पथिक (CH- 3) Detailed Summary || Class 11 Hindi आरोह (CH- 3) ||

पाठ – 3

पथिक

In this post we have given the detailed notes of class 11 Hindi chapter 3 पथिक These notes are useful for the students who are going to appear in class 11 board exams

इस पोस्ट में क्लास 11 के हिंदी के पाठ 3 पथिक के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 11 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 11
SubjectHindi (आरोह)
Chapter no.Chapter 3
Chapter Nameपथिक
CategoryClass 11 Hindi Notes
MediumHindi
Class 11 Hindi Chapter 3 पथिक

Chapter – 3 पथिक

 -रामनरेश त्रिपाठी

सारांश

 

प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला।

रवि के सम्मुख थिरक रही हैं नभ में वारिद-माला।

नीचे नील समुद्र मनोहर ऊपर नील गगन है।

घन पर बैठ, बीच में बिचरूं यही चाहता मन है।

 

रत्नाकर गजन करता है, मलयानिल बहता है।

हरदम यह हौसला हृदय में प्रिये! भरा रहता हैं।

इस विशाल, विस्तृत, महिमामय रत्नाकर के घर के-

कोने-कोने में लहरों पर बैठ फिरू जी भर के।

अर्थ प्रस्तुत कविता में पथिक कहता है कि आकाश में सूर्य के सामने बादलों का समूह हर क्षण नए रूप बनाकर निराले रंग में नाचता प्रतीत हो रहा है। नीचे नीला समुद्र है तथा ऊपर मन को हरने वाला नीला आकाश है। ऐसे में पथिक का मन चाहता है कि वह मेघ पर बैठकर इन दोनों के बीच विचरण करे।

पथिक कहता है कि उसके सामने समुद्र गर्जना कर रहा है और मलय पर्वत स आने वाली सुगंधित हवाएँ भी बह रही हैं। वह प्रिय को संबोधित करता है कि इन दृश्यों से मेरे मन में उत्साह भरा रहता है। मैं भी चाहता हूँ कि लहरों पर बैठकर समुद्र के इस विशालकाय व महिमा से युक्त घर के कोने-कोने को देखें।

निकल रहा हैं जलनिधि-तल पर दिनकर-बिब अधूरा।

कमला के कचन-मदिर का मानों कात कैंगूरा।

लाने को निज पुण्य-भूमि पर लक्ष्मी की असवारी।

रत्नाकर ने निर्मित कर दी स्वर्ण-सड़क अति प्यारी।

 

निर्भय, दृढ़, गभीर भाव से गरज रहा सागर है।

लहरों पर लहरों का आना सुदर, अति सुदर हैं।

कहो यहाँ से बढ़कर सुख क्या पा सकता है प्राणी?

अनुभव करो हृदय से, ह अनुराग-भरी कल्याणी।

अर्थ – पथिक सूर्योदय का वर्णन करते हुए कहता है कि समुद्र की सतह से सूर्य का बिंब अधूरा निकल रहा है अर्थात् आधा सूर्य जल के अंदर है तथा आधा बाहर। ऐसा लगता है मानो यह लक्ष्मी देवी के स्वर्ण-मंदिर का चमकता हुआ कैंगूरा हो। पथिक को लगता है कि समुद्र ने अपनी पुण्य-भूमि पर लक्ष्मी की सवारी लाने के लिए अति प्यारी सोने की सड़क बना दी हो। सुबह सूर्य का प्रकाश समुद्र तल पर सुनहरी सड़क का दृश्य प्रस्तुत करता है।

समुद्र भयरहित, मजबूत व गंभीर भाव से गरज रहा है। उस पर लहरें एक के बाद एक आ रही हैं, जो बहुत सुंदर हैं। वह अपनी प्रिया को कहता है कि हे प्रेममयी मंगलकारी प्रिया! तुम अपने हृदय से इस सौंदर्य का अनुभव करो और बताओ कि यहाँ जो सुख मिल रहा है, क्या उससे अधिक सुख कहीं मिल सकता है? अर्थात् इस सौंदर्य का कोई मुकाबला नहीं है।

जब गभीर तम अद्ध-निशा में जग को ढक लता है।

अतरिक्ष की छत पर तारों को छिटका देता हैं।

सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है।

तट पर खड़ा गगन-गगा के मधुर गीत गाता है।

 

उसमें ही विमुग्ध हो नभ में चद्र विहस देता है।

वृक्ष विविध पत्तों-पुष्पों से तन को सज लेता है।

पक्षी हर्ष सभाल न सकतें मुग्ध चहक उठते हैं।

फूल साँस लेकर सुख की सनद महक उठते हैं।

अर्थ – पथिक बताता है कि जब आधी रात को गहरा अंधकार सारे संसार को ढक लेता है और आकाश की छत पर तारे बिखेर देता है अर्थात् आकाश में तारे चमकने लगते हैं। उस समय मुस्कराते हुए मुख से संसार का स्वामी अर्थात् ईश्वर धीमी गति से आता है और समुद्र तट पर खड़ा होकर आकाश-गंगा के मनमोहक गीत गाता है।

संसार के स्वामी के इस कार्य पर मुग्ध होकर आकाश में चाँद हँसने लगता है। उस समय प्रकृति भी प्रेम से मुग्ध हो जाती है। वृक्ष अपने पत्तों व फूलों से शरीर को सजा लेते हैं। पक्षी भी खुशी को सँभाल नहीं पाते और मुग्ध होकर चहचहाने लगते हैं। फूल भी सुख की आनंद युक्त साँस लेकर महकने लगते हैं।

वन, उपवन, गिरि, सानु, कुंज में मेघ बरस पड़ते हैं।

मेरा आत्म-प्रलय होता हैं, नयन नीर झड़ते हैं।

पढ़ो लहर, तट, तृण, तरु, गिरि, नभ, किरन, जलद पर प्यारी।

लिखी हुई यह मधुर कहानी विश्व-विमोहनहरी।।

 

कैसी मधुर मनोहर उज्ज्वल हैं यह प्रेम-कहानी।

जी में हैं अक्षर बन इसके बनूँ विश्व की बानी।

स्थिर, पवित्र, आनद-प्रवाहित, सदा शांति सुखकर हैं।

अहा! प्रेम का राज्य परम सुदर, अतिशय सुदर हैं।।

अर्थ – पथिक प्रकृति सौंदर्य से अभिभूत है। वह कहता है कि प्रकृति की प्रेमलीला से वन, उपवन, पहाड़, समुद्र तल व वनस्पतियों पर मेघ बरसने लगते हैं। स्वयं पथिक भी भावुक हो जाता है। उसकी आँखों से आँसू बहने लगते हैं। वह अपनी प्रिया से कहता है कि समुद्र की लहरों, किनारों, तिनकों, पेड़ों, पर्वतों, आकाश, किरन व बादलों पर लिखी गई विश्व को मोहित करने वाली कहानी को पढो। यह बहुत प्यारी है।

प्रकृति-सौंदर्य की यह प्रेम-कहानी बहुत मधुर, मनोहर व पवित्र है। पथिक चाहता है कि वह इस प्रेम-कहानी का अक्षर बन जाए और विश्व की वाणी बने। यहाँ सदा आनंद प्रवाहित होता है, पवित्रता है तथा सुख देने वाली शांति है। यहाँ प्रेम का राज्य छाया रहता है तथा यह बहुत सुंदर है।

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