ऊत्तक Notes || Class 9 Science Chapter 6 in Hindi ||

पाठ – 6

ऊत्तक

In this post we have given the detailed notes of class 9 Science chapter 6 Tissues in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 9 board exams.

इस पोस्ट में कक्षा 9 के विज्ञान के पाठ 6 ऊत्तक  के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 9 में है एवं विज्ञान विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board, CGBSE Board, MPBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 9
SubjectScience
Chapter no.Chapter 6
Chapter Nameऊत्तक (Tissues)
CategoryClass 9 Science Notes in Hindi
MediumHindi
Class 9 Science Chapter 6 ऊत्तक Notes in Hindi

पाठ 6 ऊत्तक

पादप उत्तक

एक ही प्रकार की संरचना और कार्य करने वाले कोशिकाओं के समूह को उत्तक कहते हैं|

मुख्य बिंदु:

  • एक कोशिकीय जीवों में, सभी मौलिक कार्य एक ही कोशिका द्वारा किये जाते  हैं| उदाहरण के लिए अमीबा में एक ही कोशिका द्वारा गति, भोजन लेने की क्रिया, श्वसन क्रिया और उत्सर्जन क्रिया संपन्न की जाती है|
  • बहुकोशिकीय जीवों में लाखों कोशिकाएँ होती हैं| इनमें से अधिकतर कोशिकाएँ कुछ ही कार्यों को संपन्न करने में सक्षम होती  हैं| इन जीवों में भिन्न-भिन्न कार्यों को करने के लिए भिन्न-भिन्न कोशिकाओं का समूह होता हैं|
  • बहुकोशिकीय जीवों में श्रम विभाजन होता हैं|
  • शरीर के अन्दर ऐसी कोशिकाएँ जो एक तरह के कार्यों को करने में दक्ष होती है, सदैव एक समूह में होती हैं|
  • एक ही संरचना वाले कोशिकाओं का वह समूह जो शरीर के किसी निश्चित स्थान विशिष्ट कार्य करते है उत्तक कहलाते हैं|

मनुष्य में:

मांसपेशिय कोशिकाएँ: इसके संकुचन एवं प्रसार से शरीर  में गति होती है|

तंत्रिका कोशिकाएँ: यह संवेदनाओं को मस्तिष्क तक पहुँचाता है और मस्तिष्क से संदेशों को शरीर के एनी भागों तक लाता हैं|

रक्त कोशिकाएँ: यह ऑक्सीजन, भोजन, हारमोंस तथा अपशिष्ट पदार्थों का वहन करता हैं|

पौधों में:

संवहन उतक भोजन एवं जल का चालन पौधे के एक भाग से दुसरे भाग तक करते हैं|

उत्तक (Tissue): एक ही प्रकार की संरचना और कार्य करने वाले कोशिकाओं के समूह को उत्तक कहते हैं|

पादप उतक (Plant Tissues):

(i)  पौधे स्थिर होते हैं – वे गति नहीं करते हैं| क्योंकि ये अपना भोजन एक स्थान पर स्थिर रह के ही प्रकाशसंश्लेषण की क्रिया द्वारा प्राप्त कर लेते हैं|

(ii) उनके अधिकांश उतक सहारा देने वाले होते है तथा पौधों को संरचनात्मक शक्ति प्रदान करते हैं|

(iii) अधिकांश पादप ऊतक मृत होते हैं| ये मृत ऊतक जीवित उतकों के समान ही यांत्रिक शक्ति प्रदान करते हैं तथा उन्हें कम अनुरक्षण की आवश्यकता होती है|

(iv) पौधों में वृद्धि कुछ क्षेत्रों में ही सिमित रहती है|

(v) पौधों में कुछ ऊतक जीवन भर विभाजित होते रहते हैं| ये ऊतक पौधों के कुछ निश्चित भाग में ही होते है| जो ऊतक के विभाजित होने के क्षमता पर आधारित होता है| विभिन्न प्रकार के पादप उतकों को वृद्धि या विभोज्योतक ऊतक और स्थायी ऊतक के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है|

जंतु ऊतक (Animal Tissues):

(i) दूसरी ओर जंतु भोजन, जोड़ी, और आवास की तलाश में चारों ओर धूमते हैं|

(ii) पौधों के तुलना में जंतु अधिक ऊर्जा खर्च करते है|

(iii) उतकों का अधिकांश भाग जीवित होता है|

(iv) जंतुओं में कोशिकाओं की वृद्धि एकसमान होती है| इसलिए इनमें विभाज्य और अविभाज्य क्षेत्रों की कोई निश्चित सीमा नहीं होती है|

