पाठ – 3
बिस्कोहर की माटी
In this post we have given the detailed notes of class 12 Hindi chapter 3 बिस्कोहर की माटी These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams
इस पोस्ट में क्लास 12 के हिंदी के पाठ 3 बिस्कोहर की माटी के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Hindi (अंतराल) |
Chapter no. | Chapter 3 |
Chapter Name | बिस्कोहर की माटी |
Category | Class 12 Hindi Notes |
Medium | Hindi |
विश्वनाथ त्रिपाठी का जीवन परिचय
विश्वनाथ त्रिपाठी का जन्म 16 फ़रवरी 1931 में उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले (अब सिद्धार्थनगर) के बिस्कोहर गाँव में हुआ था
शिक्षा: –
- प्रारंभिक शिक्षा गांव से और फिर बलरामपुर कस्बे से प्राप्त की उच्च शिक्षा कानपुर और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी से। पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ से Ph.D की उपाधि प्राप्त की।
कार्य: –
- 15 नवंबर 1958 को उन्हें देवी सिंह बिष्ट महाविद्यालय, नैनीताल में शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया।
- 8 अक्टूबर 1959 को दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज में नियुक्त हुए।
- बाद में दिल्ली विश्वविद्यालय के साउथ कैंपस में अध्यापन।
- 65 वर्ष पूरे करने के बाद 15 फरवरी 1996 को सेवानिवृत्त हुए।
प्रमुख रचनाएँ: –
- हिंदी आलोचना – 1970
- लोकवादी तुलसीदास – 1974
- प्रारंभिक काल – 1975
- मीरा की कविता – 1979
- गंगा स्नान (संस्मरण) – 2006
- गुरुजी की खेती-बारी (संस्मरण) – 2015
- हरिशंकर परसाई (निबंध) – 2007
- कुछ कहानियां : कुछ विचार – 1998
- जैसा कि मैं कह सकता था (कविता संकलन)
- नंगतलाई गांव (स्मृति-कथा) – 2004
- अपना देश-परदेस (विविध लेख और टिप्पणियाँ) – 2010
- ब्योमकेश दरवेश (आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की जीवनी और आलोचना) – 2011
सम्मान: –
- गोकुलचंद्र शुक्ल आलोचना पुरस्कार,
- डॉ। रामविलास शर्मा पुरस्कार
- सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार
- साहित्य सम्मान – हिंदी अकादमी द्वारा
- शांतिकुमारी वाजपेयी पुरस्कार
- शमशेर सम्मान
- मैथिलीशरण गुप्त सम्मान – 2012-13
- व्यास सम्मान – 2013 (‘व्योमकेश दरवेश’ के लिए)
- भाषा सम्मान – साहित्य अकादमी द्वारा
- मूर्तिदेवी पुरस्कार – 2014 (‘व्योमकेश दरवेश’ के लिए)
- भारत भारती सम्मान – 2015
बिस्कोहर की माटी
- बिस्कोहर की माटी के लेखक विश्वनाथ त्रिपाठी के इस ग्रंथ में उनके प्रारंभिक जीवन और ग्रामीण जीवन को शामिल किया गया है।
- उन्होंने ऋतु परिवर्तन सरोवर – तालाब आदि के अनुपम सौन्दर्य का विस्तृत विवरण दिया है। साथ ही उन्होंने पक्षी माता और नर माता का तुलनात्मक अध्ययन किया है। मां जो भी हो वह हमेशा अपने बेटे की रक्षा करती है उसका कल्याण चाहती है। उन्होंने यहां बत्तख के उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया है।
- लेखक ने यहाँ वर्णन किया है कि बरसात के दिनों में ग्रामीण क्षेत्र में किस प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं और यह वातावरण में किस प्रकार हर्षित होता है।
बिस्कोहर की माटी पाठ का सार
प्रस्तुत पाठ बिस्कोहर की माटी में लेखक ने अपने गाँव और उसके प्राकृतिक परिवेश ग्रामीण जीवन शैली गाँव में प्रचलित घरेलू उपचार और अपनी माँ से जुड़ी यादों का का विवरण किया गया है। जिसमें कोईयाँ एक प्रकार का पानी का फूल है। जिसे कुमुद और कोकाबेली भी कहा जाता है। शरद ऋतु में जहां भी पानी इकट्ठा होता है। कोईयाँ फूल उग जाते हैं। शरद की चांदनी में कोईयाँ के पत्ते और तेज चमकीली चांदनी एक जैसी दिखती है।
इस फूल की महक बहुत ही नशीली होती है।
लेखक के अनुसार बच्चे और माँ का रिश्ता भी अद्भुत होता है। बच्चे के पैदा होते ही मां का दूध भोजन के रूप में ग्रहण करते है। नवजात शिशु के लिए दूध अमृत के समान होता है बच्चा न केवल मां से दूध ग्रहण करता है बल्कि उससे संस्कार भी प्राप्त करता है। जो उनके चरित्र और व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करते हैं। बच्चा सुकबुकता है रोता है माँ को मारता है कभी-कभी माँ भी मार देती है फिर भी बच्चा माँ से लिपट रहता है। बच्चा गंध और स्पर्श के मां के पेट से ही भोक्ता है दांत निकलने पर बच्चा टीस्ता है यानी दांतों से सब कुछ काटता है।
