मृदा (CH-6) Notes in Hindi || Class 11 Geography Book 6 Chapter 6 in Hindi ||

पाठ – 6

मृदा

In this post we have given the detailed notes of class 11 geography chapter 6 मृदा (Soils) in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 11 exams.

इस पोस्ट में क्लास 11 के भूगोल के पाठ 6 मृदा (Soils) के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 11 में है एवं भूगोल विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 11
SubjectGeography
Chapter no.Chapter 6
Chapter Nameमृदा (Soils)
CategoryClass 11 Geography Notes in Hindi
MediumHindi
Class 11 Geography Chapter 6 मृदा in Hindi

Chapter – 6 मृदा

मृदा

  • मृदा प्रकृति का एक मूल्यवान (संसाधन) है। यह भू – पर्पटी की सबसे महत्वपूर्ण पर है।
  • मृदा भू – पृष्ठ का वह उपरी भाग है, जो चट्टानों के टूटे – फुटे बारीक कणों तथा वनस्पति के सड़े – गले अंशों के मिश्रण से जलवायु व जैव – रासायनिक प्रक्रिया से बनती है।

मृदा का निर्माण

मृदा का निर्माण – मृदा के निर्माण की प्रक्रिया बहुत जटिल है। मृदा निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक हैं :

  • जनक सामग्री अथवा मूल पदार्थ:- मृदा का निर्माण करने वाला मूल पदार्थ चट्टानों से प्राप्त होते हैं। चट्टानों के टूटने – फूटने से ही मृदा का निर्माण होता है।
  • उच्चावच:- मृदा निर्माण की प्रक्रिया में उच्चावच का महत्वपूर्ण स्थान है। तीव्र ढाल वाले क्षेत्रों में जल प्रवाह की गति तेज़ होती है और मृदा के निर्माण में बाधा आती है। कम उच्चावच वाले क्षेत्रों में निक्षेप अधिक होता है। और मृदा की परत मोटी हो जाती है।
  • जलवायु:- जलवायु के विभिन्न तत्व विशेषकर तापमान तथा वर्षा में पाए जाने वाले विशाल प्रादेशिक अन्तर के कारण विभिन्न प्रकार की मृदाओं का जन्म हुआ है।
  • प्राकृतिक वनस्पति:- किसी भी प्रदेश में मृदा निर्माण की वास्तविक प्रक्रिया तथा इसका विकास वनस्पति की वृद्धि के साथ ही आरंभ होता है।
  • समय:- मृदा की छोटी सी परत के निर्माण में कई हज़ार वर्ष लग जाते हैं।

मृदा के प्रकार

जलोढ़ मृदा, लैटराइट मृदा, काली मृदा, लाल/ पीली मृदा, शुष्क मृदा, लवण मृदा,

जलोढ़ मृदा

  • उत्तर भारत का विशाल मैदान इसी मृदा से बना है।
  • जल + ओढ़ = जल अपने साथ कुछ कण लाएगा।
  • अवसाद + गाद + कंकड़ + बजरी + पत्थर + जैविक पदार्थ = जलोढ़ मृदा।
  • भारत में सबसे अधिक पाई जाती है।
  • यह मृदा नदियों द्वारा बहाकर लाए गए अवसादों से बनती है।
  • सबसे उपजाऊ।
  • नदी घाटियों, डेल्टाई क्षेत्रों तथा तटीय मैदानों में पाई जाती है।
  • इसमें पोटाश की मात्रा अधिक और फॉस्फोरस की मात्रा कम होती है।
  • इस मृदा का रंग हलके धूसर से राख धूसर (Gray) जैसा होता है।
  • यह भारत में गंगा – ब्रहमपुत्र मैदानों में पाई जाती।

