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Home » Class 12 History Notes in Hindi » औपनिवेशक शहर (CH-12) Notes in Hindi || Class 12 History Chapter 12 in Hindi ||

Class 12 History Ch 12 in hindi

औपनिवेशक शहर (CH-12) Notes in Hindi || Class 12 History Chapter 12 in Hindi ||

Posted on October 30, 2021December 24, 2021 by Anshul Gupta

पाठ – 12

औपनिवेशक शहर

In this post we have given the detailed notes of class 12 History Chapter 12 Opniveshik Sheher (Colonial Cities Urbanisation, Planning and Architecture) in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams.

इस पोस्ट में क्लास 12 के इतिहास के पाठ 12 औपनिवेशक शहर (Colonial Cities Urbanisation, Planning and Architecture) के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं इतिहास विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectHistory
Chapter no.Chapter 12
Chapter Nameऔपनिवेशक शहर (Colonial Cities Urbanisation, Planning and Architecture)
CategoryClass 12 History Notes in Hindi
MediumHindi
Class 12 History Chapter 12 औपनिवेशक शहर (Colonial Cities Urbanisation, Planning and Architecture) in Hindi
Class 12 History Chapter 12 औपनिवेशक शहर (Colonial Cities Urbanisation, Planning and Architecture) in Hindi
Explore the topics
पाठ – 12
औपनिवेशक शहर
औपनिवेशिक शासन में शहर
कस्बा
शहरों की स्थिति
18वीं शताब्दी में परिवर्तन: –
औपनिवेशिक रिकॉर्ड: –
उत्तर औपनिवेशिक शहरों में रिकॉर्ड्स संभालकर रखने के कारण
आँकड़े एकत्रित करने में कठिनाइयाँ
औपनिवेशिक संदर्भ में शहरीकरण के पुनर्निर्माण को समझने में जनगणना के आंकड़े किस हद तक उपयोगी हैं?
व्हाइट और ब्लैक टाउन
औपनिवेशिक काल में भवन निर्माण
पहली नवशास्त्रीय (नियोक्लासिकल) शैली: –
दूसरी शैली (नव – गौथिक शैली): –
तीसरी शैली (इंडो – सारासेनिक शैली): –
नए शहरों में सामाजिक जीवन
हिल स्टेशनों का विकास: –
तीन बड़े शहर
मद्रास की बसावट
कलकत्ता में नगर नियोजन
बॉम्बे में वास्तुकला
स्रोत: –

औपनिवेशिक शासन में शहर

  • पश्चिमी विश्व के ज्यादातर भागो में आधुनिक शहर और औद्योगीकरण के साथ सामने आए थे।
  • भारत में कलकत्ता, बम्बई और मद्रास का महत्व शहरों के रूप में तेजी से उभर रहा था। उस समय भारत के ये शहर ब्रिटिश सत्ता के केंद्र बन गए थे।
  • इसी के साथ साथ उस समय बहुत सारे पुराने शहर कमजोर पड़ते जा रहे थे। 
  • खास चीजो का उत्पादन करने वाले बहुत सारे शहर पिछड़ने लगे, क्योंकि वहां पर जिन चीजों को तैयार किया जाता था उनकी माँग घट गई थी।
  • जब अंग्रेजो द्वारा स्थानीय राजाओ को हरा दिया तो शासन के नए केंद्र उभरने लगे। जिससे क्षेत्रीय सत्ता के पुराने केंद्र ढह गए।
  • मछलीपट्टनम, सूरत और श्रीरंगपटम जैसे शहरों का 19वी सदी में काफी ज्यादा विशहरीकरण हुआ। 20वी शताब्दी के शुरूआती समय में केवल 11% लोग शहरों में रहते थे।
  • भारत का ऐतहासिक शहर, दिल्ली 1911 ई० में एक बहुत छोटा – सा कस्बा बनकर रह गया, फिर 1912 ई० में ब्रिटिश भारत की राजधानी बनने के बाद इसमे दोबारा जान आ गई।
  • मछलीपट्टनम 17वी शताब्दी में एक महत्वपूर्ण बन्दरगाह के रूप में विकसित हुआ। 18वी शताब्दी के आखिर में जब व्यापार बम्बई, मद्रास, और कलकत्ता के नए ब्रिटिश बन्दरगाहो पर केंद्रित होने लगा तो उसका महत्व घटता गया।