पादपों में उतकों के प्रकार (Type of Plant Tissue):

(1) विभज्योतक ऊतक (MERISTEMATIC TISSUE):

पौधों की वृद्धि केवल उनके कुछ निश्चित एवं  विशेष भागों में ही होता है| ऐसा विभाजित होने वाले उतकों के कारण ही होता है ऐसे विभाजित होने वाले ऊतक पौधों के वृद्धि वाले भागों में ही स्थित होते है| इस प्रकार के  ऊतक को विभज्योतक ऊतक कहते है|  

विभज्योतक ऊतक का वर्गीकरण (Classification of Meristematic Tissue):

(A) शीर्षस्थ विभज्योतक (Apical Meristem): शीर्षस्थ विभज्योतक पौधों के जड़ एवं तनों के वृद्धि वाले भाग में विद्यमान रहता है तथा यह उनकी लंबाई में वृद्धि करता है|  

(B) पार्श्व विभज्योतक (Lateral Meristem): तने की परिधि या मूल में वृद्धि पार्श्व विभज्योतक के कारण होती है|

(C) अंतर्विष्ट विभज्योतक (Intercalary meristem): यह पत्तियों के आधार में या टहनी के पर्व (internode) के दोनों ओर उपस्थित होते हैं|

विभज्योतक ऊतक के गुण (Properties Of Meristematic Tissue):

(i) इस ऊतक की कोशिकाएँ अत्यधिक क्रियाशील होती हैं|

(ii) उनके पास बहुत अधिक कोशिका द्रव्य, पतली कोशिका भित्ति और स्पष्ट केन्द्रक होते हैं|

(iii) उनके पास रस्धानियाँ नहीं होती है|

(2) स्थायी ऊतक (PERMANENT TISSUE):

विभज्योतक ऊतक वृद्धि कर आगे एक विशिष्ट कार्य करती हैं और विभाजित होने की शक्ति खो देती है जिसके फलस्वरूप वे स्थायी ऊतक का निर्माण करती हैं|

विभज्योतक की कोशिकाएँ विभाजित होकर विभिन्न प्रकार के स्थायी उतकों का निर्माण करती हैं|

परिभाषा: कोशिकाएँ जो विभेदित होकर विशिष्ट कार्य करती है और आगे विभाजित होने की शक्ति खो देती हैं इस प्रकार की ऊतक को स्थायी ऊतक कहते हैं|

विभेदीकरण (Differentiation): उतकों द्वारा विशिष्ट कार्य करने के लिए स्थायी रूप और आकार लेने की क्रिया को विभेदीकरण कहते हैं|

स्थायी ऊतक के प्रकार (Type of permanent tissue):

(A) सरल स्थायी ऊतक (Simple permanent tissue):

ये एक ही प्रकार के कोशिकाओं से बने होते हैं जो एक जैसे दिखाई देते हैं इस प्रकार के ऊतक को सरल स्थायी ऊतक कहते हैं|

उदाहरण: पैरेंकाइमा, कोलेन्काईमा और स्केरेन्काइमा आदि|

सरल स्थायी ऊतक के प्रकार (Type of simple permanent tissues):

(1) पैरेंकाइमा (Parenchyma): वे सरल स्थायी ऊतक जिसके कोशिकाओं की कुछ परतें आधारीय पैकिंग का निर्माण करती हैं| इन्हें पैरेंकाइमा ऊतक कहते हैं|

गुण (Features):

(i)  यह पतली कोशिका भित्ति वाली सरल कोशिकाओं का बना होता है|

(ii) ये जीवित कोशिकाएँ होती है|

(iii) ये प्राय: बंधन मुक्त होती हैं|

(iv) इस प्रकार के ऊतक की कोशिकाओं के माध्य काफी रिक्त स्थान पाया जाता है|

(v) यह ऊतक भोजन का भण्डारण करता है और पौधों को सहायता प्रदान करता है|

(vi) जड़ एवं तनों की पैरेंकाइमा पोषक तत्व और जल का भी भण्डारण करती हैं|

पैरेंकाइमा ऊतक के प्रकार:

(i) क्लोरेन्काइमा (Chlorenchyma): कुछ अन्य पैरेंकाइमा जिनमें क्लोरोफिल पाया जाता है और ये प्रकाशसंश्लेषण की क्रिया करती हैं ऐसे पैरेंकाइमा को क्लोरेन्काइमा कहते हैं|

