रोजगार- संवृद्धि, अनौपचारिकीकरण एवं अन्य मुद्दे (CH-7) Notes in Hindi|| Class 12 Indian Economics Chapter-7 in Hindi ||

पाठ – 7

रोजगार- संवृद्धि, अनौपचारिकीकरण एवं अन्य मुद्दे

In this post we have given the detailed notes of class 12 Indian Economics Chapter 7 रोजगार- संवृद्धि, अनौपचारिकीकरण एवं अन्य मुद्दे (Employment: Growth, Informalisation and Related Issues) in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams.

इस पोस्ट में क्लास 12 के भारतीय अर्थशास्त्र के पाठ 7 रोजगार- संवृद्धि, अनौपचारिकीकरण एवं अन्य मुद्दे (Employment: Growth, Informalisation and Related Issues)  के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं अर्थशास्त्र विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectIndian Economics (भारतीय अर्थशास्त्र)
Chapter no.Chapter 7
Chapter Nameरोजगार- संवृद्धि, अनौपचारिकीकरण एवं अन्य मुद्दे (Employment: Growth, Informalisation and Related Issues)
CategoryClass 12 Economics Notes in Hindi
MediumHindi
Class 12 Indian Economics Chapter 7 रोजगार- संवृद्धि, अनौपचारिकीकरण एवं अन्य मुद्दे (Employment: Growth, Informalisation and Related Issues) in Hindi
Table of Content
2. रोजगार- संवृद्धि, अनौपचारिकीकरण एवं अन्य मुद्दे

बेरोजगारी क्या है?

एक ऐसी स्थिति जिसमे लोग प्रचलित मजदूरी दर पर काम करना चाहते है और कर भी सकते है परन्तु फिर भी उन्हें काम नहीं मिलता, बेरोज़गारी कहलाती है। 

श्रमिक/मजदूर

किसी भी प्रकार की वस्तुओ और सेवाओं के उत्पादन में लगा एक व्यक्ति श्रमिक/मजदूर कहलाता है।     

श्रमिकों/मजदूरों के प्रकार 

  • श्रमिकों को मुख्य रूप से दो भागो में बाटा जाता है। 

    • स्व-नियोजित मजदूर: ऐसे मजूदर जो अपने ही व्यवसाय या व्यापार में लगे होते है स्वनियोजित मजदूर कहलाते है। उदहारण : अपने ही खेत में काम करने वाला एक किसान, स्वयं की फैक्ट्री में काम करने वाला एक व्यक्ति आदि। 
      • भारत के ग्रामीण क्षेत्र में स्व नियोजित मजदूरों की संख्या अधिक है। 
      • ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश लोग स्वयं के खेतों में कार्यरत है जिसमें वह अपने ही खेतों में खेती करते हैं एवं गैर प्राथमिक क्रियाओं का ज्यादा विकास ना होने के कारण मजदूरों के पास कार्य करने के कम अवसर हैं इसी वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में स्व नियोजित मजदूरों की संख्या ज्यादा है। 
    • भाड़े के मजदूर: वह मजदूर जो दुसरो के लिए काम करते है एवं काम के बदले मजदूरी अथवा वेतन प्राप्त करते है भाड़े के मजदूर कहलाते है। 
      • उदाहरण के लिए: स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक, किसी बड़ी कंपनी में काम करने वाले मैनेजर आदि। 
      • भारत के शहरी क्षेत्रों में भाड़े के मजदूरों की संख्या ज्यादा है। 
      • शहरी क्षेत्रों में कुशल श्रमिकों की अधिक संख्या एवं विकसित गैर प्राथमिक क्षेत्र के कारण भाड़े के मजदूर अधिक है। 
      • भाड़े के मजदूरों को मुख्य  रूप से निम्नलिखित दो भागो में बाटा  जाता है।  
        • नियमित मजदूर
          • वह कर्मचारी जिन्हे मालिकों द्वारा स्थाई रूप से काम पर रखा जाता है नियमित कर्मचारी कहलाते है। 
          • इन्हें वेतन के साथ-साथ कई अन्य सुविधाएं जैसे कि भविष्य निधि पेंशन आदि भी दी जाती है। 
        • अनियमित मजदूर 
          • वह मजदूर जिन्हें मालिकों द्वारा दैनिक मजदूरी पर रखा जाता है अर्थात स्थाई रूप से काम पर नहीं रखा जाता अनियमित मजदूर कहलाते हैं। 
          • इन्हें वेतन के अलावा अन्य सुविधाएं जैसे कि भविष्य निधि पेंशन आदि नहीं दी जाती। 
          • भारत के ग्रामीण क्षेत्र में अनियमित मजदूरों की संख्या अधिक है। 

