पाठ – 10
रामचंद्र चंद्रिका
In this post we have given the detailed notes of class 12 Hindi chapter 10 रामचंद्र चंद्रिका These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams
इस पोस्ट में क्लास 12 के हिंदी के पाठ 10 रामचंद्र चंद्रिका के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Hindi (अंतरा) |
Chapter no. | Chapter 10 |
Chapter Name | रामचंद्र चंद्रिका |
Category | Class 12 Hindi Notes |
Medium | Hindi |
केशवदास जीवन परिचय
(1555-1617)
- केशवदास का जन्म बेतबा नदी के तट पर सन 1555 ओडछा नगर मेें हुआ था। ओडछापति महाराज
- इंद्रजीत सिंह उनके प्रधान अश्रयदाता थे वे साहित्य और संगीत धर्मशास्त्र और राजनीति ज्योतिष और वैधक सभी विषयो के गंभीर अध्येता थे।
रचनाएं:- रसिक प्रिया, कृषि प्रिया, रामचंद्रचंद्रिका, वीरसिंह देव चरित, विज्ञान गीता, जहाँगीर जसचंद्रिका और रतनबावनी का रचनाकाल अज्ञात है किंतु उस उनकी सर्वप्रथम रचना माना जाता है।
साहित्यिक विशेषताएं :- भारत के प्राचीन ग्रंथों को सर्वागीण, हिंदी में प्रस्तुत किया, उनकी रचनाओं में संस्कृत की परंपरा को हिंदी में व्यवस्थित रूप में स्थापित किया।
भाषा शैली :- केशव की कल्यभाषा बज्र है। बुंदेली शब्दों का प्रभाव मिलता है।
रामचंद्रचंद्रिका (सारांश)
प्रस्तुत पाठ केशवदास की प्रसिद्ध रचना रामचंद्रचंद्रिका से लिया गया है। प्रथम सवैय में माँ सरस्वती की महिमा, उदारता और वैभव का गुणगान किया है। माँ सरस्वती की महिमा का ऐसा वर्णन ऋषि मुनियो और देवताओं के द्वारा भी संभव नहीं है।
दूसरे छेद सवैया में कवि ने पंचवटी के माहात्मय का सुंदर वर्णन किया है |
अंतिम घंद में अगंद द्वारा किया गया श्रीरामचंद्र जी के गुणों का वर्णन है। वह रावण को समझाते हुए कह रहे है कि राम का वानर, हनुमान समुद्र को लाँधकर लंका में आ गया और तुमसे कुछ करते नही बना और इसी प्रकार तुमसे लक्ष्मण द्वारा खींची गई धनुरेखा भी पार नही की गयी थी तुम श्री राम के प्रताप को पेहचानो।
सरस्वती वंदना
बानी जगरानी की उदारता बखानी जाइ ऐसी मति उदित उदार कौन की भई।
देवता प्रसिद्ध सिद्ध रिषिराज तपबृंद कहि कहि हारे सब कहि न काहू लई।
भावी भूत बर्तमान जगत बखानत है ‘केसोदास’ क्यों हू ना बखानी काहू पै गई।
पति बनैं चारमुख पूत बनैं पाँचमुख नाती बनैं षटमुख तदपि नई नई।।
प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ केशकवदास द्वारा रचित रामचंद्र चन्द्रिका से ली गई है।
संदर्भ:- इसके माध्यम से, कवि माँ सरस्वती की उदारता और वैभव का गुणगान करना चाहता है।
व्याख्या:-
कवि पंकियों के माध्यम से कहता है जगत की माता सरस्वती की उदारता और वैभव का बखान कर सकने वाली ऐसी बुद्धि किसके पास है | देवता और श्रेष्ठ ऋषि मुनि, तपस्वी सभी कह – कहकर हार गए परन्तु कुछ भी नहीं कह पाए| कवी कहते है की यह जगत भूत, वर्तमान और भविष्य का तो बखान करता है परन्तु माँ सरस्वती की उदारता और वैभव का बखान किसी से क्यों नहीं हो पाया ब्रह्मा जिसके पति हो, भगवान शंकर जिसके पुत्र बनते है भगवान कार्तिक्य जिनके नाती हो उनकी महिमा का बखान करने की शक्ति किसके पास है।