(ii) एरेनकाईमा (Aerenchyma): जलीय पौधों में पैरेंकाइमा  की कोशिकाओं के मध्य हवा की बड़ी गुहिकाएँ (cavities) होती हैं, जो पौधों को तैरने के लिए उत्प्लावन बल (Buoyancy) प्रदान करती हैं| इस प्रकार के पैरेंकाइमा को एरेनकाईमा कहते हैं|

(2) कोलेन्काईमा (Collenchyma): This यह एक अन्य प्रकार की सरल स्थायी ऊतक जिसके कारण पौधों में लचीलापन होता है| यह पौधों के विभिन्न भागों  जैसे- पत्ती एवं तना में बिना टूटे  हुए लचीलापन लाता है| ऐसे ऊतक को कोलेन्काइमा कहते है|  

गुण (Features):

(i) यह पौधों के पत्तीयों एवं तनों में लचीलापन लाता है|

(ii) यह पौधों को यांत्रिक सहायता भी प्रदान करता है|

(iii) इस ऊतक की कोशिकाएँ जीवित, लंबी, और अनियमित ढंग से कोनों पर मोटी होती हैं|

(iv) कोशिकाओं के बीच कम स्थान होता है|

हम इस ऊतक को एपिडर्मिस के नीचे पर्णवृत में पा सकते हैं|

(3) स्केरेनकाईमा (sclerenchyma): यह एक अन्य प्रकार का सरल स्थाई ऊतक है  जो पौधों को कठोर एवं मजबूत बनाता है| इस प्रकार के सरल स्थायी ऊतक को स्केरेन्काइमा कहते है| उदाहरण: नारियल के छिलके|

ये ऊतक तने में, संवहन बण्डल के समीप, पत्तों की शिराओं में तथा बीजों और फलों के कठोर छिलके में उपस्थित होता है|

गुण (Features):

(i) इस ऊतक की कोशिकाएँ मृत होती हैं|

(ii) ये लंबी एवं पतली होती है क्योंकि इस  ऊतक की भीति लिग्निन के कारण मोटी होती है|

(iii) ये भित्तियाँ प्राय: इतनी मोटी होती हैं कि कोशिका के भीतर कोई आंतरिक स्थान नहीं होता है|

(iv) यह पौधों के भागों को मजबूती प्रदान करता है|

लिग्निन (Lignin):  लिग्निन कोशिकाओं को दृढ बनाने के लिए सीमेंट का कार्य करने वाला एक रासायनिक पदार्थ है|

पैरेंकाइमा, कोलेन्काईमा और स्क्लेरेन्काइमा के बीच अंतर:

Differentiation among Parenchyma, collenchymas and Sclerenchyma:

पैरेंकाइमा

कोलेन्काईमा

स्क्लेरेन्काइमा

1.      ये जीवित कोशिकाएँ होती हैं|

2.      कोशिका भित्ति पतली होती हैं|

3.      इनकी कोशिकाओं के बीच काफी रिक्त स्थान होता है|

4.      यह ऊतक भोजन का भण्डारण करता है और पौधों को सहायता प्रदान करता है|

1.      ये जीवित कोशिकाएँ होती हैं|

2.      कोशिका भित्ति मोटी होती है|

3.      अंतरकोशिकीय अवकाश उपस्थित होती है|

4.      यह पौधों यांत्रिक सहायता प्रदान करता है|

1.      ये मृत कोशिकाएँ होती हैं|

2.      कोशिका भित्ति मोटी होती है|

3.      अंतरकोशिकीय अवकाश अनुपस्थित होती है|

4.      यह पौधों के भागों को मजबूती प्रदान करता है|

एपिडर्मिस (Epidermis)

कोशिकाओं की सबसे बाहरी परत को एपिडर्मिस कहते हैं| समान्यत: यह कोशिकाओं की एक परत की बनी होती हैं| शुष्क स्थानों पर मिलने वाले पौधों में एपिडर्मिस मोटी हो सकती है| क्योंकि एपीडर्मल कोशिकाओं का उत्तरदायित्व रक्षा करने का है, अत: इसकी कोशिकाएँ बिना किसी अंतर्कोशिकीय स्थान के अछिन्न परत बनाती हैं| अधिकांश एपीडर्मल कोशिकाएँ अपेक्षाकृत चपटी होती हैं| सामान्यत: उनकी बाह्य तथा पार्श्व भित्तियाँ उनकी आंतरिक भित्तियों से मोटी होती हैं|

गुण (Features)

(i) यह जल की हानि कम करके पादपों की रक्षा करती हैं|

(ii) यह पौधे के सभी भागों की रक्षा करती है क्योंकि पौधे की पूरी सतह एपिडर्मिस से ढकी रहती है|

