प्राकृतिक वनस्पति (CH-5) Notes in Hindi || Class 11 Geography Book 5 Chapter 5 in Hindi ||

पाठ – 5

प्राकृतिक वनस्पति

In this post we have given the detailed notes of class 11 geography chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति (Natural Vegetation) in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 11 exams.

इस पोस्ट में क्लास 11 के भूगोल के पाठ 5 प्राकृतिक वनस्पति (Natural Vegetation) के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 11 में है एवं भूगोल विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 11
SubjectGeography
Chapter no.Chapter 5
Chapter Nameप्राकृतिक वनस्पति (Natural Vegetation)
CategoryClass 11 Geography Notes in Hindi
MediumHindi
Class 11 Geography Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति in Hindi
Table of Content
3. Chapter – 5 प्राकृतिक वनस्पति

Chapter – 5 प्राकृतिक वनस्पति

परिचय

इस अध्याय में हम प्राकृतिक वनस्पतियों के बारे में पढ़ने वाले हैं।

प्राकृतिक वनस्पति

प्राकृतिक वनस्पति में वे पौधे सम्मिलित किए जाते हैं जो मानव की प्रत्यक्ष या परोक्ष सहायता के बिना उगते हैं और जो अपने आकर, संरचना तथा अपनी आवश्यकताओं को प्राकृतिक पर्यावरण के अनुसार ढाल लेते हैं।

प्राकृतिक वनस्पति के प्रकार

प्रमुख वनस्पति प्रकार तथा जलवायु परिस्थिति के आधार पर भारतीय वनों को पाँच वर्गों में रखा गया है।

  • उष्ण कटिबंधीय सदाबाहर एवं अर्ध – सदाबहार वन।
  • उष्ण कटिबंधीय पर्णपपती वन।
  • उष्ण कटिबंधीय काँटेदार वन।
  • पर्वतीय वन।
  • वेलाचली व अनूप वन।

शोलास वन

नीलगिरी अन्य मलाई और पालनी पहाड़ियों पर पाये जाने वाले शीतोष्ण कटिबंद को शोलास कहा जाता है।

उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन

उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन आर्द्र तथा उष्ण भागों में मिलते हैं। इन क्षेत्रों में औसत वार्षिक वर्षा 200 सेमी से अधिक और सापेक्ष आर्द्रता 70 प्रतिशत से अधिक होती है औसत तापमान 24 डिग्री से होता है। ये वन भारत में पश्चिमी घाट, उत्तर पूर्वी पहाड़ियों एवं अंडमान व निकोबार में पाये जाते हैं।

उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन

  • ये वे वन हैं जो 100 से 200 सेमी . वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में पाये जाते हैं। इन वनों का विस्तार गंगा की मध्य एवं निचली घाटी अर्थात भाबर एवं तराई प्रदेश, पूर्वी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ का उत्तरी भाग, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु तथा केरल के कुछ भागों में मिलते है। प्रमुख पेड़ साल, सागवान, शीशम, चंदन, आम आदि है।
  • ये पेड़ ग्रीष्म ऋतु में अपने पत्ते गिरा देते हैं। इसलिए इन्हें पतझड़ वन भी कहा जाता है। उनकी ऊँचाई 30 से 45 मीटर तक होती है। ये इमारती लकड़ी प्रदान करते हैं। जिससे इनका आर्थिक महत्व अधिक है। ये वन हमारे कुल वन के क्षेत्र के 25 प्रतिशत क्षेत्र में फैले हुए है।

उष्ण कटिबंधीय काँटेदार वन

  • जिन क्षेत्रों में 70 सेंटीमीटर से कम बारिश होती है वहां कटीले वन तथा झाड़ियां पाई जाती है।
  • इस प्रकार की वनस्पति देश के उत्तर पश्चिम भाग में पाई जाती है जिनमें गुजरात राजस्थान छत्तीसगढ़ उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश तथा हरियाणा के कुछ क्षेत्र शामिल हैं।
  • अकाशिया खजूर नागफनी यहां की प्रमुख पादप प्रजातियां है इन वनों के वृक्ष बिखरे हुए होते हैं इनकी जड़ें लंबी तथा जल की तलाश में फैली हुई होती है।
  • पत्तियों का आकार काफी छोटा होता है। इन जंगलों में चूहे खरगोश लोमड़ी भेड़िए शेर सिंह जंगली गधा और घोड़े तथा ऊंट पाए जाते हैं।

