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Home » Class 12 Hindi » बारहमासा (CH- 8) Detailed Summary || Class 12 Hindi अंतरा (CH- 8) ||

Class 12 hindi ch 8 Notes In Hindi

बारहमासा (CH- 8) Detailed Summary || Class 12 Hindi अंतरा (CH- 8) ||

Posted on February 16, 2022March 25, 2023 by Anshul Gupta

पाठ – 8

बारहमासा

In this post we have given the detailed notes of class 12 Hindi chapter 8 बारहमासा These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams

इस पोस्ट में क्लास 12 के हिंदी के पाठ 8 बारहमासा के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectHindi (अंतरा)
Chapter no.Chapter 8
Chapter Nameबारहमासा
CategoryClass 12 Hindi Notes
MediumHindi
Class 12 Hindi Chapter 8 बारहमासा
Ch – 7 || बारहमासा (मलिक् मुहम्मद जायसी) || Class 12 (अंतरा) || Detailed Summary By Anshul Sir
Explore the topics
पाठ – 8
बारहमासा
बारहमासा
मलिक मुहम्मद जायसी
जीवन परिचय
जन्म
रचनाएं: –
साहित्यिक परिचय:
भाषा शैली:
मृत्यु 1542 में हुई।
बारहमासा कविता की व्याख्या
कविता का सारांश
व्याख्या
व्याख्या
व्याख्या
व्याख्या
विशेष

बारहमासा

  • मलिक मोहम्मद जायसी हिंदी के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इनके काव्य में श्रृंगार रस के दोनों पक्ष संयोग तथा वियोग का बड़ा ही तार्किक रूप से प्रयोग किया गया है। इन्होंने निर्गुण भक्ति को अधिक महत्व दिया है। मलिक मोहम्मद जायसी की ख्याति नागमती वियोग खंड से उद्धृत बारहमासा से अधिक हुई है।
  • इसमें नायिका के दशा का वर्णन ऋतू व समय चक्र के आधार पर किया है।

मलिक मुहम्मद जायसी 

जीवन परिचय

जन्म 

  • 1492 में उत्तर प्रदेश के जायस गांव में पैदा हुए। जायस में रहने के कारण उन्हें जायसी कहा जाता था। हिन्दी साहित्य में मलिक को मोहम्मद जायसी के नाम से जाना जाता है। वे भक्ति काल की निर्गुण भक्ति धारा की सूफी शाखा के प्रतिनिधि कवि हैं। वह शारीरिक रूप से कुरूप था, उसका आधा शरीर टेढ़ा था।

रचनाएं: –

12 ग्रंथ बताए जाते हैं, परंतु साक्ष्य के रूप में सात ही उपलब्ध हैं। प्रमुख रचनाएं –

  • पद्मावत महाकाव्य
  • अखरावट
  • आखिरी कलाम
  • चित्ररेखा
  • कहरनामा
  • मसलनामा
  • कंनरावत।

साहित्यिक परिचय: 

जायसी सूफी काव्य धारा के प्रमुख कवि हैं, इन्हें पद्मावत महाकाव्य से प्रसिद्धि प्राप्त हुई। यह एक आध्यात्मिक कविता है, इसमें अलौकिक कहानी के माध्यम से लौकिक कहानी का उल्लेख है, और यह समन्वय शैली में लिखी गई एक रचना है। यहां हिंदू और मुस्लिम काव्य शैलियों का मेल है। पद्मावत में रत्नासेन ‘आत्मा’ का पद्मावती, ‘परमात्मा’ का हीरामन तोता, ‘गुरु’ का नागमती ‘सांसारिक मोह माया’ का प्रतीक है।

भाषा शैली: 

फ़ारसी की मसनवी शैली की भाषा में आम बोलचाल की अवधी भाषा की लोकप्रिय भाषा में अनुप्रास, रूपक, उपमा, रूपक, अनुप्रास का प्रयोग। करुण और श्रृंगार रस के दोनों पक्ष सहयोग और वियोग के उपयोग हैं। गाम्भीर्य भाव मृत्यु है।