कस्बा

  • ‘कस्बा’ एक विशिष्ट प्रकार की आर्थिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के केन्द्र हुआ करते थे। 
  • कस्बों में शिल्पकार, व्यापारी, प्रशासक तथा शासक रहते थे। इसे एक प्रकार से शाही शहर और ग्रामीण के बीच का स्थान था।

शहरों की स्थिति

  • औपनिवेशिक काल में तीन प्रमुख बड़े शहर विकसित हुए – मद्रास, कलकत्ता तथा बम्बई । 
  • यह तीनों शहर मुख्यता मत्स्य ग्रहण तथा बुनाई के गाँव थे जो ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी की व्यापारिक कार्यों के कारण महत्वपूर्ण केन्द्र बन गए। बाद में शासन के केन्द्र बने, और इन्हें प्रेसीडेंसी शहर कहा गया। 
  • शहरों का महत्व इस बात पर निर्भर था कि, प्रशासन तथा आर्थिक गतिविधियों का केन्द्र कहाँ है, क्योंकि वहीं रोजगार व व्यापार तंत्र मौजूद होते थे। 
  • मुगलों द्वारा बनाए गए अधिकतर शहर प्रसिद्ध थे, जैसे जनसंख्या के केन्द्रीकरण, अपने विशाल भवनों तथा अपनी शाही शोभा एवं समृद्धि के लिए। जिनमें आगरा, दिल्ली और लाहौर प्रमुख थे, जो शाही प्रशासन के केन्द्र थे।
  • शाही नगर किलेबंद होते थे, उद्यान, मस्जिद, मन्दिर, मकबरे, कारवाँ, सराय, बाजार, महाविद्यालय सभी किले के अन्दर होते थे, तथा विभिन्न दरवाजों से आने – जाने पर नियंत्रण रखा जाता।
  • उत्तर भारत के मध्यकालीन शहरों में “कोतवाल” नामक राजकीय एक अधिकारी नगर के आंतरिक मामलों पर नज़र रखता था और कानून बनाए रखता था।

18वीं शताब्दी में परिवर्तन: –

  • जैसे – जैसे मुगल साम्राज्य का पतन हुआ उसके साथ ही साथ पुराने नगरों का अस्तित्व समाप्त होता गया और जिससे क्षेत्रीय शक्तियों का विकास हुआ जिस कारण से नये – नये  नगर बनने लगे। इनमें लखनऊ, हैदराबाद, पूना, नागपुर, बड़ौदा तथा तंजौर आदि उल्लेखनीय हैं। 
  • व्यापारी, प्रशासक, शिल्पकार तथा अन्य व्यवसायी पुराने नगरों से यहाँ आने लगे।
  • यहाँ उनको काम तथा संरक्षण उपलब्ध था। चूंकि राज्यों के बीच युद्ध होते रहते थे इसलिए भाड़े के सैनिकों के लिए भी काम था। 
  • मुगल साम्राज्य के अधिकारियों ने कस्बे और छोटे स्थायी बाजार की स्थापना की। इन शहरी केन्द्रों में यूरोपीय कम्पनियों ने भी अधिकार जमा लिया 
  • पुर्तगालियों ने पणजी में, डचों ने मछलीपट्टनम्, अंग्रेजों ने मद्रास तथा फ्रांसीसियों ने पांडिचेरी में अपने व्यापार केन्द्र खोल लिए। 
  • 18वीं शताब्दी में स्थल आधारित साम्राज्यों का स्थान जलमार्ग आधारित यूरोपीय साम्राज्यों ने ले लिया,  जिससे भारत में पूँजीवाद और वाणिज्यवाद को बढ़ावा मिलने लगा। 
  • मध्यकालीन शहरों – सूरत, मछलीपट्टनम् तथा ढाका का पतन हो गया । 
  • प्लासी युद्ध के पश्चात् अंग्रेजी व्यापार में वृद्धि हुई और मद्रास, कलकत्ता तथा बम्बई जैसे शहर आर्थिक राजधानियों के रूप में स्थापित हुए। 
  • ये शहर औपनिवेशिक प्रशासन और सत्ता के केन्द्र बन गये। 
  • इन शहरों को नये तरीके से बसाया गया और भवनों तथा संस्थानों का निर्माण किया गया। रोजगार के विकास साथ ही यहाँ लोगों का आगमन भी तेज हो गया।

