जलवायु (CH-4) Notes in Hindi || Class 11 Geography Book 4 Chapter 4 in Hindi ||

पाठ – 4

जलवायु

In this post we have given the detailed notes of class 11 geography chapter 4 जलवायु (Climate) in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 11 exams.

इस पोस्ट में क्लास 11 के भूगोल के पाठ 4 जलवायु (Climate) के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 11 में है एवं भूगोल विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 11
SubjectGeography
Chapter no.Chapter 4
Chapter Nameजलवायु (Climate)
CategoryClass 11 Geography Notes in Hindi
MediumHindi
Class 11 Geography Chapter 4 जलवायु in Hindi

Chapter – 4 जलवायु

मौसम तथा जलवायु

मौसम वायुमंडल की क्षणिक अवस्था है, जबकि जलवायु का तात्पर्य अपेक्षाकृत लंबे समय की मौसमी दशाओं के औसत से होता है। मौसम जल्दी – जल्दी बदलता है, जैसे कि एक दिन में या एक सप्ताह में, परंतु जलवायु में बदलाव 50 अथवा इससे भी अधिक वर्षों में आता है।

भारतीय मौसम को प्रभावित करने वाले कारक

  • वायु दाब तथा ताप का धरातलीय वितरण।
  • ऊपरी वायु परिसंचरन, वायुराशियों का अन्तर्वाह।
  • वर्षा लाने वाले तंत्र – पश्चिमी विक्षोभ तथा उष्ण कटिबंधीय चक्रवात।

भारतीय मानसून की प्रमुख विशेषताएं

  • ऋतु के अनुसार वायु की दिशा में परिवर्तन होना मानसूनी पवनों का अनिश्चित तथा अनियमित (संदिग्ध) होना।
  • मानसूनी पवनों के प्रादेशिक स्वरूप में भिन्नता होते हुए भी भारतीय जलवायु को व्यापक एकरूपता प्रदान करना।

भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक

भारत विषुवत रेखा के उत्तर में विस्तृत है। कर्क रेखा इसके लगभग मध्य से गुजरती है, हिमालय पर्वत श्रृंखला इसको उत्तर में घेरे हुये है एवं दक्षिण में हिन्द महासागर है। ये परिस्थितियां यहां की जलवायु को निम्न प्रकार से प्रभावित करती है:-

  • आक्षांश:- भारत का दक्षिण भाग विषुवत रेखा एवं कर्क रेखा के बीच में पड़ता है। अतः यहां उष्ण कटिबंधीय प्रभाव रहता है जबकि कर्क रेखा से उत्तर का भाग शीतोष्ण कटिबंध में पड़ता है।
  • पर्वत श्रेणी:- भारत के उत्तर में स्थित हिमालय पर्वत श्रेणी उत्तरी ध्रुव की ओर से आने वाली ठंडी हवाओं को भारत में आने से रोकती है, जिससे भारतीय उपमहाद्वीप में जलवायु का समताकारी स्वरूप बना रहता है। यही पर्वत श्रृंखला मानसूनी पवनों को रोककर वर्षा करने में सहायक होती है।
  • जल एवं स्थल का वितरण:- भारत के प्रायद्वीपीय भाग एक ओर बंगाल की खाड़ी से एवं दूसरी ओर अरब सागर से घिरा होने के कारण यहाँ की जलवायु को प्रभावित करता है जिसके कारण दक्षिण – पश्चिम हवाओं को आर्द्रता ग्रहण करने में सहायता मिलती है।
  • भारत का उत्तरी भाग स्थलबद्ध है इसलिये यहाँ तापमान ग्रीष्म ऋतु में अत्यधिक एवं शीत ऋतु में बहुत कम हो जाता है।
  • इसके अतिरिक्त समुद्रतट से दूरी, समुद्रतल से ऊँचाई एवं उच्चावच भी जलवायु को प्रभावित करते हैं।

भारत की परंपरागत ऋतुएँ

भारत की पंरपरागत ऋतुएँ द्विमासिक आधार पर बनी है इसलिए इनकी संख्या 6 है। इनके नाम हैं- बंसत, मार्च – अप्रैल, ग्रीष्मः मई – जून, वर्षाः जुलाई – अगस्त, शरदः सितंबर – अक्टूबर, हेमंतः नवम्बर – दिसम्बर तथा शिशिरः जनवरी – फरवरी।