मृत्यु 1542 में हुई।

बारहमासा कविता की व्याख्या

कविता का सारांश 

  • ‘बरहमसा’ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य “पद्मावत” के “नागमती वियोग खंड” का एक अंश है।
  • इस खंड में राजा रत्नसेन के वियोग में डूबी रानी नागमती के दुःख का वर्णन किया गया है।
  • यह संपूर्ण अंश वर्ष के विभिन्न महीनों में नागमती की स्थिति का वर्णन करता है।
  • इस अंश में चार महीनों का वर्णन किया गया है: अगहन (वर्ष का 9वाँ महीना), पूस (अगहन के बाद), माघ, फागुन।

1.

अगहन देवस घटा निसि बाढ़ी। दूभर दुख सो जाइ किमि काढ़ी।।

अब धनि देवस बिरह भा राती। जरै बिरह ज्यों दीपक बाती।।  

काँपा हिया  जनावा सीऊ। तौ पै जाइ होइ सँग पीऊ।।

घर घर चीर रचा सब काहूँ। मोर रूप रंग लै गा नाहू।। 

पलटि न बहुरा गा जो बिछोई। अबहूँ फिरै फिरै रंग सोई।।

सियरि अगिनि बिरहिनि हिय जारा। सुलगि सुलगि दगधै भै छारा।।

यह दुख दगध न जानै कंतू। जोबन जनम करै भसमंतू।।

पिय सौं कहेहु सँदेसरा, ऐ भँवरा ऐ काग।

सो धनि बिरहें जरि मुई, तेहिक धुआँ हम लाग।।

व्याख्या

  • प्रस्तुत पद में जायसी जी मार्गशीर्ष के आगमन और नागमती की मनोदशा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि अघन के आने से दिन छोटे और रातें लंबी हो गई हैं।
  • जुदाई के दर्द से ग्रसित एक रानी के लिए इतनी लंबी रात बिताना मुश्किल होता जा रहा है। वियोग में नागमती दीये की तरह जल रही है। ठंड का अनुभव होने लगा है और हृदय कांप रहा है।ऐसे में प्रियतम का दूर जाना बहुत कष्टदायक होता है।
  • लोग मंगलगीत और रंगों में व्यस्त हैं, लेकिन नागमती के जीवन में रंगों की कमी है। नागमती का हृदय वज्र की तरह जल रहा है, और शरीर जल कर राख हो रहा है।
  • यह दुख-दर्द किसी और की समझ से परे है, जिससे विहारी का जन्म भोगा जा रहा है। नागमती भैंसों और कौवे से आग्रह कर रही हैं कि वे अपनी स्थिति का संदेश प्रियतम तक पहुंचाएं। साथ ही कह रही है कि वियोग की ज्वाला में जल रहे नागमती के धुएं के स्पर्श से ही वे काले हो गए हैं.

2.