श्रम आपूर्ति, श्रम बल और कार्यबल

श्रम आपूर्ति

  • एक विशेष समय पर एक निश्चित मजदूरी पर काम करने के लिए इच्छुक श्रमिकों की संख्या को श्रम आपूर्ति कहा जाता है
  • इसे मुख्य रूप से काम के घंटों एवं उस समय के लिए प्रदान की गई मजदूरी के आधार पर मापा जाता है

श्रम बल

  • श्रम बल से अभिप्राय मजदूरों की संख्या से है जो काम कर रहे हैं या काम करने के इच्छुक है इसका मजदूरी की दर से कोई संबंध नहीं है। 

कार्यबल

  • कार्यबल में मुख्य रूप से उन श्रमिकों को शामिल किया जाता है जो काम कर रहे हैं इसमें उन श्रमिकों को शामिल नहीं किया जाता तो काम करने के इच्छुक हैं। 
  • कार्यबल = कुल श्रम बल – काम करने के लिए इच्छुक परंतु कामना करने वाले मजदूरों की संख्या

बेरोजगार व्यक्तियों की संख्या = श्रम बल – कार्यबल

बेरोजगारी दर =बेरोजगारों की संख्या / कुल कार्य बल × 100

भारत में कार्यबल

  • भारत में 40 करोड़ के आसपास श्रमिक है। 
  • इनमें से 70% श्रमिक पुरुष एवं 30% श्रमिक महिलाएं हैं। 
  • कुल श्रमबल का 70% गांव में जबकि 30% शहरों में केंद्रित है
    • चंबल में कुल श्रमबल का 70% गांव में केंद्रित होने के बावजूद भी ग्रामीण क्षेत्र का भारतीय GDP में योगदान अत्यंत कम है ऐसा इसलिए है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिक मुख्य रूप से प्राथमिक कार्य में लगे हुए हैं और इसी वजह से उनकी आय शहरी क्षेत्रों के मुकाबले कम है। 
  • यही कारण है कि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में अत्यंत गरीबी देखने को  मिलती हैं। 
  • ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं का प्रतिशत लगभग 41.8 जबकि शहरों में 35.31 है। 
  • ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं का श्रम प्रतिशत ज्यादा होने का कारण  ग्रामीण क्षेत्रों में फैली गरीबी है जिस वजह से महिलाओं को श्रम करना पड़ता है। 
  • वहीं दूसरी तरफ शहरी क्षेत्र में महिलाएं साक्षर तो हैं परंतु उनके कार्य करने या ना करने का फैसला उनके परिवार द्वारा किया जाता है, जिस वजह से उनका योगदान शहरी क्षेत्र के श्रमबल मे कम है। 

भागीदारी की दर 

भागीदारी की दर का अर्थ है उत्पादन प्रक्रिया में भाग लेने वाले लोगों की जनसंख्या एवं देश की कुल जनसंख्या का अनुपात। 

भागीदारी दर=कुल कार्य बंद / कुल जनसंख्या × 100

भारत में भागीदारी की दर

  • 2017-18 के आंकड़ों के अनुसार भारत के शहरी क्षेत्र में भागीदारी की दर लगभग 33 पॉइंट 9 परसेंट है। 
  • वहीं दूसरी तरफ ग्रामीण क्षेत्रों में 35 परसेंट है। 
  • इसमें से शहरी क्षेत्रों में 53 परसेंट पुरुष 14 पॉइंट 2 परसेंट महिलाएं हैं जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 51 पॉइंट 7 परसेंट पुरुष एवं 17 पॉइंट 5 परसेंट महिलाएं हैं। 
  • पूरे देश की भागीदारी दर लगभग 34 पॉइंट 7 परसेंट है। 
  • भारत में भागीदारी दर  कि इस स्थिति के निम्नलिखित कारण है:
    • उच्च निर्भरता अनुपात 
    • कम उत्पादकता
    • ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी की उच्च दर

व्यावसायिक संरचना/कार्यबल वितरण

व्यावसायिक संरचना तथा कार्यबल  वितरण से अभिप्राय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत कार्यबल के प्रतिशत से है। 

भारत  व्यावसायिक संरचना

  • भारत के कुल कार्यबल का लगभग 48.8 प्रतिशत हिस्सा प्राथमिक क्रियाओ में कार्यरत है। 
  • कुल कार्यबल का लगभग 24.7% हिस्सा द्वितीयक क्षेत्र में कार्यरत है। 
  • जब भी कुल कार्यबल का लगभग 31.5% हिस्सा तृतीयक क्रियाओं में कार्यरत है। 