 औपनिवेशिक रिकॉर्ड: –

  • ब्रिटिश सरकार ने विस्तृत रिकॉर्ड रखा, नियमित रूप से सर्वेक्षण किया,  जनसंख्या डाटा एकत्र किया और अपने व्यापारिक मामलों को विनियमित करने के लिए अपनी व्यापारिक गतिविधियों के आधिकारिक रिकॉर्ड प्रकाशित किए। 
  • ब्रिटिशों ने भी मानचित्रण शुरू कर दिया क्योंकि उनका मानना था यह स्थलाकृति को समझने, विकास की योजना बनाने, सुरक्षा बनाए रखने और वाणिज्यिक गतिविधियों की संभावनाओं को समझने में मदद करते हैं। 
  • उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध से ब्रिटिश सरकार ने भारतीय प्रतिनिधियों को शहरों में बुनियादी सेवाओं के संचालन के लिए और निर्वाचित करने के लिए जिम्मेदारियां देनी शुरू कर दी और इसने नगरपालिका करों का एक व्यवस्थित वार्षिक संग्रह शुरू किया। 
  • सबसे पहले अखिल भारतीय जनगणना का पहला प्रयास 1872 ई० में किया गया। इसके बाद 1881  10 वर्षीय(प्रत्येक 10 वर्ष में होने वाली) जनगणना एक नियमित व्यवस्था बन गई। जिससे शहरों में जलापूर्ति, निकासी, सड़क निर्माण, स्वास्थ्य व्यवस्था तथा जनसंख्या के फैलाव पर नियंत्रण किया जा सके तथा वार्षिक नगरपालिका कर वसूला जा सकें।
  • कई बार स्थानीय लोगों द्वारा मृत्यु दर, और बीमारी के बारे में गलत जानकारी दी गई। हमेशा ये रिपोर्ट नहीं की जाती थीं। कभी कभी ब्रिटिश सरकार द्वारा रखी गई रिपोर्ट और रिकॉर्ड भी पक्षपातपूर्ण थे।
  • हालांकि, अस्पष्टता और पूर्वाग्रह के बावजूद, इन अभिलेखों और आंकड़ों ने औपनिवेशिक शहरों के बारे में अध्ययन करने में मदद की।

उत्तर औपनिवेशिक शहरों में रिकॉर्ड्स संभालकर रखने के कारण 

  • सुचारु रूप से चलाने के लिए आंकड़े और जानकारियों के आधार पर रिकॉर्ड को संभाल कर रखे गए । 
  • व्यापारिक गतिविधियों का विस्तृत ब्यौरा व्यापार को कुशलता से चलने लिए। 
  • शहरों के विस्तार के साथ शहरी नागरिकों के रहन – सहन, आचार – विचार, शैक्षिक जागरूकता, राजनीतिक रूझान आदि का अध्ययन करने के लिए। 
  • किसी स्थान की भौगोलिक बनावट और भू – दृश्यों को भलीभाँति समझने के बाद उन स्थानों पर शहरीकरण, साम्राज्य विस्तार आदि करने के लिए  भी रिकॉर्ड को संभाल कर रखा गया। 
  • जनसंख्या के आकार में होने वाली सामाजिक बढ़ोत्तरी का अध्ययन करके उसके अनुसार प्रशासनिक तौर – तरीकों, नियम – कानूनों आदि को बनाने तथा उनका कार्य सुनिश्चित करने के लिए।

आँकड़े एकत्रित करने में कठिनाइयाँ

  • लोगों द्वारा सही जानकारी नहीं दी गई क्योंकि लोगों को यह लगता था कि अंग्रेजी शासन फिर से कोई नया कानून उन तक पहुंचने वाला है। 
  • मृत्यु दर और बीमारियों के आंकड़े एकत्र करना मुश्किल था। 

औपनिवेशिक संदर्भ में शहरीकरण के पुनर्निर्माण को समझने में जनगणना के आंकड़े किस हद तक उपयोगी हैं?