(iii) जड़ों की एपीडर्मल कोशिकाएँ पानी को सोंखने का कार्य करती हैं|

(iv) एपीडर्मल कोशिका पौधों की बाह्य सतह पर प्राय: एक मोम जैसी जल प्रतिरोधी परत बनाती है|

(v) यह जल प्रतिरोधी परत, जल के हानि के विरुद्ध यांत्रिक आधात तथा परजीवी कवक के प्रवेश से पौधों की रक्षा करती है|

पौधों में एपिडर्मिस का कार्य (Functions Of Epidermis in plants):

(i) यह जल की हानि कम करके पादपों की रक्षा करती हैं|

(ii) यह जल प्रतिरोधी परत, जल के हानि के विरुद्ध यांत्रिक आधात तथा परजीवी कवक के प्रवेश से पौधों की रक्षा करती है|

(iii) इसकी जेली जैसी पदार्थ जल प्रतिरोधी परत का निर्माण करती है|

(iv) जड़ों की एपीडर्मल कोशिकाएँ पानी को सोंखने का कार्य करती हैं|

जड़ों में एपिडर्मिस का कार्य (Functions of Epidermis in roots)

जड़ों की एपीडर्मल कोशिकाएँ पानी को सोंखने का कार्य करती हैं| साधारणत: उनमें बाल जैसे प्रवर्धन होते हैं, जिससे जड़ों की कुल अवशोषण सतह बढ़ जाती है तथा उनकी पानी सोंखने की क्षमता में वृद्धि होती है|

मरुस्थलीय पौधों  में एपिडर्मिस की भूमिका (Role of Epidermis in Desert Plants):

मरुस्थलीय पौधों की बाहरी सतह वाले एपिडर्मिस में क्यूटीन नामक रासायनिक पदार्थ ला लेप होता है जो जल अवरोधक का कार्य करता है| मरुस्थलीय पौधों को जल की अधिक आवश्यकता होती है यह रासायनिक पदार्थ बाहरी परत  से जल के ह्रास को रोकता है|

क्यूटीन (Cutin): यह एक रासायनिक पदार्थ है जिसमें जल अवरोधक का गुण होता है| यह मुख्यत: मरुस्थलीय पौधों की एपिडर्मिस में पाया जाता है|

सुबेरिन (Suberin): सुबरिन एक  रासायनिक  पदार्थ है जो वृक्ष के बाहरी सुरक्षात्मक परत या वृक्षों के छालों में पाया जाता है और यह इन छालों को जल और वायु के लिए अभेद बनाता  है|

रंध्र (Stomata): पत्तियों की सतह पर बहुत सी ब्बहुत सी छोटी छोटी छिद्र पाए जाते है इन छोटी-छोटी छिद्रों को रंध्र कहते हैं|

रक्षी कोशिकाएँ: स्टोमेटा को दो वृक्क के आकार की कोशिकाएँ घेरे रहती हैं, जिन्हें रक्षी कोशिकाएँ कहते हैं| ये कोशिकाएँ वायुमंडल से गैसों का आदान-प्रदान करने के लिए आवश्यक हैं|

रक्षक परत (Protective Layer): जैसे-जैसे वृक्ष की आयु बढती है, उसके बाह्य सुरक्षात्मक उतकों में कुछ परिवर्तन होता है| एक दुसरे विभज्योतक की पट्टी ताने के एपिडर्मिस का स्थान ले लेती है| बाहरी सतह की कोशिकाएँ इस सतह से अलग हो जाती हैं| यह पौधों पर बहुत परतों वाली मोटी छल का निर्माण करती हैं|

स्टोमेटा का कार्य (Functions of stomata):

(i) वाष्पोत्सर्जन की क्रिया भी स्टोमेटा के द्वारा होती है|

(ii) गैसों का आदान-प्रदान भी स्टोमेटा के द्वारा ही होता हैं|

वाष्पोत्सर्जन (Transpiration): Thisजल वाष्प के रूप में जल का ह्रास होने  की प्रक्रिया को वाष्पोत्सर्जन कहते हैं|

रक्षी कोशिकाओं का कार्य (Function of guard Cells):

रक्षी कोशिकाएँ वायुमंडल से गैसों का आदान-प्रदान करने के लिए आवश्यक है|

जटिल स्थायी ऊतक

(B) जटिल स्थायी ऊतक (Complex permanent Tissue):

जटिल ऊतक एक से अधिक प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बने होते हैं और ये सभी एक साथ मिलकर एक इकाई की तरह कार्य करते हैं|

