पाठ – 8
कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप
In this post we have given the detailed notes of class 12 Hindi chapter 8 कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams
इस पोस्ट में क्लास 12 के हिंदी के पाठ 8 कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Hindi (आरोह) |
Chapter no. | Chapter 8 |
Chapter Name | कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप |
Category | Class 12 Hindi Notes |
Medium | Hindi |
Chapter – 8 कवितावली
(i) कवितावली (उत्तर-कांड से) प्रसंग में कवि ने अपने समय का यथार्थ चित्रण किया है। कवि का कथन है कि समाज में किसान, बनिए, भिखारी, भाट, नौकर-चाकर, चोर आदि सभी की स्थिति अत्यंत दयनीय है। समाज का उच्च और निम्न वर्ग धर्म-अधर्म का प्रत्येक कार्य करता है। यहाँ तक कि लोग अपने पेट की खातिर अपने बेटा-बेटी को बेच रहे हैं।
पेट की आग संसार की सबसे बड़ी पीड़ा है। समाज में किसान के पास करने को खेती नहीं, भिखारी को भीख नहीं मिलती। व्यापारी के पास व्यापार नहीं तथा नौकरों के पास करने के लिए कोई कार्य नहीं। समाज में चारों ओर बेकारी, भूख, गरीबी और अधर्म का बोलबाला है। अब तो ऐसी अवस्था में दीन-दुखियों की रक्षा करनेवाले श्री राम ही कृपा कर सकते हैं। अंत में कवि समाज में फैली जाति-पाति और छुआछूत का भी – खंडन करते हैं।
(ii) ‘लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप’ प्रसंग लोक-नायक तुलसीदास के श्रेष्ठ महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के लंकाकांड से लिया गया । है। प्रस्तुत प्रसंग में कवि ने लक्ष्मण को शक्ति बाण लगने के पश्चात उनकी मूर्छा-अवस्था तथा राम के विलाप का कारुणिक चित्र प्रस्तुत किया है। यहाँ कवि ने शोक में डूबे राम के प्रलाप तथा हनुमान जी का संजीवनी बूटी लेकर आने की घटना का सजीव अंकन किया है।
कवि ने करुण रस में वीर रस का अनूठा मिश्रण किया है। लक्ष्मण-मूर्छा के पश्चात हनुमान जी जब संजीवनी बूटी लेकर लौट रहे थे तो भरत ने उन्हें राक्षस समझकर तीर मारा था, जिससे वे मूर्च्छित हो गए थे। भरत जी ने उन्हें स्वस्थ कर अपने बाण पर बैठाकर राम जी के पास जाने के लिए कहा था। हनुमान जी भरत जी का गुणगान करते हुए प्रस्थान कर गए थे। उधर श्री रामचंद्र जी लक्ष्मण को हृदय से लगा विलाप कर रहे हैं।
वे एकटक हनुमान जी के आने की प्रतीक्षा में हैं। श्री रामचंद्र अपने अनुज लक्ष्मण को नसीहतें दे रहे हैं कि आप मेरे लिए माता-पिता को छोड़ यहाँ जंगल में चले आए। जिस प्रेम के कारण तुमने सब कुछ त्याग दिया आज वही प्रेम मुझे दिखाओ। श्री राम जी लक्ष्मण को संबोधन कर कह रहे हैं कि हे भाई! जिस प्रकार पंख के बिना पक्षी अत्यंत दीन होता है और मणि के बिना साँप दीन हो जाता है उसी प्रकार आपके बिना भी मेरा जीवन भी अत्यंत दीन एवं असहाय हो जाएगा। राम सोच रहे हैं कि वह अयोध्या में क्या मुँह लेकर जाएंगे। अयोध्यावासी तो यही समझेंगे कि नारी के लिए राम ने एक भाई को गवाँ दिया। समस्त संसार में अपयश फैल जाएगा।
माता सुमित्रा ने लक्ष्मण को मेरे हाथ में यह सोचकर सौंपा था कि मैं सब प्रकार से उसकी रक्षा करूँगा। श्री राम जी के सोचते-सोचते उनकी आँखों से आँसू बहने लगे। वे ! फूट-कूटकर रोने लगे। हनुमान के संजीवनी बूटी ले आने पर श्री राम अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने हनुमान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की। वैद्य ने तुरंत लक्ष्मण का उपचार किया जिससे लक्ष्मण को होश आ गया। राम ने अपने अनुज को हृदय से लगाया। इस दृश्य को देख राम-सेना के सभी सैनिक बहुत प्रसन्न हुए।
हनुमान जी ने पुनः वैद्य को उनके निवास स्थान पर पहुंचा दिया। रावण इस वृत्तांत को सुनकर अत्यधिक उदास हो उठा और व्याकुल होकर कुंभकरण के महल में गया। कुंभकरण को जब रावण ने जगाया तो वह यमराज के समान शरीर धारण कर उठ खड़ा हुआ। रावण ने उसके समक्ष अपनी संपूर्ण कथा का बखान किया। साथ ही हनुमान जी के रण-कौशल और बहादुरी का परिचय भी दिया कि उसने अनेक असुरों का संहार कर दिया है।
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