  • ये डेटा जनसंख्या की सही संख्या के साथ – साथ श्वेत और अश्वेतों की कुल जनसंख्या जानने के लिए उपयोगी हैं।
  • ये आंकड़े हमें यह भी बताते हैं कि भयानक या घातक बीमारियों से लोगों की कुल संख्या या कुल आबादी किस हद तक प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुई है। 
  • जनगणना के आंकड़े हमें विभिन्न समुदायों की कुल संख्या, उनकी भाषा, उनके कार्यों और आजीविका के साधनों के साथ – साथ उनकी जाति और धर्म के बारे में भी पूरी जानकारी प्रदान करते हैं।

व्हाइट और ब्लैक टाउन

  • औपनिवेशिक शहरों में गोरों (अंग्रेजों) और कालों (भारतीयों) की अलग – अलग बस्तियाँ होती थीं। 
  • उस समय के लेखन में भारतीयों की बस्तियों को “ब्लैक टाउन” और गोरों की बस्तियों को “व्हाइट टाउन” कहा जाता था। 
  • इन शब्दों का प्रयोग नस्ल के आधार पर भेद प्रकट करने के लिए किया जाता था। अंग्रेजों की राजनीतिक सत्ता की मजबूती के साथ ही यह नस्ली भेद भी बढ़ता गया। 
  • इन दोनों बस्तियों के मकानों भी में अंतर होता था। भारतीय एजेंटों और बिचौलियों ने बाजार के आस – पास व्हाइट टाउन में परम्परागत ढंग के मकान बनवाये। सिविल लाइन्स में बँगले होते थे। सुरक्षा के लिए इनके आस – पास छावनियाँ भी बसाई जाती थी। 
  • व्हाइट् टाउन साफ सुथरे होते थे जबकि ब्लैक टाउन गंदे होते थे। यहाँ बीमारी फैलने का डर होता था।

औपनिवेशिक काल में भवन निर्माण

  • औपनिवेशिक काल में भवन निर्माण की तीन शैलियाँ प्रचलन में आई।
    • पहली नवशास्त्रीय (नियोक्लासिकल) शैली: – 

      • इसमें बड़े – बड़े स्तंभों के पीछे रेखागणितीय सरंचना पाई जाती थी। 
        • जैसे: – बम्बई का टाउन हॉल व एलिफिस्टन सर्कल। 
    • दूसरी शैली (नव – गौथिक शैली): – 

      • इसमें ऊँची उठी हुई छत, नोकदार मेहराब बारीक साज – सज्जा देखने को मिलती है, 
        • जैसे: – सचिवालय, बम्बई विश्वविद्यालय, बम्बई उच्च न्यायालय।
    • तीसरी शैली (इंडो – सारासेनिक शैली): – 

      • इसमें भारतीय और यूरोपीय शैलियों का मिश्रण था। 
      • इसका प्रमुख उदाहरण है: – गेटवे ऑफ इंडिया, बम्बई का ताजमहल होटल।

