मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई, पग घुँघरू बाधि मीरां नाची (CH- 2) Detailed Summary || Class 11 Hindi आरोह (CH- 2) ||

पाठ – 2

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई, पग घुँघरू बाधि मीरां नाची

In this post we have given the detailed notes of class 11 Hindi chapter 2 मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई, पग घुँघरू बाधि मीरां नाची These notes are useful for the students who are going to appear in class 11 board exams

इस पोस्ट में क्लास 11 के हिंदी के पाठ 2 मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई, पग घुँघरू बाधि मीरां नाची के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 11 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 11
SubjectHindi (आरोह)
Chapter no.Chapter 2
Chapter Nameमेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई, पग घुँघरू बाधि मीरां नाची
CategoryClass 11 Hindi Notes
MediumHindi
Class 11 Hindi Chapter 2 मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई, पग घुँघरू बाधि मीरां नाची

Chapter – 2 मीरा के पद

 –मीराबाई

सारांश

मरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरों न कोई

जा के सिर मोर-मुकुट, मेरो पति सोई

छाँड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहैं कोई?

संतन द्विग बैठि-बेठि, लोक-लाज खोयी

असुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम-बलि बोयी

 

अब त बेलि फॅलि गायी, आणद-फल होयी

दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलायी

दधि मथि घृत काढ़ि लियों, डारि दयी छोयी

भगत देखि राजी हुयी, जगत देखि रोयी

दासि मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही

अर्थ मीराबाई कहती हैं कि मेरे तो गिरधर गोपाल अर्थात् कृष्ण ही सब कुछ हैं। दूसरे से मेरा कोई संबंध नहीं है। जिसके सिर पर मोर का मुकुट है, वही मेरा पति है। उनके लिए मैंने परिवार की मर्यादा भी छोड़ दी है। अब मेरा कोई क्या कर सकता है? अर्थात् मुझे किसी की परवाह नहीं है। मैं संतों के पास बैठकर ज्ञान प्राप्त करती हूँ और इस प्रकार लोक-लाज भी खो दी है। मैंने अपने आँसुओं के जल से सींच-सींचकर प्रेम की बेल बोई है। अब यह बेल फैल गई है और इस पर आनंद रूपी फल लगने लगे हैं। वे कहती हैं कि मैंने कृष्ण के प्रेम रूप दूध को भक्ति रूपी मथानी में बड़े प्रेम से बिलोया है। मैंने दही से सार तत्व अर्थात् घी को निकाल लिया और छाछ रूपी सारहीन अंशों को छोड़ दिया। वे प्रभु के भक्त को देखकर बहुत प्रसन्न होती हैं और संसार के लोगों को मोह-माया में लिप्त देखकर रोती हैं। वे स्वयं को गिरधर की दासी बताती हैं और अपने उद्धार के लिए प्रार्थना करती हैं।

पग घुँघरू बांधि मीरां नाची,

मैं तो मेरे नारायण सूं, आपहि हो गई साची

लोग कहँ, मीरा भई बावरी, न्यात कहैं कुल-नासी

विस का प्याला राणी भेज्या, पवित मीरा हॉर्सी

मीरा के प्रभु गिरधर नागर, सहज मिले अविनासी

अर्थ – मीराबाई कहती हैं कि वह पैरों में धुंघरू बाँधकर कृष्ण के समक्ष नाचने लगी है। इस कार्य से यह बात सच हो गई कि मैं अपने कृष्ण की हूँ। उसके इस आचरण के कारण लोग उसे पागल कहते हैं। परिवार और बिरादरी वाले कहते हैं कि वह कुल का नाश करने वाली है। मीरा विवाहिता है। उसका यह कार्य कुल की मान-मर्यादा के विरुद्ध है। कृष्ण के प्रति उसके प्रेम के कारण राणा ने उसे मारने के लिए विष का प्याला भेजा। उस प्याले को मीरा ने हँसते हुए पी लिया। मीरा कहती हैं कि उसका प्रभु गिरधर बहुत चतुर है। मुझे सहज ही उसके दर्शन सुलभ हो गए हैं।

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