पर्णपाती वन

  • यह वन 100 से 200 सेमी . वर्षा वाले क्षेत्रों में पाये जाते हैं। ये सहयाद्रि के पूर्वी ढाल, प्रायद्वीप के उत्तर – पूर्वी पठार, हिमालय की तलहटी के भाबर और तराई क्षेत्रों तथा उत्तर – पूर्वी भारत में पाये जाते हैं।
  • ये वन ग्रीष्म ऋतु में अपने पत्ते गिरा देते हैं। ये कम घने होते हैं। वृक्षों की ऊँचाई अपेक्षाकृत कम होती है।
  • इन वनों की लकड़ी कम कठोर होती है। ये वन लगभग पूरे भारत में पाये जाते है।
  • इन वनों की लकड़ी बहुत उपयोगी होती है।

अनूप वन

  • भारत के उन क्षेत्रों में जहाँ जमीन हमेशा जलयुक्त अथवा आर्द्र होती है वहाँ की प्राकृतिक वनस्पति को वेलांचली या अनूप वन कहते हैं। भारत में इस तरह की आठ आर्द्र भूमियाँ है जो अपने सघन वनों एवं जैव विविधता के लिए विख्यात हैं।
  • भारत में प. बंगाल का सुंदर वन डेल्टा अपने मैंग्रोव वनों के लिए विश्व विख्यात है। इन वनों में टाइगर से लेकर सरीसृप तक बड़े – छोटे जानवर पाये जाते हैं।
  • पर्यावरण संरक्षण, जैवविविधता एवं प्राकृतिक वनस्पतियों के संरक्षण के लिये इन वनों के अस्तित्व की सुरक्षा की आवश्यकता है।

वन क्षेत्र

ये वे क्षेत्र हैं जहां राजस्व विभाग के अनुसार वन होने चाहिये। इसके अन्तर्गत एक निश्चित क्षेत्र को वन क्षेत्र के रुप में अधिसूचित किया जाता है।

वास्तविक वन आवरण

इसके अन्तर्गत वह क्षेत्र आता है जो वास्तव में प्राकृतिक वनस्पतियों के झुरमुट से ढका होता है। भारत में सन् 2001 में वास्तविक वन आवरण केवल 20.55 प्रतिशत था।

सामाजिक वानिकी का अर्थ

सामाजिक वानिकी का अर्थ है पर्यावरणीय, सामाजिक व ग्रामीण विकास में मदद के उद्देश्य से वनों के प्रबंधन में समाज की भूमिका तय करना एवं ऊसर भूमि पर वन लगाना।

सामाजिक वानिकी

सामाजिक वानिकी शब्दावली का प्रयोग सबसे पहले राष्ट्रीय कृषि आयोग ने (1976-79 ई 0) में किया था।

सामाजिक वानिकी के उद्देश्य

  • जनसंख्या के लिए जलावन लकड़ी की उपलब्धता।
  • छोटी इमारती लकड़ी।
  • फलों का उत्पादन बढ़ाना।
  • छोटे – छोटे वन उत्पादों की आपूर्ति करना।

सामाजिक वानिकी के अंग

इसके तीन अंग है :

  • शहरी वानिकी:- शहरों में निजी व सार्वजनिक भूमि जैसे -हरित पट्टी, पार्क, सड़को व रेलमार्गो व औद्योगिक व व्यापारिक स्थलों के साथ वृक्ष लगाना और उनका प्रबंधन करना।
  • ग्रामीण वानिकी:- इसके अंतर्गत कृषि वानिकी और समुदाय कृषि वानिकी को बढ़ावा देना।
  • फार्म वानिकी:- इसके अंतर्गत कृषि योग्य तथा बंजर भूमि पर पेड़ लगाना तथा फसलें उगाना जिससे खाद्यान्न, चारा, ईंधन व फल – सब्जियाँ मिल सकें।