उदाहरण: जाइलेम और फ्लोएम आदि|

  • ये दोनों जाइलेम और फ्लोएम संवहन ऊतक हैं और ये मिलकर संवहन बण्डल का निर्माण करते हैं|
  • यह ऊतक बड़े पौधों की एक विशेषता है जो कि उनकों स्थलीय  वातावरण में रहने के अनुकूल बनाती हैं|

1. जाइलेम (Xylem):

जाइलेम एक संवहन ऊतक है और यह संवहन बंडल का निर्माण करता हैं| जाइलेम ट्रेकिड्स (वहिनिका), वाहिका, जाइलेम पैरेंकाइमा और जाइलेम फाइबर से  मिलकर बना है|

जाइलेम फ्लोएम के साथ मिलकर संवहन बण्डल का निर्माण  करता है और पौधों को लिग्निन कोशिकाओं की उपस्थिति के कारण यांत्रिक मजबूती प्रदान करता है|

जाइलेम का कार्य (Function of xylem):

(i) जाइलेम जड़ों द्वरा मिटटी से प्राप्त खनिज और जल को पौधों के अन्य भागों  तक पहुँचाता हैं|

(ii) यह पौधों में सहारा देने के साथ साथ भण्डारण और जड़ों से पोषक तत्व और जल को लंबी दुरी तक पौधों के अन्य भागों तक पहुँचाती है|

(iii) जाइलेम पदार्थों को एक ही दिशा में ऊपर की ओर परिवहन करता है|

(iv) यह पौधों को यांत्रिक मजबूती प्रदान करता हैं|

जाइलेम के घटक (Elements of xylem):

(i) ट्रैकिड्स (Tracheids): इसकी संरचना नालिकाकर होती है और इसके द्वारा पानी और खनिज लवण का उर्ध्वाधर संवहन होता है| ये मृत होती हैं|

(ii) वाहिका (Vessels): इसकी भी संरचना नालिकाकर होती है और इसके द्वारा पानी और खनिज लवण का उर्ध्वाधर संवहन होता है| ये भी मृत होती हैं|

(iii) जाइलेम पैरेंकाइमा (Xylem parenchyma): यह भोजन का संग्रहण करता है और यह किनारे की ओर पानी के पार्श्वीय संवहन में मदद करता है|   

(iv) जाइलेम फाइबर (Xylem fibres): मुख्यत: पौधों को सहारा देने का कार्य करता है|

मृत कोशिकाएँ (Dead Cells): वाहिका, ट्रैकिड्स और जाइलेम फाइबर|

जीवित कोशिकाएँ (Live cells): जाइलेम पैरेंकाइमा|

  • संवहन और नलिकाकार घटक प्राय: मृत होते हैं|

2. फ्लोएम (Phloem):

फ्लोएम भी एक संवहन ऊतक है और यह संवहन बण्डल का निर्माण करता है| फ्लोएम चार प्रकार के घटकों से मिलकर बना है| चालनी नलिका, साथी कोशिकाएँ, फ्लोएम पैरेंकाइमा तथा फ्लोएम रेशे से मिलकर बना है|

फ्लोएम का कार्य (Function of phloem):

(i) फ्लोएम पौधों की पत्तियों में प्रकाश संश्लेषण द्वारा बने भोजन को पौधों के अन्य भाग तक पहुँचाता है|

(ii) फ्लोएम जाइलेम के असमान पदार्थों को कोशिकाओं में दोनों दिशाओं में गति करा सकते हैं|  

(iii) फ्लोएम का कोई यांत्रिक कार्य नहीं है|  

फ्लोएम के घटक (Elements of phloem):

(i) चालनी नलिका (Sieve tubes): चालनी नलिका छिद्रित भित्ति वाली तथा नालिकाकर कोशिका होती है| ये जीवित कोशिकाएँ होती है|

(ii) साथी कोशिकाएँ (Companion cells): ये जीवित कोशिकाएँ होती है|

(iii) फ्लोएम रेशे (Phloem fibres): यह मृत कोशिकाएँ होती है|

(iv) फ्लोएम पैरेंकाइमा (Phloem parenchyma):  ये जीवित कोशिकाएँ होती है|

मृत कोशिकाएँ: फ्लोएम रेशे  

जीवित कोशिकाएँ: चालनी नलिका, साथी कोशिकाएँ और फ्लोएम पैरेंकाइमा|

  • संवहन कोशिकाएँ जीवित होती है|

स्थानांतरण (Translocation): पौधों के पत्तियों से वृद्धि वाले भाग और संग्रहण वाले अंगों तक भोजन और पोषक तत्व  जैसे शर्करा और एमिनो अम्ल आदि का परिवहन होता है| पदार्थो की इस प्रकार की गति को स्थानान्तरण कहते है|