काली मृदा

  • इसका निर्माण ज्वालामुखी क्रियाओं से प्राप्त लावा से होता है।
  • इसे रेगड़ मिटटी भी कहते हैं।
  • यह एक उपजाऊ मृदा है।
  • इसमें कपास की खेती होती है इसलिए इसे कपास मृदा भी कहा जाता है।
  • इसमें चूना, लौह, मैग्नीशियम तथा अल्यूमिना जैसे तत्व अधिक पाए जाते हैं तथा फॉस्फोरस, नाइट्रोजन तथा जैविक तत्वों की कमी होती है।
  • क्षेत्र : दक्कन के पठार का अधिकतर भाग महाराष्ट्र के कुछ भाग, गुजरात, आंध्रप्रदेश तथा तमिलनाडु के कुछ भाग।
  • ये मृदा गीली होने पर फूल जाती है तथा चिपचिपी हो जाती है।

लाल/ पीली मृदा

  • इस मृदा का रंग लाल होता है।
  • यह मृदा अधिक उपजाऊ नहीं होती।
  • इसमें नाइट्रोजन, जैविक पदार्थ तथा फास्फोरिक एसिड की कमी होती है।
  • जलयोजित होने के कारण यह पीली दिखाई देती है।
  • यह मृदा दक्षिणी पठार के पूर्वी भाग में पाई जाती है।
  • क्षेत्र:- ओडिशा, छत्तीसगढ़ के कुछ भाग, मध्य गंगा के मैदान।
  • महीन कणों वाली लाल और पीली मृदा उर्वर होती हैं।
  • मोटे कणों वाली उच्च भूमि की मृदाएँ अनुर्वर होती हैं।

लैटराइट मृदा

  • लैटेराइट एक लैटिन शब्द ‘ लेटर ‘ से बना है।
  • शाब्दिक अर्थ – ईंट
  • क्षेत्र : उच्च तापमान और भारी वर्षा के क्षेत्र।
  • इसका निर्माण मानसूनी जलवायु में शुष्क तथा आद्र मौसम के क्रमिक परिवर्तन के कारण होने वाली निक्षालन प्रक्रिया से हुआ है।
  • यह मृदा उपजाऊ नहीं होती।
  • इसमें नाइट्रोजन, चूना, फॉस्फोरस तथा मैग्नीशियम की मात्रा कम होती है।
  • यह मृदा पश्चिमी तट, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा, असम के पर्वतीय क्षेत्र तथा राजमहल की पहाड़ियों में मिलती है।
  • मकान बनाने के लिए लैटेराइट मृदाओं का प्रयोग ईंटे बनाने में किया जाता है।

शुष्क मृदा

  • इसका रंग लाल से लेकर किशमिश जैसा होता है।
  • यह बलुई और लवणीय होती है।
  • कुछ क्षेत्रों की मृदाओं में नमक की मात्रा इतनी अधिक होती है की इनके पानी को वाष्पीकृत करके नमक प्राप्त किया जा सकता है।
  • शुष्क जलवायु, उच्च तापमान और तीव्र वाष्पीकरण के कारण इन मृदाओं में नर्मी और ह्यूमस की कमी होती है।
  • ये मृदाएँ अनुर्वर हैं क्योंकि इनमे ह्यूमस तथा जैविक पदार्थ कम मात्रा में पाए जाते हैं।
  • नीचे की ओर चूने की मात्रा बढ़ने के कारण निचले संस्तरों में कंकड़ की परतें पाई जाती हैं।
  • मृदा के तली संस्तर में कंकडों की परतें बनने के कारण पानी का रिसाव सीमित हो जाता है।
  • इसलिए सिंचाई किए जाने पर इन मृदाओं में पौधों की सतत वृद्धि के लिए नमी हमेशा बनी रहती है।
  • ये मृदाएँ विशिष्ट शुष्क स्थलाकृति वाले पश्चिमी राजस्थान में विकसित हुई है।

लवण मृदा

  • शुष्क और अर्धशुष्क तथा जलाक्रांत क्षेत्रों और अनूपों में पाई जाती है।
  • इनकी संरचना बलुई से लेकर दुमटी तक होती है।
  • इन्हें ऊसर मृदा भी कहते हैं।
  • सोडियम, पोटैशियम, मैग्नीशियम अधिक अनुर्वर और किसी भी प्रकार की वनस्पति नहीं उगती।
  • शुष्क जलवायु और ख़राब अपवाह के कारण इनमे लवणों की मात्रा बढ़ जाती है।
  • कच्छ के रन में दक्षिणी – पश्चिमी मानसून के साथ नमक के कण आते हैं जो एक पपड़ी के रूप में ऊपरी सतह पर जमा हो जाते हैं।
  • डेल्टा प्रदेश में समुद्री जल के भर जाने से लवण मृदाओं के विकास को बढ़ावा मिलता है।
  • अत्यधिक सिंचाई वाले गहन कृषि क्षेत्रों में विशेष रूप से हरित क्रान्ति वाले क्षेत्रों में उपजाऊ जलोढ़ मृदाएँ भी लवणीय होती जा रही हैं।