वन्य प्राणियों की संख्या में कमी

  • औद्योगिकी और तकनीकी विकास के कारण वनों का दोहन।
  • खेती, मानवीय बस्ती, सड़कों, खदानों, जलाशयों आदि के लिए जमीन से वनों की सफाई।
  • स्थानीय लोगों के चारे, ईंधन और इमारती लकड़ी के लिए पेड़ों की कटाई।
  • पालतू पशुओं के लिए नए चरागाह की खोज में मानव ने वन्य जीवों और उनके आवासों को नष्ट कर दिया।
  • रजवाड़ों तथा संधांत वर्ग ने शिकार क्रीड़ा बनाया और एक ही बार में सैंकड़ों वन्य जीवों को शिकार बनाया/ व्यापारिक महत्व के लिए अभी भी मारा जा रहा है।
  • जंगलो में आग लगने से।

भारत में वन्य प्राणी संरक्षण

वन्य प्राणी अधिनियम

भारत में वन्य प्राणी अधिनियम 1972 ई . में पास हुआ।

वन्य प्राणी अधिनियम के प्रमुख उद्देश्य

  • वन्य प्राणी अधिनियम के दो प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:-
  • इस अधिनियम के अनुसार कुछ सूचीबद्ध संकटापन्न प्रजातियों को सुरक्षा प्रदान करना।
  • सरकार द्वारा निर्धारित नेशनल पार्कों, पशुविहारों जैसे संरक्षित क्षेत्रों को कानूनी सहायता प्रदान करना।

वन संरक्षण नीति

स्वतंत्रता के पश्चात भारत में पहली बार वन नीति 1952 में लागू की गई थी। सन् 1988 में नई राष्ट्रीय वन नीति वनों के क्षेत्रफल में हो रही कमी को रोकने के लिए बनाई गई थी।

वन संरक्षण नीति के प्रमुख उद्देश्य

  • देश के 33 प्रतिशत भाग पर वन लगाना।
  • पर्यावरण संतुलन बनाए रखना तथा परिस्थितिक असंतुलित क्षेत्रों में वन लगाना।
  • देश की प्राकृतिक धरोहर, जैव – विविधता तथा आनुवांशिक मूल का संरक्षण।
  • मृदा अपरदन और मरुस्थलीकरण को रोकना तथा बाढ़ व सूखा को नियंत्रित करना।
  • निम्नीकृत भूमि पर सामाजिक वानिकी एवं वनरोपण द्वारा वन आवरण का विस्तार करना।
  • वनों की उत्पादकता बढ़ाकर वनों पर निर्भर ग्रामीण जनजातियों को इमारती लकड़ी, ईधन, चारा और भोजन उपलब्ध करवाना और लकड़ी के स्थान पर अन्य वस्तुओं को प्रयोग में लाना।
  • पेड़ लगाने को बढ़ावा देने के लिए तथा पेड़ों की कटाई रोकने के लिए जन – आन्दोलन चलाना, जिसमें महिलाएं भी शामिल हों ताकि वनों पर दबाव कम हो।
  • वन और वन्य जीव संरक्षण में लोगों की भागीदारी।

जीवन मंडल निचय

जीवमंडल निचय (आरक्षित क्षेत्र) विशेष प्रकार के भौमिक और तटीय पारिस्थितिक तंत्र है, जिन्हें यूनेस्को ने मानव और जीवमंडल कार्यक्रम के अन्तर्गत मान्यता प्रदान की है।

जीव मंडल निचय के मुख्य उद्देश्य

जीव मंडल निचय के तीन मुख्य उद्देश्य है

  • संरक्षण
  • विकास
  • व्यवस्था

इसमें क्षेत्र को प्राकृतिक अवस्था में रखा जाता है। सभी प्रकार की वनस्पति और वन जीवों का संरक्षण किया जाता है। उदाहरणतया नंदा देवी, नीलगिरी, सुन्दर वन आदि।

भारत के वे जीव मंडल निचय जिनके नाम यूनेस्को के जीव मंडल निचय विश्व नेटवर्क पर मान्यता प्राप्त हैं

भारत के 14 जीव मंडल निचय हैं, जिनमें से 4 जीव मंडल निचय

  • नीलगिरी
  • नंदादेवी
  • सुंदर वन
  • मन्नार की खाड़ी यूनेस्को द्वारा जीव मंडल निचय विश्व नेटवर्क पर मान्यता प्राप्त हैं।