चांदनी रात में जब मां बच्चे को चारपाई पर बैठकर दूध पिलाती है तो बच्चे को दूध के साथ-साथ चांदनी का आनंद भी महसूस होता है। यानी वो चांदनी मां की तरह खुशी और प्यार देती हैं। मां से लिपटकर बच्चे का दूध पीना जड़ से चेतन होना यानी मानव जन्म लेने की सार्थकता है। बिसनाथ अभी मां का दूध पीता ही था कि उसके छोटे भाई का जन्म हो गया। जिससे माँ के दूध पर छोटे भाई का अधिकार हो गया और बिसनाथ का दूध छूट गया। बिसनाथ का पालन-पोषण पड़ोसी की कसेरनी दाई ने तब किया जब वह तीन साल के थे। दाई ने मां का स्थान ले लिया यह बिसनाथ पर अत्याचार था।
दिलशाद गार्डन में लेखक बत्तखों को देखता है।
अंडे देते समय बत्तख पानी छोड़कर जमीन पर आ जाती है। लेखक ने एक बत्तख को कई अंडे सेते हुए देखा।
लेखक ने बत्तख की माँ और एक मानव बच्चे के बीच कई समानताएँ पाईं। जैसे बत्तख अपने पंख फैलाकर अपने अंडों को दुनिया की नजरों से दूर रखती है। अपनी नुकीली चोंच से यह अपने पंखों के अंदर नाजुक ढंग से छुपाकर रखती है। हमेशा कौवे पर नजर रखें। इसी तरह मां भी अपने बच्चों को दुनिया की नजरों से बचाती है। वह उन पर आने वाली विपत्ति को भापकर उनकी रक्षा करती है।
गर्मियों की दोपहर में लेखक चुपचाप घर से बाहर निकल जाता था।
लू लगने की स्थिति में मां धोती या कमीज में गांठ बांधकर प्याज को बांध देती थी। लू लगने पर कच्चे आम का पन्ना पिया जाता था। आम को भूनने या उबालने के बाद इसकी चाशनी में गुड़ या चीनी मिलाकर पिया जाता था। उसे शरीर पर लेपा जाता नहाया जाता और उससे सिर धोया जाता। बिस्कोहर में बारिश आने से पहले बादल इस तरह जमा हो जाते हैं कि दिन में ही अंधेरा हो जाता है। कई दिनों तक बारिश होती है जिससे घर की दीवार गिर जाती है और घर गिर जाता है।
जब बारिश आती है तो सभी(शिशु पक्षी) उत्तेजित हो जाती हैं।
बारिश में कई कीड़े भी निकल आते हैं। उमस के कारण मछलियां मरने लगती हैं। दाद – खाज फोड़े – फुंसी पहली बारिश में ठीक हो जाते हैं। मैदानों खेतों और तालाबों में कई तरह के सांप पाए जाते हैं। सांप को देखने में डर और रोमांच दोनों होता है। डोडहा और मजगीदवा विषहीन होते हैं। डोडाहा सांप को वामन जाति का मान कर मारा नहीं जाता है। धामिन भी विषैला नहीं है लेकिन इसकी एक लंबी पूंछ होती है कुश को मुंह से पकड़कर पूंछ से मारे तो अंग सड़ जाएगा। घोर कडाइच भटिहा और गोहुअन खतरनाक हैं जिनमें से गोहुआन सबसे खतरनाक है जिसे फैंटारा भी कहा जाता है।
गांव के लोग प्रकृति के बहुत निकट है।
लेखक के अनुसार फूल न केवल गंध देते हैं बल्कि औषधि भी करते हैं क्योंकि गांव में कई बीमारियों का इलाज फूलों से किया जाता है। फूलों की महक से सांप महामारी देवी डायन आदि का संबंध जुड़ा हुआ है। गुड़हल के फूल को देवी का फूल माना जाता है। बेर के फूल को सूंघने से ततैया का डंक गिर जाता है। आम के फूलों का इस्तेमाल कई बीमारियों के इलाज में किया जाता है।
चेचक में नीम के पत्ते और फूल रोगी के पास रखे जाते हैं।
कमल लेखक के गांव में भी खेलता है।
हिंदुओं के यहां कमल के पत्ते पर भोजन परोसा जाता है। कमल के पत्ते को पुरइन भी कहा जाता है। कमल की नल को भसीण कहते हैं। कमल ककड़ी का उपयोग केवल बिक्री के लिए किया जाता है। कमलगट्टा(कमल बीज) भी खाया जाता है। अपने एक रिश्तेदार के घर में लेखक ने अपनी उम्र से बड़ी एक खूबसूरत महिला को देखा जिसकी सुंदरता लेखक के दिल में बस गई। लेखक ने उस स्त्री को प्रकृति की तरह आकर्षक पाया। कुदरत के तमाम नजारों में जूही की लता चांदनी की छटा फूलों की महक में वो उस औरत को देखने लगी।
लेखक को लगा कि सुंदर प्रकृति स्त्री के रूप में आई है।
लेखक जिस स्त्री को देखकर प्रकृति के सौन्दर्य को भूल गया उसके प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर सका। वह सफेद रंग की साड़ी पहने रहती है और आंखों में कैसी व्यथा लिए दिखती है। वह किसी का इंतजार करती दिख रही है। लेखक के लिए वह हर कला के अवसाद में मौजूद है लेखक के लिए वह हर सुख-दुःख से जोड़ने का सेतु है।
मृत्यु का भाव इस स्मृति के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है।
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