कोपेन के अनुसार भारत के जलवायु प्रदेश

कोपेन के अनुसार भारत के जलवायु प्रदेश निम्नलिखित है:-

  • लघु शुष्क ऋतु का मानसूनी प्रकार (Amw):- इस प्रकार की जलवायु पश्चिमी तट के साथ – साथ।
  • ग्रीष्म ऋतु में शुष्क मानसूनी प्रकार (As):- इस प्रकार की जलवायु वाले प्रदेश का विस्तार कोरमंडल तट के साथ – साथ है।
  • उष्ण कटिबंधीय सवाना प्रकार की जलवायु (Aw):- तटवर्ती प्रदेश के कुछ क्षेत्रों को छोड़कर लगभग पूरे प्रायद्वीपीय भारत में इस प्रकार की जलवायु पाई जाती है।
  • अर्धशुष्क स्टेपी जलवायु (BShw):- प्रायद्वीप के अन्दर के भाग में तथा गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, जम्मू और कश्मीर के कुछ भागों में पाई जाती है।
  • उष्ण मरुस्थलीय प्रकार की जलवायु (BWhw):- इस प्रकार की जलवायु केवल राजस्थान के पश्चिमी भाग में पाई जाती है।
  • शुष्क शीत ऋतु वाला प्रदेश (Cwg):- भारत के उत्तरी मैदान के अधिकतर भाग में यह जलवायु पाई जाती है।
  • ठंडी आद्र शीत ऋतु वाला प्रदेश (Dfc):- यह जलवायु पूर्वी क्षेत्र में पाई जाती है।
  • ध्रवीय जलवायु (E):- इस प्रकार की जलवायु कश्मीर और निकटवर्ती पर्वतीय श्रृंखलाओं में पाई जाती है।

अंत: उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (आईटीसीजैड)

  • अंतः उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र विषुवत रेखा पर स्थित एक निम्न वायुदाब वाला क्षेत्र है। इस क्षेत्र में व्यापारिक पवनें विपरीत दिशा से आकर मिलती हैं परिणामस्वरूप वायु ऊपर उठने लगती है।
  • जुलाई के महीने में आई.टी.सी. जेड़ 20° से 25° उत्तरी अक्षांश के आस – पास गंगा के मैदान में स्थित हो जाता है। इसे मानसूनी गर्त भी कहते हैं। यह मानसूनी गर्त, उत्तर व उत्तर – पश्चिमी भारत पर तापीय निम्न वायु के विकास को प्रोत्साहित करता है।
  • आई.टी.सी.जेड़ के उत्तर की ओर खिसकने के कारण दक्षिणी गोलार्द्ध की व्यापारिक पवनें 40 ° तथा 60 ° पूर्वी देशांतरों के बीच विषुवत वृत को पार कर जाती हैं।
  • कोरियोलिस बल के प्रभाव से विषुवत वृत को पार करने वाली इन व्यापारिक पवनों की दिशा दक्षिण – पश्चिम से उत्तर – पूर्व की ओर हो जाती है। यही दक्षिण – पश्चिम मानसून है। शीत ऋतु में आई.टी.सी.जेड़ दक्षिण की ओर खिसक जाता है और पवनों की दिशा भी दक्षिण – पश्चिम से बदलकर उत्तर – पूर्व हो जाती है, यही उत्तर – पूर्व मानसून है।

एल – निनो

  • एल – निनो का शाब्दिक अर्थ है ‘बालक क्रिस्ट/ ईसा‘। यह एक मौसम संबंधी घटना के लिए प्रयोग होने वाली शब्दावली है। जो कि प्रायः दिसम्बर के महीने में क्रिसमस के आस – पास पेरू तट के पास घटित होती है।
  • इसमें पेरू वियन सागरीय धारा जिसे हम्बोल्ट धारा भी कहते हैं। उसका पानी अपेक्षाकृत अधिक गर्म हो जाता है। इस घटना का प्रभाव का विश्व की जलवायु पर देखा जाता है कहीं पर सूखा तो कहीं पर बाढ़ अर्थात अप्रत्यासित घटनाएँ सामने आती हैं। भारत की जलवायु पर भी इसका प्रभाव देखा जाता है।

मानसून

शब्द अरबी भाषा से लिया गया है। मानसून शब्द का अर्थ है पवनों की दिशा में मौसम के अनुसार परिवर्तन।

मानसून विस्फोट

आर्द्रता से लदी पवनें जब अत्यधिक भारी हो जाती हैं तो अपनी अधिशेष नमी को अत्यधिक गर्जन के साथ छोड़ती हैं। जो मूसलाधार वर्षा के रूप में धरातल पर पहुंचती है। इनसे वर्षा इतनी अधिक होती हैं कि कुछ घंटो में एक विस्तृत क्षेत्र को बाढ़ग्रस्त कर देती हैं। दक्षिण पश्चिमी मानसून द्वारा अकस्मात् ही भारी वर्षा शुरू हो जाती है। इस प्राकृतिक घटना को ही मानसून विस्फोट कहते हैं।

मानसून विच्छेद

जब मानसूनी पवनें दो सप्ताह या इससे अधिक समय तक वर्षा करने में असफल रहती है तो वर्षा काल में शुष्क दौर आ जाता है, इसे मानसून विच्छेद कहते हैं। इसका कारण या तो उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का कमजोर पड़ना या भारत में अंत : उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र की स्थिति में परिवर्तन आना है। पश्चिमी राजस्थान में तापमान की विलोमता जलवाष्प से लदी हुई वायु को ऊपर उठने से रोकती है और वर्षा नहीं होती है।

