छाया मत छूना (CH- 7) Detailed Summary || Class 10 Hindi क्षितिज (CH- 7) ||

पाठ – 7

छाया मत छूना

In this post we have given the detailed notes of class 10 Hindi chapter 7 छाया मत छूना These notes are useful for the students who are going to appear in class 10 board exams

इस पोस्ट में कक्षा 10 के हिंदी के पाठ 7 छाया मत छूना के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 10 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 10
SubjectHindi (क्षितिज)
Chapter no.Chapter 7
Chapter Nameछाया मत छूना
CategoryClass 10 Hindi Notes
MediumHindi
Class 10 Hindi Chapter 7 छाया मत छूना

Chapter 7 छाया मत छूना

-गिरिजाकुमार माथुर

भावार्थ

प्रस्तुत कविता में कवि ने मनुष्य को बीते लम्हों की याद ना कर भविष्य की ओर ध्यान देने को कहा है। कवि कहते हैं कि अपने अतीत को याद कर किसी मनुष्य का भला नही होता बल्कि मन और दुखी हो जाता है। हमारे जीवन में अनेक रंग-बिरंगी यादों की सुहावनी बेला आती है, जिनके सहारे व्यक्ति अपना सारा जीवन बिता देना चाहता है परन्तु कवि कहते हैं कि अब वे क्षण बीत चुके हैं। भले ही उनकी खुशबू चारों तरफ फैली हुई है परन्तु अब वह चांदनी रात समाप्त हो चुकी है, अब प्रिय की सुगंध ही मात्र शेष रह गई है। प्रिय के साथ बिताए वह सुन्दर क्षण अब मात्र यादों में ही रह गए हैं। वे कहते हैं कि अब उन्हें याद करने से हमें सिर्फ दुःख ही मिलेगा, वे पल वापस नही आएंगे।

कवि कहते हैं मनुष्य सारी जिंदगी यश,धन-दौलत, मान, ऐश्वर्य के पीछे भागते हुए बिता देता है जो की केवल एक भ्रम है। कवि कहते हैं ये ठीक उसी प्रकार है जैसे रेगिस्तान में पशु पानी की तलाश में भटकता रहता है परन्तु दूर कहीं सूर्य की किरणों द्वारा उत्पन्न हुए जल के आभास से ठगा जाता है। वे कहते हैं कि हम जितना मान-सम्मान, सम्पन्ति की चाह करते हैं  उतना ही हमारी चाहत इसके प्रति बढ़ती जाती है, इसका कोई अंत नही है। जिस तरह हर चांदनी रात के बाद अमावस्या आती है उसी तरह सुख-दुःख का पहिया सदा निरंतर चलता रहता है। इसलिए कवि हमें धरातल पर जीने की सलाह देते हैं, सच्चाई को स्वीकारने में ही हमारी भलाई है। वर्ना अतीत के सुखों की यादों में हम वर्त्मान के दुखों को बढ़ा लेंगे।

कवि कहते हैं कि मनुष्य सदा दुविधा में फंसा रहता है जसके कारण उसे कोई रास्ता नही सूझता और वह अधिक निराश हो जाता है। जीवन में उसे जो कुछ उसे मिलता है उससे उसकी शारीरिक सुख तो मिल जाता है परन्तु मन संतुष्ट नही हो पाता। जिस प्रकार शरद पूर्णिमा की रात को चाँद न निकले तो शरद पूर्णिमा का सारा सौंदर्य और महत्व समाप्त हो जाता है उसी प्रकार अगर मनुष्य को जीवन में सुख-सम्पदा नहीं मिली तो इसका दुःख उसे जीवन भर सताता है। जैसे वसंत ऋतू में फूल न खिले तो वह निश्चित ही मतवाली और सुखदायी ना होगी वैसे ही मनुष्य को अगर अतीत में जो कुछ उसे मिलना चाहिए था वह न मिले तो वह उदास हो जाता है इसलिए उन्हें भूलना ही बेहतर है।

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