जाइलेम एवं फ्लोएम में अंतर (Differences between xylem and phloem): 

जाइलेम

फ्लोएम

 1. यह जल और खनिज का परिवहन करता है|

 2. यह पौधों को यांत्रिक सहायता प्रदान करता है|  

 3. जाइलेम संवहन बण्डल के केंद्र के भरता है|

4. यह पदार्थों को एक ही दिशा ऊपर की ओर गति कराता है|

5. इसकी संवहन और नलिकाकार घटक मृत होते है| 

 1. यह शर्करा और एमिनो अम्ल का परिवहन करता है|

 2. यह पौधों को यांत्रिक सहायता प्रदान नहीं करता है|

 3. फ्लोएम संवहन बण्डल के बाहरी भाग को घेरता है|  

 4. यह पदर्थों को दोनों दिशाओं ऊपर और नीचे गति कराता है|

 5. इसके संवहन कोशिकाएँ जीवित होती है|

जंतु ऊतक (Animal Tissues):

जंतु कोशिकाओं से बने उतकों के समूह को जंतु ऊतक कहते है|

ये चार प्रकार के होते हैं|

(1) एपिथेलियम ऊतक 

(2) संयोजी ऊतक 

(3) पेशीय ऊतक 

(4) तंत्रिका ऊतक 

(1) एपिथेलियम ऊतक (Epithelium Tissues):

जंतु के शरीर को ढकने या बाह्य रक्षा प्रदान करने वाले ऊतक एपिथेलियम ऊतक कहलाता है| त्वचा, मुँह, आहारनली, रक्तवाहिनी नली का अस्तर, फेफड़ें की कुपिका, वृक्कीय नली आदि सभी एपिथेलियम ऊतक से बने होते हैं|

एपिथेलियम ऊतक का कार्य (Functions of Epithelium Tissues):

(i) ये शरीर के अन्दर स्थित बहुत से अंगों और गुहिकाओं (cavities) को ढकते हैं|

(ii)  ये भिन्न-भिन्न प्रकार के शारीरिक तंत्रों को एक दुसरे से अलग करने के लिए अवरोध का निर्माण करते है|

(iii) ये अनवरत (continuous) परत का निर्माण करती है|

(iv) यह बाहरी वातावरण और शरीर के विभिन्न अंगो के बीच पदार्थों के आदान-प्रदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं|

एपिथेलियम ऊतक के गुण (Features of Epithelium Tissues):

(i) एपिथेलियम ऊतक की कोशिकाएँ एक दुसरे से सटी होती हैं|

(ii) कोशिकाओं के बीच काम स्थान होता है|

(iii) शरीर में प्रवेश करने वाला या शरीर से बाहर निकलने वाला पदार्थ एपिथेलियम की किसी परत से होकर गुजरता है|

(iv) विभिन्न एपिथेलियम उतकों की संरचना भिन्न-भिन्न होती है|

एपिथेलियम उत्तक के प्रकार (Types of Epithelium Tissues):

(1) सरल शल्की एपिथेलियम (Simple Squamous Epithelium):

कोशिकाओं में रक्त नलिका अस्तर या कूपिका, जहाँ पदार्थों का संवहन वरणात्मक पारगम्य झिल्ली द्वारा होता है, वहाँ पर चपटी एपिथीलियमी उत्तक कोशिकाएँ होती हैं। इनको सरल शल्की एपिथीलियम कहते हैं।

गुण (Properties):

(i) ये अत्यधिक पतली और चपटी होती हैं तथा कोमल अस्तर का निर्माण करती हैं।

(ii) आहारनली तथा मुँह का अस्तर शल्की एपिथीलियम से ढका होता है। शरीर का रक्षात्मक कवच अर्थात् त्वचा इन्हीं शल्की एपिथीलियम से बनी होती है।

(2) स्तरित शल्की एपिथेलियम (Stratified Squamous Epithelium): त्वचा की एपिथीलियमी कोशिकाएँ इनको कटने तथा फटने से बचाने के लिए कई परतों में व्यवस्थित होती हैं। चूँकि ये कई परतों के पैटर्न में व्यवस्थित होती हैं इसलिए इन एपिथीलियम को स्तरित शल्की एपिथीलियम कहते हैं।