पूस जाड़ थरथर तन काँपा। सुरुज जड़ाइ लंक दिसि तापा।।

बिरह बाढ़ि भा दारुन सीऊ। कॅपि कॅपि मरौं लेहि हरि जीऊ।।

कंत कहाँ हौं लागौं हियरें। पंथ अपार सूझ नहिं नियरें।।

सौर सुपेती आवै जूड़ी। जानहुँ सेज हिवंचल बूढ़ी।।

चकई निसि बिछुरै दिन मिला। हौं निसि बासर बिरह कोकिला।।

रैनि अकेलि साथ नहिं सखी। कैसें जिऔं बिछोही पँखी।।

बिरह सचान भँवै तन चाँड़ा। जीयत खाइ मुएँ नहिं छाँड़ा।।

रकत ढरा माँसू गरा, हाड़ भए सब संख।

धनि सारस होइ ररि मुई, आइ समेटहु पंख।।

व्याख्या

  • कवि जायसी पूस की ठंड में वियोग सहने वाली नागमती का चित्रण करते हुए बता रहे हैं कि पुस के महीने की सर्दी से शरीर कांप रहा है। और सूर्य मानो लंका की ओर छिपने का अर्थ है कि राजा रत्नसेन लंका की ओर चले गए हैं।
  • विरह वेदना के कारण रानी की हालत बहुत ही दयनीय हो गई है और ठंड की कंपकंपी उनका जीवन हरने को आतुर है। समझ में नहीं आ रहा है कि प्रियतम कहां गया, और न ही उन्हें खोजने का कोई उपाय समझ आ रहा है।
  • रास्ते तो बहुत हैं, लेकिन निकट भविष्य में प्रियतम तक पहुंचने का कोई मार्ग सूझ नहीं रहा है। सर्दियों में गर्मी प्रदान करने वाला वस्त्र (सौर सुपेती) भी हिमालय की बर्फ की तरह एक बिस्तर प्रतीत होता है।
  • कोकिला और चकाई भी नियत समय पर मिलते हैं। जब रात्रि में सखी प्रियतम के बिना अकेली है तब इस वियोग पीड़ा से संतृप्त नागमती रूपी पक्षी कैसे जीवित रह सकती है। ठंड में वियोग से परेशान नागमती बाज से उसे जीवित अवस्था में खाने का आग्रह कर रही है और उसे इस अवस्था में नहीं छोड़ने के लिए कह रही है।
  • नागमती का खून सूख गया है और मांस सड़ गया है। शरीर हड्डी की तरह ही रह जाता है। नागमती पंखों वाले सारस की तरह प्रतीत हो रहीं हैं।

3.

लागेउ माँह परै अब पाला। बिरहा काल भएउ जड़काला।।

पहल पहल तन रुई जो झाँपै। हहलि हहलि अधिकौ हिय काँपै।।

आई सूर होइ तपु रे नाहाँ। तेहि बिनु जाड़ न छूटै माहाँ।।

एहि मास उपजै  रस मूलू। तूं सो भँवर मोर जोबन फूलू।।

नैन चुवहिं जस माँहुट नीरू। तेहि जल अंग लाग सर चीरू।।

टूटहिं बुंद परहिं जस ओला। बिरह पवन होइ मारै झोला।।

केहिक सिंगार को पहिर पटोरा। गियँ नहिं हार रही होइ डोरा।।

तुम्ह बिनु कंता धनि हरुई, तन तिनुवर भा डोल।

तेहि पर बिरह जराइ कै, चहै उड़ावा झोल।।

व्याख्या

  • प्रस्तुत पद में जायसी जी माघ माह में विरह में व्याकुल नागमती का दुख व्यक्त करते हुए यह संकेत कर रहे हैं कि माघ महीना आ गया और पाला पड़ने लगा है, लेकिन वियोग के समय ने नागमती के शरीर को काला और मृत बना दिया है। है।
  • बार – बार शरीर को गर्म कपड़ों से ढंकना पड़ता है और बार – बार नागमती का शरीर और अधिक कांप रहा होता है। नागमती कह रही हैं कि सूर्य देव के आने से थोड़ी गर्मी है, लेकिन आपके बिना यह सर्दी नहीं जाती।
  • इसी माह में श्रृंगार भाव की उत्पत्ति होती है, लेकिन प्रियतम के न होने से नागमती का हर्षित यौवन व्यर्थ सिद्ध हो रहा है। माघ के महीने में भारी बारिश की तरह नागमती की आंखों से आंसू बह रहे हैं।
  • प्रियतम के बिना नागमती के अंगों की सौंदर्य निरर्थक हो गया है और वह निर्जीव जीवन जीने को विवश है। आँखों से गिरती बूँदें ओले की तरह लगती हैं, और बहती हुई हवा झकझोर कर विरह की दर्द को ओर बढ़ा रही है।
  • नागमती कह रही हैं किसके लिए शृंगार करें? किसके लिए आकर्षक कपड़े पहने और किसके लिए गले में हार और शरीर पर आभूषण पहने?
  • नागमती कह रही है प्रियतम तुम्हारे बिना दिल कांप रहा है और तन डोल रहा है। विरह की वेदना मेरे शरीर को जलाकर समाप्त करती जा रही है। 

4.

