हे भूख! मत मचल, हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर (CH- 8) Detailed Summary || Class 11 Hindi आरोह (CH- 8) ||

पाठ – 8

हे भूख! मत मचल, हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर

In this post we have given the detailed notes of class 11 Hindi chapter 8 हे भूख! मत मचल, हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर These notes are useful for the students who are going to appear in class 11 board exams

इस पोस्ट में क्लास 11 के हिंदी के पाठ 8 हे भूख! मत मचल, हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 11 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 11
SubjectHindi (आरोह)
Chapter no.Chapter 8
Chapter Nameहे भूख! मत मचल, हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर
CategoryClass 11 Hindi Notes
MediumHindi
Class 11 Hindi Chapter 8 हे भूख! मत मचल, हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर

Chapter – 8 हे भूख! मत मचल

-अक्क महादेवी

सारांश

हो भूख ! मत मचल

प्यास, तड़प मत हे

हे नींद! मत सता

क्रोध, मचा मत उथल-पुथल

हे मोह! पाश अपने ढील

 

लोभ, मत ललचा

मद ! मत कर मदहोश

ईर्ष्या, जला मत

अो चराचर ! मत चूक अवसर

आई हूँ सदेश लेकर चन्नमल्लिकार्जुन का

अर्थ – इसमें अक्क महादेवी इंद्रियों से आग्रह करती हैं। वे भूख से कहती हैं कि तू मचलकर मुझे मत सता। सांसारिक प्यास को कहती हैं कि तू मन में और पाने की इच्छा मत जगा। हे नींद ! तू मानव को सताना छोड़ दे, क्योंकि नींद से उत्पन्न आलस्य के कारण वह प्रभु-भक्ति को भूल जाता है। हे क्रोध! तू उथल-पुथल मत मचा, क्योंकि तेरे कारण मनुष्य का विवेक नष्ट हो जाता है। वह मोह को कहती हैं कि वह अपने बंधन ढीले कर दे। तेरे कारण मनुष्य दूसरे का अहित करने की सोचता है। हे लोभ! तू मानव को ललचाना छोड़ दे। हे अहंकार! तू मनुष्य को अधिक पागल न बना। ईष्य मनुष्य को जलाना छोड़ दे। वे सृष्टि के जड़-चेतन जगत् को संबोधित करते हुए कहती हैं कि तुम्हारे पास शिव-भक्ति का जो अवसर है, उससे चूकना मत, क्योंकि मैं शिव का संदेश लेकर तुम्हारे पास आई हैं। चराचर को इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए।

हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर

मँगवाओ मुझसे भीख

और कुछ ऐसा करो

कि भूल जाऊँ अपना घर पूरी तरह

झोली फैलाऊँ और न मिले भीख

 

कोई हाथ बढ़ाए कुछ देने को

तो वह गिर जाए नीचे

और यदि में झूकूं उसे उठाने

तो कोई कुत्ता आ जाए

और उसे झपटकर छीन ले मुझसे।

अर्थ – कवयित्री ईश्वर से प्रार्थना करती है कि हे जूही के फूल को समान कोमल व परोपकारी ईश्वर! आप मुझसे ऐसे-ऐसे कार्य करवाइए जिससे मेरा अह भाव नष्ट हो जाए। आप ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न कीजिए जिससे मुझे भीख माँगनी पड़े। मेरे पास कोई साधन न रहे। आप ऐसा कुछ कीजिए कि मैं पारिवारिक मोह से दूर हो जाऊँ। घर का मोह सांसारिक चक्र में उलझने का सबसे बड़ा कारण है। घर के भूलने पर ईश्वर का घर ही लक्ष्य बन जाता है। वह आगे कहती है कि जब वह भीख माँगने के लिए झोली फैलाए तो उसे कोई भीख नहीं दे। ईश्वर ऐसा कुछ करे कि उसे भीख भी नहीं मिले। यदि कोई उसे कुछ देने के लिए हाथ बढ़ाए तो वह नीचे गिर जाए। इस प्रकार वह सहायता भी व्यर्थ हो जाए। उस गिरे हुए पदार्थ को वह उठाने के लिए झुके तो कोई कुत्ता उससे झपटकर छीनकर ले जाए। कवयित्री त्याग की पराकाष्ठा को प्राप्त करना चाहती है। वह मान-अपमान के दायरे से बाहर निकलकर ईश्वर में विलीन होना चाहती है।

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