मृदा अवकर्षण

  • मृदा की उर्वरता का ह्रास।
  • इसमें मृदा का पोषण स्तर गिर जाता है।
  • अपरदन और दुरुपयोग के कारण मृदा की गहराई कम हो जाती है।
  • भारत में मृदा संसाधनों के क्षय का मुख्य कारक मृदा अवकर्षण है।

मृदा अपरदन

प्राकृतिक तथा मानवीस कारणों से मृदा के आवरण का नष्ट होना मृदा अपरदन कहलाता है।

मृदा अपरदन के कारक के आधार पर इसे पवनकृत एवं जल जनित द्वारा अपरदन में वर्गीकृत कर सकते हैं। पवन द्वारा अपरदन शुष्क एवं अर्द्धशुष्क प्रदेशों में होता है जबकि बहते जल द्वारा अपरदन ढालों पर अधिक होता है इसे हम पुनः दो वर्गों में रखते हैं:-

  • परत अपरदन:- तेज बारिश के बाद मृदा की परत का हटना।
  • अवनालिका अपरदन:- तीव्र ढालों पर बहते जल से गहरी नालियां बन जाती है। चंबल के बीहड़ इसका उदाहरण है।

मृदा अपरदन के प्रमुख कारण

  • मृदा अपरदन के लिए उत्तरदायी कारक:-
  • वनोन्मूलन
  • अतिसिंचाई
  • रासायनिक उर्वरकों का अधिक प्रयोग
  • मानव द्वारा निर्माण कार्य एवं दोषपूर्ण कृषि पद्धति।
  • अनियंत्रित चराई।

मृदा अपरदन रोकन के उपाय

  • वृक्षारोपण।
  • समोच्च रेखीय जुताई।
  • अति चराई पर नियन्त्रण।
  • सीमित सिंचाई।
  • रासायनिक उर्वरकों का उचित प्रयोग।
  • वैज्ञानिक कृषि पद्धति को अपनाना।

मृदा संरक्षण

  • मृदा अपरदन को रोककर उसकी उर्वरता को बनाये रखना ही मृदा संरक्षण है।
  • मृदा के संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए क्या करना चाहिये ?

मृदा संरक्षण के उपाय

  • 15 से 25 प्रतिशत ढाल प्रवणता वाली भूमि पर खेती न करना।
  • सीढ़ीदार खेत बनाना।
  • शस्यावर्तन यानि फसलों को हेरफेर के साथ उगाना।

मृदा संरक्षण के उपाय

  • वृक्षारोपण पेड़:- पौधे, झाड़ियाँ और घास मृदा अपरदन को रोकने में सहायता करते है।
  • समोच्च रेखीय जुताई व मेड़बंदी:- तीव्र ढाल वाली भूमि पर समोच्च रेखाओं के अनुसार जुताई व मेड़ बनाने से पानी के बहाव में रुकावट आती है तथा मृदा पानी के साथ नहीं बहती।
  • पशुचारण पर नियंत्रण:- भारत में पशुओं की संख्या अधिक होने के कारण ये खाली खेतों में आजाद घूमते हैं। इनकी चराई प्रक्रिया को रोककर या नियंत्रित करके मृदा के अपरदन को रोका जा सकता है।
  • कृषि के सही तरीके:- कृषि के सही तरीके अपनाकर मृदा अपरदन को रोका जा सकता है।

We hope that class 11 geography chapter 6 मृदा (Soils) notes in Hindi helped you. If you have any query about class 11 geography chapter 6 मृदा (Soils) notes in Hindi or about any other notes of class 11 geography in Hindi, so you can comment below. We will reach you as soon as possible… 

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