(3) स्तम्भाकार (पक्षमाभी) एपिथेलियम (Columnar Epithelium): जहाँ अवशोषण और स्राव होता है, जैसे आँत के भीतरी अस्तर (lining) में, वहाँ लंबी एपिथीलियमी कोशिकाएँ मौजूद होती हैं। इस प्रकार के एपिथेलियम को पक्षमाभी स्तंभाकार एपिथेलियम कहते है|

कार्य (Functions):

(i) यह स्तंभाकार एपिथीलियम, एपिथीलियमी अवरोध् को पार करने में सहायता प्रदान करता है।

(ii) श्वास नली में, स्तंभाकार एपिथीलियमी ऊतक में पक्ष्माभ (Cilia) होते हैं, जो कि एपिथीलियमी उत्तक की कोशिकाओं की सतह पर बाल जैसी रचनाएँ होती हैं। ये पक्ष्माभ गति कर सकते हैं तथा इनकी गति श्लेष्मा को आगे स्थानांतरित करके साफ करने में सहायता करती हैं।

(4) घनाकार एपिथीलियम (Cuboidal Epithelium): ये एपिथेलियम उतक घनाकार होती हैं|

कार्य (Functions):

(i) घनाकार एपिथीलियम वृक्कीय नली तथा लार ग्रंथि की नली के अस्तर का निर्माण करता है, जहाँ यह उसे यांत्रिक सहारा प्रदान करता है।

(ii) ये एपिथीलियम कोशिकाएँ प्रायः ग्रंथि कोशिका के रूप में अतिरिक्त विशेषता अर्जित करती हैं, जो एपिथीलियमी उत्तक की सतह पर पदार्थों का स्राव कर सकती हैं। 

ग्रंथिल एपिथीलियम (Grandular Epithelium): कभी-कभी एपिथीलियमी ऊतक का कुछ भाग अंदर की ओर मुड़ा होता है तथा एक बहुकोशिक ग्रंथि का निर्माण करता है। यह ग्रंथिल एपिथीलियम कहलाता है।

संयोजी उत्तक, पेशीय उतक और तंत्रिका उतक

संयोजी उत्तक (connective tissue):

ऐसी कोशिकाएँ जिनकी कोशिकाए आपस में कम जुडी होती है और अंतरकोशिकिय आधात्री में धंसी होती है। संयोजी उतक कहलाती हैं| रक्त , अस्थि और उपास्थि, स्नायु और कंडरा संयोजी उतक के उदाहरण है ।

रक्त (Blood): रक्त एक संयोजी उतक है जो पदार्थों के संवहन के लिए एक माध्यम का कार्य करता है| यह गैसों जैसे ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड आदि, शरीर के पचे हुए भोजन, हाॅर्मोन और उत्सर्जी पदार्थों को शरीर के एक भाग से दूसरे भाग में संवहन करता है।

प्लाज्मा (Plasma): रक्त के तरल आधत्राी भाग को प्लाज्मा कहते हैं|

प्लाज्मा में लाल रक्त कोशिकाएँ (RBC), श्वेत रक्त कोशिकाएँ (WBC) तथा प्लेटलेट्स निलंबित होते हैं। प्लाज्मा में प्रोटीन, नमक तथा हॅार्मोन भी होते हैं। 

प्लाज्मा में तीन प्रकार की कोशिकाएँ पाई जाती हैं:

(i) लाल रक्त कोशिकाएँ (RBC)

(ii) श्वेत रक्त कोशिकाएँ (WBC)

(iii) प्लेटलेट्स (Platelets)

अस्थि (Bone): यह भी एक संयोजी उतक है|

अस्थि का कार्य (The functions of Bone):

(i) यह पंजर का निर्माण कर शरीर को आकार प्रदान करती है।

(ii) यह मांसपेशियों को सहारा देती है और शरीर के मुख्य अंगों को सहारा देती है।

(iii) यह ऊतक मजबूत और कठोर होता है।

(iv) अस्थि कोशिकाएँ कठोर आधत्राी में धंसी होती हैं, जो कैल्शियम तथा फॉस्फोरस से बनी होती हैं।

उपास्थि (cartilage): एक अन्य प्रकार का संयोजी ऊतक होता है, जिसमें कोशिकाओं के बीच पर्याप्त स्थान होता है। इसकी ठोस आधत्राी प्रोटीन और शर्करा की बनी होती है। उपास्थि नाक, कान, कंठ और श्वास नली में भी उपस्थित होती है।

(i) यह अस्थियों के जोड़ों को चिकना बनाती है।

(ii) यह शरीर के कुछ विशेष अंगों को जैसे नाक, कान और वक्ष उपास्थि (sternum) को आकार प्रदान करता है|