विशेष:
- भाषा – ब्रज
- गुण – प्रसाद
- रस – शांत
- तत्सम शब्दों का सुंदर प्रयोग किया है |
- अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया गया है |
पंचवटी-वन-वर्णन
सब जाति फटी दुख की दुपटी कपटी न रहै जहं एक घटी।
निघटी रुचि मीचू घटी हूं घटी जगजीव जतीन की छुटी तटी।
अघओघ की बेरी कटी बिकटी निकटी प्रकटी गुरूज्ञान-गटी।
चहुं ओरनि नाचति मुक्तिनटी गुन धूरजटी वन पंचबटी।।
प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तिया पंचवटी वन वर्णन कवि केशवदास द्वारा रचित है।
संदर्भ:– प्रस्तुत सवैया में केशवदास जी पंचवटी के महात्म्य का वर्णन करना चाहते है।
व्याख्या:- कवि कहते है पंचवटी का महत्व बिना आकार (निर्विकार) ब्रह्म के समान असीमित, अपरिमित और अथाह है। जैसे इंसान की मृत्यु के पश्चात् उसकी आत्मा का परमात्मा से मिलन हो जाता है उसी तरह जीवित व्यक्ति पंचवटी में प्रवेश करते है परमात्मा मे आत्मसात हो जाते है। जीवन के सभी दुखों का नाश हो जाता है। इंसान छल, कपट सब भूल जाता है, पंचवटी में प्रवेश करते ही इंसान का जीवन से मोह बंधन टूट जाता है और उसे मृत्यु का भय नहीं रहता इसके निकट आते ही ज्ञान के प्रकाश की गंगा प्रकट हो जाती है इसके चारो और मोझ रूपी नटी नाचती रहती है। पंचवटी की धूल इतनी पावन है कि इसके स्पर्श मात्र से ही मोक्ष प्राप्त हो जाता है। मोक्ष की इच्छा रखने वालों के लिए पंचवटी प्राणरक्षक बूटी के समान है |
विशेष:-
- भाषा – ब्रज
- घटी हूँ घटी यमक अलंकार
- जगजीव जतीन में अनुप्रास अलंकार
अगंद
सिंधु तर्यो उनको बनरा तुम पै धनुरेख गई न तरी।
बांधोई बांधत हो न बन्यो उन बारिधि बांधिकै बाट करी।
श्रीरघुनाथ- प्रताप की बात तुम्हैं दसकंठ न जानि परी।
तेलनि तूलनि पूंछि जरी न जरी, जरी लंक जराइ-जरी।।
प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तिया कवि केशवदास द्वारा रचित रामचंद्रचंद्रिका से ली गयी है|
संदर्भ:- प्रस्तुत पंक्तियों में अंगद द्वारा भगवान राम के गुणों के बखान का वर्णन है|
व्याख्या:- कवि केशवदास जी बता रहे है की अंगद रावण से कहते है कि राम जी का बानर हनुमान समुद्र को लांघकर लंका में प्रवेश कर गए और तुमसे कुछ भी नहीं हुआ वे आगे कहते है की श्री राम के भाई लक्ष्मण द्वारा खींची गयी धुनु रेखा भी तुमसे पार नहीं हुई | इतने गहरे समुद्र को पार करना किसी के वश में नहीं था | वही उन्होंने उस पर पत्थरों से सेतु बाँध दिया ऐसे प्रतापी वीर भगवान श्रीराम को तुम पहचानों। श्री राम भक्त होने का अनुपाठान तो देखो उनकी पूछ को तेल में भी डुबाकर आग लगाने पर भी हनुमान जी पूछ का कुछ नही बिगड़ा बल्कि उल्टा| उन्होंने अपनी पूछ से सारी लंका को जलाकर भस्म कर दिया|
विशेष:-
- भाषा-`बज्र
- तत्सम शब्दों का सुंदर प्रयोग
- अनुप्रास और यमक अलंकारों का प्रयोग
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