नोट: उपरोक्त आंकड़ों के आधार पर हम कह सकते हैं कि

  • उत्पादकता एवं मजदूरी कम होने के बावजूद भी भारत में कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा प्राथमिक क्षेत्र में कार्यरत है भारतीय अर्थव्यवस्था के पिछड़ेपन को दर्शाता है। 
  • ऐसा होने का एक मुख्य कारण यह भी है कि द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराने में असफल रहे हैं। 
  • द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र में कार्यरत मजदूरों की संख्या में एक बड़ा हिस्सा शहरी मजदूरों का है यह दर्शाता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रों का विकास निम्न रहा है। 
  • वैश्वीकरण के कारण भारत में व्यापार एवं वाणिज्य क्षेत्र का विकास तो हुआ है परंतु इसका प्रभाव शहरी क्षेत्रों में ज्यादा देखने को मिलता है। 
  • महिला श्रमिकों का अधिकांश प्रतिशत प्राथमिक क्षेत्रों में कार्यरत है, जो महिला श्रमिकों के पास उपलब्ध अवसरों की कमी को दर्शाता है। 

रोजगार विहीन वृद्धि 

जब GDP को श्रम के रोजगार की तुलना में प्रौद्योगिकी के माध्यम से अधिक अनुभव किया जाता है तो एक अर्थव्यवस्था में रोजगा विहीन वृद्धि देखी जाती है।

  • भारत रोजगार विहीन विकास का अनुभव करता है, क्योंकि विकास कुशल प्रौद्योगिकी के माध्यम से प्राप्त किया जाता है, न कि श्रम के अधिक उपयोग से।

कार्यबल का निरसन और सूचना

कैजुअलाइजेशन का मतलब एक ऐसी स्थिति से है जहां कुल कार्यबल में आकस्मिक रूप से काम पर रखे गए कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि होती है। भारत में ऐसा होने के कारण:

  • ग्रामीण क्षेत्रों में प्रच्छन्न बेरोजगारी और
  • शहरी क्षेत्रों में प्रवास जहां वे केवल दिहाड़ी मजदूर या आकस्मिक श्रमिक के रूप में काम करते हैं।

अनौपचारिकीकरण एक ऐसी स्थिति है जहां कार्यबल औपचारिक में घटता है और अनौपचारिक क्षेत्र में बढ़ता है और इसे निम्न में वर्गीकृत किया जा सकता है:

  • औपचारिक क्षेत्र का रोजगार
  • अनौपचारिक क्षेत्र का रोजगार

औपचारिक क्षेत्र

अनौपचारिक क्षेत्र

  • संगठित क्षेत्र भी कहा जाता है
  • असंगठित क्षेत्र भी कहा जाता है
  • सरकार। विभाग, सार्वजनिक और निजी उद्यम जो 10 या अधिक श्रमिकों को काम पर रखते हैं
  • ऐसे उद्यम जो 10 से कम श्रमिकों को काम पर रखते हैं।
  • यहां के श्रमिकों को औपचारिक श्रमिक कहा जाता है
  • यहां के श्रमिकों को अनौपचारिक श्रमिक कहा जाता है
  • ग्रेच्युटी, पेंशन आदि जैसी सामाजिक सुरक्षा हो,
  • ऐसी कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं।
  • ट्रेड यूनियन बना सकते हैं
  • ट्रेड यूनियनों का गठन नहीं किया जा सकता है।

बाजार अर्थव्यवस्था और औपचारिकता एक दूसरे से संबंधित हैं।

बेरोजगारी

बेरोजगारी से भी अभिप्राय एक ऐसी स्थिति से है, जिसमें एक व्यक्ति दर पर काम करना भी चाहता है और कर भी सकता है परंतु उसे रोजगार नहीं मिलता। 

 

भारत में बेरोजगारी के प्रकार

भारत में बेरोजगारी को निम्नलिखित भागों में बांटा जाता है

  • ग्रामीण बेरोजगारी:

    • प्रच्छन्न बेरोजगारी/अदृश्य बेरोज़गारी  – एक ऐसी स्थिति जिसमें किसी कार्य में आवश्यकता से अधिक मजदूर लगे होते हैं प्रच्छन्न अथवा अदृश्य बेरोज़गारी कहलाती है। 
      • उदाहरण के लिए : भूमि का टुकड़ा जिस पर कृषि करने के लिए 2 लोगों की आवश्यकता है परंतु उसमें चार लोग कार्यरत है। 
    • मौसमी बेरोजगारी – वह  बेरोजगारी जो  साल के कुछ महीनों में होती है मौसमी बेरोजगारी कहलाती है
    • भारत में ऐसा मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र में होता है क्योंकि कृषि एक मौसमी व्यवसाय है
  • शहरी बेरोजगारी 