स्नायु (Ligament): दो अस्थियों को आपस में जोड़ने वाले एक अन्य संयोजी उतक जिसे स्नायु कहते है| इसे अस्थि बंधान तंतु भी कहते हैं|

गुण (Features):

(i) यह ऊतक बहुत लचीला एवं मजबूत होता है।

(ii) स्नायु में बहुत कम आधत्राी होती है।

कंडरा (tendon): कंडरा भी एक अन्य प्रकार का संयोजी ऊतक है, जो अस्थियों से मांसपेशियों को जोड़ता है।

गुण (Features):

(i) कंडरा मजबूत तथा सीमित लचीलेपन वाले रेशेदार ऊतक होते हैं।

(ii) यह अस्थियों से मांसपेशियों को जोड़ता है। 

एरिओलर संयोजी ऊतक (Areolar connective tissue): एरिओलर संयोजी ऊतक त्वचा और मांसपेशियों के बीच, रक्त नलिका के चारों ओर तथा नसों और अस्थि मज्जा में पाया जाता है।

कार्य (functions):

(i) यह अंगों के भीतर की खाली जगह को भरता है,

(ii) आंतरिक अंगों को सहारा प्रदान करता है|

(iii) ऊतकों की मरम्मत में सहायता करता है।

वसामय ऊतक (Adipose Tissue): वसा का संग्रह करने वाला वसामय ऊतक त्वचा के नीचे आंतरिक अंगों के बीच पाया जाता है। इस ऊतक की कोशिकाएँ वसा की गोलिकाओं से भरी होती हैं। वसा संग्रहित होने के कारण यह ऊष्मीय कूचालक का कार्य भी करता है।

पेशीय उत्तक (Muscular Tissue):

पेशीय उत्तक लंबी कोशिकाओं का बना होता जिसे पेशीय रेशा भी कहा जाता है जो हमारे शरीर में गति कराता है| इन्हें पेशीय उत्तक कहते है|

पेशीय उत्तक का कार्य (Functions of Muscular Tissues):

(i) पेशीय उत्तकें हमारे शरीर में गति कराती हैं|

(ii) यह अस्थियों को बाँध कर रखता है|

पेशियों में संकुचन एवं प्रसार का कारण:

पेशियों में एक विशेष प्रकार का प्रोटीन होता है जिसे सिकुड़ने वाला प्रोटीन कहते है| इसी प्रोटीन के संकुचन एवं प्रसार के कारण गति होती है|

एच्छिक पेशी (Voluntary Muscles):

ऐसी पेशियाँ जिन्हें हम अपनी इच्छानुसार गति करा सकते है या उनकी गति को रोक सकते हैं| ऐच्छिक पेशियाँ कहलाती है|

कंकाल पेशी (Skeletal Muscles): ऐच्छिक पेशियाँ जो अस्थियों से जुडी रहती है और इनमें गति कराती है| इन्ही पेशियों को कंकाली पेशियाँ कहते है|

चिकनी पेशियाँ (Smooth Muscles): कुछ पेशियाँ जिनकी गति पर हमारा नियंत्रण नहीं होता है, ये स्वत: गति करती है| ऐसी पेशी अनैच्छिक पेशी होती है जो शरीर के कुछ अंगों में स्वत: प्रसार एवं संकुचन का काम करते हैं| चिकनी पेशियाँ कहलाती हैं| उदाहरण –

ऐसी पेशियाँ आँख की पलक, मुत्रवाहिनी, आँत और फेफड़ों की श्वासनली आदि में पाया जाताहै|

ह्रदय पेशियाँ (Cardiac Muscles):

ह्रदय पेशियाँ जीवन भर संकुचन एवं प्रसार का कार्य करती है, ये अनैच्छिक होती है| इन्हें कार्डियक या ह्रदय पेशी कहा जाता है|

तंत्रिका उत्तक (Nervous Tissues):

मस्तिष्क, मेरुरज्जु तथा तंत्रिकाएँ एक विशेष प्रकार के उतकों से बना होता है जिन्हें तंत्रिका उतक कहते है|

तंत्रिका उत्तक का कार्य (Functions of Nervous Tissues):

(i) यह सूचनाओं को पुरे शरीर में एक स्थान से दुसरे स्थान तक पहुँचाती है|

(ii) यह पेशियों में गति कराने में सहायता करती है|

(iii) शरीर में उत्पन्न वैद्युत संकेतों को मस्तिष्क तक पहुँचाती हैं|

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