नए शहरों में सामाजिक जीवन

  • शहरों लोगों के जीवन में हमेशा अमीर और गरीब के बीच एक बड़ी असमानता थी। 
  • नई परिवहन सुविधाएं जैसे घोड़ा गाड़ी, रेलगाड़ी, बसें विकसित की गई थीं। लोगों ने अब परिवहन के नए मोड का उपयोग करके घर से कार्यस्थल तक की यात्रा शुरू की। 
  • कई सार्वजनिक स्थानों का निर्माण किया गया था, 
    • जैसे 20 वीं शताब्दी में सार्वजनिक पार्क, थिएटर, और सिनेमा हॉल बनवाए गए। 
    • इन स्थानों ने सामाजिक संपर्क के मनोरंजन और अवसर प्रदान किया।
  • लोग शहरों की ओर पलायन करने लगे क्योंकि शहरों में क्लर्कों, शिक्षकों, वकीलों, डॉक्टरों, इंजीनियरों और एकाउंटेंट की मांग थी। 
  • बहस और चर्चा का एक नया सार्वजनिक क्षेत्र उभरा। सामाजिक मानदंडों, रीति – रिवाजों और प्रथाओं पर सवाल उठाए जाने लगे। 
  • उन्होंने नए अवसर प्रदान किये। महिलाओं के भी लिए अवसर थे। इसने महिलाओं को अपने घर से बाहर निकलने और सार्वजनिक जीवन में अधिक दिखाई देने का मौका प्रदान किया। 
  • उन्होंने शिक्षक, रंगमंच और फिल्म अभिनेत्री, घरेलू कामगार कारखानेदार आदि के रूप में नए पेशे में प्रवेश किया। 
  • मध्यम वर्ग की महिलाओं ने अपने आप  को आत्मकथा, पत्रिकाओं और पुस्तकों के माध्यम से व्यक्त करना शुरू कर दिया। 
  • परंपरावादियों को इन सुधारों की आशंका थी, उन्होंने समाज के मौजूदा शासन और पितृसत्तात्मक व्यवस्था को तोड़ने की आशंका जताई।
  • जिन महिलाओं को घर से बाहर जाना पड़ा, उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा और वे उन वर्षों में सामाजिक नियंत्रण की वस्तु बन गईं। 
  • गरीब अवसर की तलाश में शहरों में आ गए, कुछ लोग जीवन के नए तरीके से जीने और नई चीजों को देखने की इच्छा के लिए शहरों में आए।
  • शहरों में जीवन महंगा था, नौकरियां निश्चित नहीं थीं और कभी – कभी प्रवासी पैसे बचाने के लिए अपने परिवार को मूल स्थान पर छोड़ देते थे। प्रवासियों ने तमाशा (लोक रंगमंच) और स्वांग (व्यंग्य) में भी भाग लिया और इस तरह से उन्होंने शहरों के जीवन को एकीकृत करने का प्रयास किया।

हिल स्टेशनों का विकास: –

  • ब्रिटिश सरकार ने ब्रिटिश सेना की आवश्यकता के लिए शुरू में हिल स्टेशन विकसित करना शुरू किया। गोरखा युद्ध (1815 – 16) के दौरान शिमला (वर्तमान शिमला) की स्थापना हुई। 
  • एंग्लो – मराठा युद्ध से माउंट आबू (1818) का विकास हुआ। दार्जिलिंग को 1835 में सिक्किम के शासक से लिया गया था। 
  • पहाड़ियों को ठंडी जलवायु को सैनिटेरियम (वे स्थान जहाँ सैनिकों को आराम और बीमारी से उबरने के लिए भेजा जा सकता था) के रूप में देखा जाता था क्योंकि ये क्षेत्र हैजा, मलेरिया आदि बीमारियों से मुक्त थे। 
  • पहाडी क्षेत्र और स्टेशन यूरोपीय शासकों और अन्य कुलीन वर्ग के लिए आकर्षक स्थान बन गए। गर्मियों के मौसम के दौरान मनोरंजन के लिए लोग नियमित रूप से इन स्थानों पर जाते थे। 
  • बाद में रेलवे के परिचय ने इन स्थानों को अधिक सुगम और उच्च और मध्यम वर्ग के भारतीयों जैसे महाराजा, वकील और व्यापारियों ने भी नियमित रूप से इन स्थानों पर जाने लगे। 
  • पहाड़ी क्षेत्र भी अर्थव्यवस्था के बारे में महत्वपूर्ण थे क्योंकि चाय बागान, कॉफी बागान इस क्षेत्र में विकसित हुए।