नीलगिरी जीवमंडल निचय

  • स्थापना:- 1986 (भारत का पहला जीवमंडल निचय)
  • इसमें वायनाड वन्य जीवन सुरक्षित क्षेत्र, नगरहोल, बांदीपुर, मदुमलाई और निलंबूर का सारा वन से ढका ढाल, ऊपरी नीलगिरी पठार, साइलेंट वैली और सिदुवानी पहाड़ियां शामिल हैं।
  • कुल क्षेत्र:- 5,520 वर्ग किलोमीटर
  • प्राकृतिक वनस्पति:- शुष्क/ आद्र पर्णपाती वन, अर्ध सदाबहार और आद्र सदाबहार वन, सदाबहार शोलास, घांस के मैदान और दलदल।
  • संकटापन्न प्राणी:- नीलगिरी ताहर/ शेर जैसी दुम वाला बन्दर।
  • न्य प्राणी:- हाथी, बाघ गौर, संभार, चीतल
  • इसकी स्थलाकृति उबड़ खाबड़ है।
  • पश्चिमी घाट में पाए जाने वाले 80 % फूलदार पौधे इसी निचय में मिलते हैं।

नंदा देवी जीवमंडल निचय

  • स्थान:- उत्तराखंड (चमोली, अल्मोड़ा, पिथोरागढ़ बागेश्वर)
  • शीतोष्ण कटिबंधीय वन पाए जाते हैं।
  • प्रजातियाँ:- सिल्वर वुड, लैटिफोली – ओरचिड और रोडोडेड्रान।
  • वन्य जीव:- हिम तेंदुआ, काला भालू, भूरा भालू, कस्तूरी मृग, हिम – मुर्गा सुनहरा बाज और काला बाज।

सुंदरवन जीवमंडल निच

  • स्थान:- पश्चिम बंगाल, गंगा नदी के दलदली डेल्टा पर
  • क्षेत्र:- 9,630 वर्ग किलोमीटर
  • वन:- मैन्ग्रोव, अनूप, वनाच्छादित द्वीप
  • लगभग 200 रॉयल बंगाल टाइगर
  • मैन्ग्रोव वनों में 170 से ज्यादा पक्षी प्रजातियाँ
  • स्वयं को लवणीय और ताजे जल पर्यावरण के अनुसार ढालते हुए बाघ पानी में तैरते हैं और चीतल, भौंकने वाले मृग, जंगली सूअर और यहाँ तक की लंगूरों जैसे दुर्लभ शिकार भी कर लेते हैं।
  • यहाँ के मैन्ग्रोव वनों में हेरिशिएरा फोमिज नामक इमारती लकड़ी पाई जाती है जो की बहुत बेशकीमती है।

फार्म वानिकी

इसमें किसान अपने खेतों में व्यापारिक महत्व वाले अथवा दूसरे वृक्ष लगाते है।

  • वन – विभाग इसके लिए छोटे और मध्यम किसानों को निःशुल्क पौधे उपलब्ध कराता है।
  • खेतों की मेड़े चरागाह, घास – स्थल घर के पास पड़ी खाली जमीन और पशुओं के बाड़ों में पेड़ लगाए जाते हैं।

प्रोजेक्ट टाईगर तथा प्रोजेक्ट एलिफेंट

प्रोजेक्ट टाईगर (1973 ई .) तथा प्रोजेक्ट एलिफेंट (1992 ई .) में इन प्रजातियों के संरक्षण और उनके प्राकृतिक आवास को बचाने के लिए आरंभ किए गए थे। इनका मुख्य उद्देश्य भारत में बाघों व हाथियों की जनसंख्या के स्तर को बनाए रखना है।

राष्ट्रीय उद्यान

सुरक्षा की दृष्टि से राष्ट्रीय उद्यानों को उच्च स्तर प्रदान किया जाता है। इसकी सीमा में पशुचारण की मनाही है। साथ ही इसकी सीमा में किसी भी व्यक्ति को भूमि अधिकार नहीं मिलता।

अभ्यारण्य

इसमें कम सुरक्षा का प्रावधान है। इसमें वन जीवों की सुरक्षा के साथ – साथ नियंत्रित मानवीय गातिविधियों की अनुमति होती है। इसमें किसी अच्छे कार्य के लिए भूमि का उपयोग हो सकता है।

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