    • औद्योगिक बेरोजगारी – इसमें मुख्य रूप से उन निरक्षर बेरोजगार व्यक्तियों को शामिल किया जाता है जो उद्योगों आदि में काम करने के इच्छुक हैं परंतु उन्हें  कार्य नहीं मिल पाता
    • इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं
      • जनसंख्या की तीव्र वृद्धि
      • शहरी क्षेत्र में उद्योगों का जमाव 
      • प्रौद्योगिकी का विकास
    • शिक्षित बेरोजगारी -इसमें मुख्य रूप से शिक्षित एवं बेरोजगार श्रमिकों को शामिल किया जाता है जो उद्योगों में काम करने के इच्छुक हैं परंतु उन्हें  काम नहीं मिल पाता
  • अन्य 

    • खुली बेरोजगारी – इस बेरोजगारी के अंदर  उन श्रमिकों को शामिल किया जाता है जो प्रचलित मजदूरी दर पर काम करने की इच्छुक है और काम कर भी सकते हैं परंतु उन्हें रोजगार नहीं मिलता
    • संरचनात्मक बेरोजगारी – उत्पादन के तरीके एवं अर्थव्यवस्था की संरचना में होने वाले परिवर्तन की वजह से उत्पन्न हुई बेरोजगारी को संरचनात्मक बेरोजगारी कहते हैं
    • अल्परोजगार – वह स्थिति जिसमें कर्मचारी को पूर्णकालिक रोजगार नहीं मिल पाता अल्प रोजगार के लाता है
    •  उदाहरण के लिए अंशकालिक काम करने वाला एक श्रमिक जो अधिक काम करना चाहता है परन्तु उसे काम नहीं मिल पता 
    • इसे दो भागो में बाटा जाता है 
      • दृश्य बेरोज़गारी
        • इसमें उन मजदूरों को शामिल किया जाता है जिनके लिए निर्धारित घंटों से कम काम उपलब्ध है  
      • अदृश्य बेरोज़गारी 
        • इसमें उन बेरोज़गार व्यक्तियों को शामिल किया जाता है जो अपनी कुशलता से कम काम कर रहे है एवं अपनी कुशलता के अनुरूप काम करके वह अधिक लाभ कमा सकते हैं
    • घर्षण बेरोजगारी – यह बेरोजगारी की वह  स्थिति है जिसमें एक व्यक्ति नया व्यवसाय ढूंढने के दौरान बेरोजगार रहता है
    • चक्रीय बेरोजगारी – अर्थव्यवस्था में होने वाले परिवर्तन के कारण उत्पन्न बेरोजगारी को  चक्रीय बेरोजगारी कहते हैं

भारत में बेरोजगारी के कारण

  • धीमी आर्थिक वृद्धि
  • जनसँख्या विस्फोट 
  • अविकसित कृषि क्षेत्र 
  • दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली 
  • उद्योगों का अपूर्ण विकास 
  • मौसमी व्यवसाय – कृषि
  • कुटीर एवं लघु उद्योगों का पतन 
  • संयुक्त परिवार प्रणाली
  • कम बचत और निवेश
  • श्रम की सीमित गतिशीलता
  • अपर्याप्त रोज़गार नियोजन 
  • निम्न पूंजी निर्माण 

बेरोजगारी के परिणाम 

  • आर्थिक परिणाम:
    • जनशक्ति का अपूर्ण उपयोग 
    • निम्न पूंजी निर्माण 
    • निम्न उत्पादकता 
    • आसमान आर्थिक विकास 
    • आर्थिक विभाजन 
  • सामाजिक परिणाम:
    • जीवन की निम्न गुणवत्ता
    • असमानता 
    • सामाजिक अशांति 
    • वर्ग संघर्ष 
    • सामाजिक सम्मान की असमानता 

बेरोजगारी की समस्या का समाधान:

  • उत्पादन में वृद्धि 
    • उच्च निवेश 
    • स्वरोज़गार को बढ़ावा 
    • व्यावसायिक शिक्षा का विकास 
    • श्रम गहन तकनीक का प्रयोग 
    • सहकारी उद्योग
  • जनसंख्य वृद्धि पर नियंत्रण
  • लघु व कुटीर उद्योगों का विकास
  • आधारिक संरचना में सुधार
  • विशेष रोजगार कार्यक्रम
  • तीव्र औद्योगीकरण

सरकार द्वारा उठाये गए कदम 

  • महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम। (मनरेगा)
  • स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना।
  • प्रधानमंत्री रोजगार योजना।
  • स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना|

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