तीन बड़े शहर

  • न बड़े शहरो – मद्रास, कलकत्ता तथा बम्बई का विकासक्रम । 
    • अंग्रजी ईस्ट इंडिया कंपनी की व्यापारिक गतिविधियों के कारण यह शहर व्यपार के महत्वपूर्ण केंद्र बन गए।
    • कम्पनी के एजेंट 1639 ई० में मद्रास तथा 1690 ई० में कलकत्ता में बस गए।
    • 19वी शताब्दी के मध्य तक ये सब कस्बे बड़े शहर बन गए थे।
    • 18 वी शताब्दी में राजनीतिक तथा व्यपारिक पुनर्गठन के साथ पुराने नगर पतनोन्मुख(पतन की और जाने लगे) हुए और नए नगरो का विकास होने लगा।
    • नयी क्षेत्रीय ताकतों का विकास क्षेत्रीय राजधानियों लखनऊ, हैदराबाद, श्रीरंगपट्टनम, पूना (आज का पुणे), नागपुर, बड़ौदा और तंजोर के बढ़ते महत्त्व से प्रचलित हुआ।
    • व्यपारी, प्रशासक, शिल्पकार तथा अन्य लोग पुराने मुगल केंद्रों से इन नयी राजधानियों की ओर कम तथा संरक्षण की तलाश में आने लगे।
    • पुर्तगालियों ने 1510 ई० में पणजी में, डचों ने 1605 ई० में मछलीपट्टनम में, अंग्रेज ने मद्रास में 1639 ई० में तथा फ्रांसीसियों ने 17673 ई० में पांडेचेरी (आज का पदुचेरी) में बस्तियों को स्थापित किया।

मद्रास की बसावट

  • कंपनी ने सबसे पहले सूरत में अपना केंद्र स्थापित किया और पूर्वी तट पर कब्ज़ा करने की कोशिश की। ब्रिटिश और फ्रांसीसी दक्षिण भारत में लड़ाई में लगे थे, लेकिन 1761 में फ्रांस हर गया और, मद्रास सुरक्षित हो गया और वाणिज्यिक केंद्र के रूप में विकसित होने लगा। 
  • फोर्ट सेंट जॉर्ज एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया यह वह जगह है जहां यूरोपीय लोग रहते थे और यह अंग्रेजी लोगो के लिए आरक्षित था। 
  • अधिकारियों को भारतीयों से शादी करने की अनुमति नहीं थी। हालांकि, अंग्रेजी डच के अलावा, पुर्तगाली को किले में रहने की अनुमति दी गई थी क्योंकि वे सब यूरोपीय और ईसाई थे। 
  • मद्रास का विकास गोरों की आवश्यकता के अनुसार किया गया था। काला शहर(ब्लैक टाउन), भारतीयों का बसना, पहले यह किले के बाहर था लेकिन बाद में इसे स्थानांतरित कर दिया गया था। 
  • न्यू ब्लैक टाउन मंदिर और बाजार के आसपास रहने वाले क्वार्टर के साथ पारंपरिक भारतीय शहर जैसा था जाति विशेष के मोहल्ले थे। 
  • मद्रास का विकास में आसपास के कई गांवों को शामिल करके किया गया। मद्रास शहर ने स्थानीय समुदायों के लिए कई अवसर प्रदान किए।
  • अलग अलग समुदाय मद्रास शहर में अपनी विशिष्ट नौकरी करते हैं, विभिन्न समुदायों के लोग ब्रिटिश सरकार की नौकरी के लिए प्रतिस्पर्धा करने लगे। 
  • धीरे – धीरे परिवहन प्रणाली विकसित होने लगी। मद्रास के शहरीकरण का मतलब गांवों के बीच के क्षेत्रों को शहर के भीतर लाना था।