फाल्गुन पवन झंकोरै  बहा। चौगुन सीउ जाइ किमि सहा।।

तन जस पियर पात भा मोरा। बिरह न रहे पवन होइ झोरा।।

तरिवर झरै झरै बन ढाँखा। भइ अनपत्त फूल फर साखा।।

करिन्ह बनाफति कीन्ह हुलासू। मो कहँ भा जग दून उदासू।।

फाग करहि सब चाँचरि जोरी। मोहिं जिय लाइ दीन्हि जसि होरी।।

जौं पै पियहि जरत अस भावा। जरत मरत मोहि रोस न आवा।।

रातिहु देवस इहै मन मोरें। लागौं कंत छार जेऊँ तोरें।।

यह तन जारौं छार कै, कहौं कि पवन उड़ाउ।

मकु तेहि मारग होइ परौं, कत धरै जहँ पाउ।।

व्याख्या

  • प्रस्तुत पद में फाल्गुन के महीने में पति के अलग होने से परेशान नागमती की मनोदशा बताते हुए जायसी जी ने कहा है कि फाल्गुन के महीने में चलने वाली हवा ने ठंड को चार गुना बढ़ा दिया है, जिसे नागमती सहन नहीं कर पा रही है। नागमती का शरीर पत्ते की तरह सूख गया है। 
  • तिनके गिर रहे हैं और फूल खिल रहे हैं। वनस्पतियों में उत्साह है यानि अब वातावरण में हर तरह के फूल, वनस्पति आदि खिलने लगे हैं, लेकिन नागमती के मन में उदासी है।
  • होली का त्योहार आ रहा है। लोग एक – दूसरे को रंगने के लिए उत्सुक हैं लेकिन नागमती बेरंग, उदास और अकेली हैं। वियोग की पीड़ा से जल रही नागमती को दु:ख और रोष का अनुभव हो रहा है। दिन-रात विलाप करके अपने प्रियतम के आने का इंतजार कर रहे हैं।
  • नागमती दुःख के चरम पर पहुँचती है और कहती है कि उसका शरीर जलकर राख हो जाना चाहिए और राख को उस रास्ते पर फैला देना चाहिए जहाँ से उसका पति गुजरा नहीं तो उनके पैर गिर जाते।

विशेष

  • रानी नागमती की विरह वेदना का मार्मिक चित्रण है !
  • जरै बिरह ज्यों दीपक बाती में उपमा अलंकार है। 
  • दूभर दुख, किमि काढ़ी, रूप रंग और दुःख दग्ध में अनुप्रास अलंकार है। 
  • काव्य की भाषा अवधि है और वियोग रस का प्रयोग है। 

We hope that class 12 Hindi Chapter 8 बारहमासा notes in Hindi helped you. If you have any query about class 12 Hindi Chapter 8 बारहमासा notes in Hindi or about any other notes of class 12 Hindi Notes, so you can comment below. We will reach you as soon as possible…

Category: Class 12 Hindi

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2 thoughts on “बारहमासा (CH- 8) Detailed Summary || Class 12 Hindi अंतरा (CH- 8) ||”

  1. virender says:
    March 17, 2022 at 6:42 pm

    Firoz rid tu it to of er if to is de Reddy gif eyes is de Jesus St out de St tujhko of seed hyd u HD St uj RT kr er under

    Reply
  2. हरसन रेबारी says:
    February 11, 2023 at 8:06 pm

    Notes padne se hamare ghyan me wardi hoti hai

    Reply

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