ख़ुशबू रचते हैं हाथ”।
उभरी नसोंवाले हाथ
घिसे नाखूनोंवाले हाथ
पीपल के पत्ते-से नए-नए हाथ
जूही की डाल-से खुशबूदार हाथ
गंदे कटे-पिटे हाथ
ज़ख्म से फटे हुए हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ।
भावार्थ : अगरबत्ती बनाते-बनाते अधिकतर कारीगरों के हाथ घायल हो गए हैं। किसी कारीगर के हाथों की नसें उभरी हुई दिख रही हैं, तो किसी के नाख़ून अगरबत्ती बनाते-बनाते घिस गए हैं। वहीं दूसरी ओर नए-नए बच्चे जिन्होंने अभी-अभी अगरबत्ती बनाना शुरू किया है, उनके हाथ पीपल के पत्ते की तरह बहुत ही मुलायम और नाज़ुक प्रतीत होते हैं। उन्हीं बच्चों में से कुछ लड़कियों के हाथ तो जूही की डाल की तरह पतले हैं। बहुत दिनों से काम करते हुए कई कारीगरों के हाथ कट-फट चुके हैं। उनके ज़ख्म भी गंदगी से भरे हुए हैं। ऐसे हाथ ही हमारे घर में खुशबू फ़ैलाने वाली सुगंधित अगरबत्तियों का निर्माण करते हैं।
यहीं इस गली में बनती हैं
मुल्क की मशहूर अगरबत्तियाँ
इन्हीं गंदे मुहल्लों के गंदे लोग
बनाते हैं केवड़ा गुलाब खस और रातरानी
अगरबत्तियाँ
दुनिया की सारी गंदगी के बीच
दुनिया की सारी खुशबू
रचते रहते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ।
भावार्थ : प्रस्तुतु पंक्तियों में कवि ने हमें यही बताया है कि शहर के बड़े से बड़े घरों में जलने वाली खुशबूदार अगरबत्तियाँ इन्हीं गंदी बस्तियों की झुग्गियों में बनती हैं। जहाँ पर हमेशा बदबू भरी रहती है। चाहे कोई भी मशहूर अगरबत्ती हो, जैसे केवड़ा, गुलाब या रातरानी सभी यहीं इस गंदी बस्ती में रहने वाले गंदे लोगों के गंदे हाथों से बनाई जाती हैं। ये लोग खुद तो इतनी गंदगी एवं बदबू के बीच में रहते हैं, लेकिन दूसरों के घर को महकाने के लिए खुशबूदार अगरबत्तियों का निर्माण करते हैं। इसीलिए लेखक ने कहा है “सारी गन्दगी के बीच भी खुशबू रचते हैं हाथ”।
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