कलकत्ता में नगर नियोजन 

  • कलकत्ता शहर का विकास सुतानाती, कोलकाता और गोविंदपुर नामक तीन गाँवों से हुआ था। कंपनी ने गोविंदपुर गाँव की एक साइट को वहाँ एक किले के निर्माण के लिए मंजूरी दे दी।
  • कलकत्ता में नगर नियोजन धीरे-धीरे फोर्ट विलियम से दूसरे हिस्सों में फैल गई। कलकत्ता के नगर नियोजन में लॉर्ड वेलेजली द्वारा बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सरकार की सहायता से लॉटरी प्लान द्वारा नगर नियोजन के कार्य को आगे बढ़ाया गया। नगर नियोजन के लिए फंड लॉटरी द्वारा उठाए गए थे। 
  • कलकत्ता के लिए एक नया नक्शा बनाया गया, शहर में सड़कें बनाईं। कलकत्ता को स्वच्छ और रोग मुक्त बनाने के लिए कई झोपड़ियों और बस्तियों को हटा किया गया और इन लोगों को कलकत्ता के बाहरी इलाके में स्थानांतरित कर दिया गया। 
  • शहर में बार-बार आग लगने के कारण सख्त भवन नियमन हो गया। छज्जे वाली छत पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और पक्की की छत को अनिवार्य कर दिया गया था। 
  • उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में शहर में आधिकारिक हस्तक्षेप अधिक कठोर हो गया।
  • ब्रिटिशों ने अधिक झोपड़ियों को हटा दिया और अन्य क्षेत्रों की कीमत पर शहर के ब्रिटिश हिस्से को विकसित किया। 
  • इन नीतियों ने सफेद शहर और काले शहर ने  नस्लीय विभाजन को और गहरा कर दिया और स्वस्थ और अस्वस्थ के नए विभाजन में और तेजी आई। धीरे – धीरे इन नीतियों के खिलाफ जनता का विरोध हुआ
  • भारतीयों में साम्राज्यवाद विरोधी भावना और राष्टवाद को मजबूत किया। 
  • ब्रिटिश चाहते थे कि बॉम्बे , कलकत्ता और मद्रास जैसे शहर ब्रिटिश साम्राज्य की भव्यता और अधिकार का प्रतिनिधित्व करें। नगर नियोजन का उद्देश्य पश्चिमी सौंदर्य विचारों के साथ – साथ उनके सावधानीपूर्वक और तर्कसंगत योजना और ठीक ढंग से पूरा करना का प्रतिनिधित्व करना था।

बॉम्बे में वास्तुकला

  • सरकारी भवन मुख्य रूप से रक्षा, प्रशासन और वाणिज्य जैसी कार्यात्मक जरूरतों की सेवा किया करते हैं, लेकिन वे अक्सर राष्ट्रवाद, धार्मिक महिमा और शक्ति के विचारों का प्रदर्शन करने के लिए होते हैं। 
  • बॉम्बे के पास शुरू में सात द्वीप हैं, बाद में यह औपनिवेशिक भारत की वाणिज्यिक राजधानी बन गया और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का केंद्र भी। 
  • बंबई बंदर गाह मालवा से, सिंध और राजस्थान का विकास हुआ और कई भारतीय व्यापारी भी अमीर हो गए। 
  • बंबई ने भारतीय पूँजीपति वर्ग का विकास किया जो पारसी, मारवाड़ी, कोंकणी, मुस्लिम, गुजराती, बनिया, बोहरा, यहूदी और आर्मीनियाई जैसे विविध समुदायों से आया। 
  • कपास की मांग में वृद्धि, अमेरिकी गृहयुद्ध के समय और 1869 में स्वेज नहर के खुलने के दौरान बॉम्बे के आगे आर्थिक विकास हुआ। 
  • बॉम्बे को भारत के सबसे महत्वपूर्ण शहर में से एक घोषित किया गया था। बंबई में भारतीय व्यापारियों ने सूती मिलों और भवन निर्माण गतिविधियों में निवेश करना शुरू कर दिया।
  • कई नई इमारतों का निर्माण किया गया था लेकिन उन्हें यूरोपीय शैली में बनाया गया था । यह सोचा गया था. 

स्रोत: – 

  1. ईस्ट इंडिया कंपनी के रिकॉर्ड
  2. जनगणना रिपोर्ट
  3. नगरपालिका रिपोर्ट 
  • 1900-1940 की अवधि के दौरान शहरी आबादी लगभग 10 % से बढ़कर 13 % हो गई। 
  • 18 वीं शताब्दी के अंत के दौरान मद्रास , बॉम्बे और कलकत्ता महत्वपूर्ण बंदरगाहों के रूप में विकसित हो गए थे। 
  • परिवहन के नए साधनों जैसे घोड़े से खींची जाने वाली गाड़ी, ट्राम , बस आदि के विकास ने लोगों को अपने काम के स्थानों से दूर के स्थान पर रहने की सुविधा प्रदान की। 
  • हर जगह के शासक भवनों के माध्यम से अपनी शक्ति को व्यक्त करने का प्रयास करते थे । कई भारतीयों ने वास्तुकला की यूरोपीय शैलियों को आधुनिकता और सभ्यता के प्रतीक के रूप में अपनाया।

 

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