मानसून का निर्वतन

मानसून के पीछे हटने या लौट जाने को मानसून का निवर्तन कहा जाता है। सितंबर के आरंभ से उत्तर – पश्चिमी भारत से मानसून पीछे हटने लगती है और मध्य अक्तूबर तक यह दक्षिणी भारत को छोड़ शेष समस्त भारत से निवर्तित हो जाती है। लौटती हुई मानसून पवनें बंगाल की खाड़ी से जल – वाष्प ग्रहण करके उत्तर – पूर्वी मानसून के रूप में तमिलनाडु में वर्षा करती हैं।

मानसून को समझना

मानसून का स्वभाव एवं रचना – तंत्र संसार के विभिन्न भागों में स्थल, महासागरों तथा ऊपरी वायुमंडल से एकत्रित मौसम संबंधी आँकड़ों के आधार पर समझा जाता है। पूर्वी प्रशांत महासागर में स्थित फ्रेंच पोलिनेशिया के ताहिती (लगभग 18० द . तथा 1490 प .) तथा हिंद महासागर में आस्ट्रेलिया के पूर्वी भाग में स्थित पोर्ट डार्विन (12 ° 30 ‘ द . तथा 131 ° पू .) के बीच पाए जाने वाले वायुदाब का अंतर मापकर मानसून की तीव्रता के बारे में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। भारत का मौसम विभाग 16 कारकों (मापदंडों) के आधार पर मानसून के संभावित व्यवहार के बारे में काफी समय का पूर्वानुमान लगाता है।

भारतीय मौसम विभाग के अनुसार भारत मे ऋतुएं

भारतीय मौसम विभाग के अनुसार भारत में सामान्यतः चार ऋतुएं मानी जाती है। जोकि इस प्रकार हैं:-

  • शीत ऋतु
  • ग्रीष्म ऋतु
  • दक्षिणी – पश्चिमी मानसून की ऋतु
  • मानसून के निवर्तन अर्थात मानसून के लौटोने की ऋतु

ग्रीष्म ऋतु में मौसम की क्रियाविधि

धरातलीय वायुदाब तथा पवनें:-

  • गर्मी का मौसम शुरू होने पर जब सूर्य उत्तरायण स्थिति में आता है, उपमहाद्वीप के निम्न तथा उच्च दोनों ही स्तरों पर वायु परिसंचरण में उत्क्रमण हो जाता है।
  • जुलाई के मध्य तक धरातल के निकट निम्न वायुदाब पेटी जिसे अंत : उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (आई.टी.सी.जेड .) कहा जाता है, उत्तर की ओर खिसक कर हिमालय के लगभग समानांतर 20° से 25° उत्तरी अक्षांश पर स्थित हो जाती है।

जेट – प्रवाह:-

भूपृष्ठ से लगभग 12 किमी की ऊंचाई पर क्षोभमंडल में क्षैतिज दिशा में तेज गति से चलने वाली वायुधाराओं को जेट वायु प्रवाह कहते हैं। शीत ऋतु में पश्चिमी विक्षोभों को भारत में लाने का काम यही जेट स्ट्रीम करती हैं। जेट – स्ट्रीम की स्थिति में परिवर्तन के कारण ही ये विक्षोभ भारत में प्रवेश पाते हैं। इसी प्रकार पूर्वी जेट – प्रवाह उष्ण – कटिबंधीय चक्रवातों को भारत की ओर आकर्षित करता है।

शीतऋतु में मौसम की क्रियाविधि

धरातलीय वायुदाब तथा पवनें:-

  • शीत ऋतु में भारत का मौसम मध्य एवं पश्चिम एशिया में वायुदाब के वितरण से प्रभावित होता है। इस समय हिमालय के उत्तर में तिब्बत पर उच्च वायुदाब केंद्र स्थापित हो जाता है। इस उच्च वायुदाब केंद्र के दक्षिण में भारतीय उपमहाद्वीप की ओर निम्न स्तर पर धरातल के साथ – साथ पवनों का प्रवाह प्रारंभ हो जाता है।
  • मध्य एशिया के उच्च वायुदाब केंद्र से बाहर की ओर चलने वाली धरातलीय पवनें भारत में शुष्क महाद्वीपीय पवनों के रूप में पहुँचती हैं। ये महाद्वीपीय पवनें उत्तर – पश्चिमी भारत में व्यापारिक पवनों के संपर्क में आती हैं। लेकिन इस संपर्क क्षेत्र की स्थिति स्थायी नहीं है।

मानसून के निवर्तन अर्थात मानसून के लौटोने की ऋतु

  • सितम्बर के दूसरे सप्ताह तक दक्षिण – पश्चिम मानसून उत्तरी भारत से लौटने लगता है और दक्षिण से मध्य अक्टूबर तथा दिसम्बर के आरंभ तक लौटता है। दक्षिण विस्फोट के विपरित मानसून पवनों का लौटना काफी क्रमिक होता है।
  • मानसून पवनों के लौटने से आकाश साफ हो जाता है। दिन का तापमान कुछ बढ़ जाता है परन्तु रातें सुखद हो जाती हैं। इस ऋतु में दैनिक तापान्तर अधिक हो जाता है। बंगाल की खाड़ी में पैदा होने वाले चक्रवात दक्षिण पूर्व से उत्तर – पश्चिम दिशा में चलते हैं और पर्याप्त वर्षा करते हैं।

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