एवरेस्ट मेरी शिखर यात्रा (CH- 2) Detailed Summary || Class 9 Hindi स्पर्श (CH- 2) ||

पाठ – 2

एवरेस्ट मेरी शिखर यात्रा

In this post we have given the detailed notes of Class 9 Hindi chapter 2 एवरेस्ट मेरी शिखर यात्रा These notes are useful for the students who are going to appear in Class 9 board exams

इस पोस्ट में कक्षा 9 के हिंदी के पाठ 2 एवरेस्ट मेरी शिखर यात्रा के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 9 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 9
SubjectHindi (स्पर्श)
Chapter no.Chapter 2
Chapter Nameएवरेस्ट मेरी शिखर यात्रा
CategoryClass 9 Hindi Notes
MediumHindi
Class 9 Hindi Chapter 2 एवरेस्ट मेरी शिखर यात्रा

पाठ 2, एवरेस्ट मेरी शिखर यात्रा

-बचेंद्री पाल

सारांश

लेखिका बचेंद्री पाल एवरेस्ट विजय के जिस अभियान दल में एक सदस्य थीं, लेखिका उस अभियान दल के साथ 7 मार्च, 1984 को दिल्ली से काठमांडू के लिए हवाई जहाज़ से गयी। एक मजबूत अग्रिम दल  हमारे पहुचने से पहले ‘बेस कैम्प’ पहुँच गया जो उस उबड-खाबड़ हिमपात के रास्ते को साफ कर सके, लेखिका एक स्थान का जिक्र किया जिसका नाम नमचे बाज़ार है और वहाँ से एवरेस्ट की प्राकृतिक छटा का बहुत सुंदर निरीक्षण किया जा सकता है। लेखिका ने बहुत भारी बड़ा सा बर्फ का फूल (प्लूम) देखा जो उन्हें आश्चर्य में डाल दिया। लेखिका केअनुसार वह बर्फ़ का फूल 10 कि.मी. तक लंबा हो सकता था।

इस अभियान दल के सदस्य पैरिच नामक स्थान पर 26 मार्च को पहुँचे, जहाँ से आरोहियों और काफ़िलों के दल पर प्राकृतिक आपदा मँडराने लगी। यह संयोग की बात था कि 26 मार्च को अग्रिम दल में शामिल प्रेमचंद पैरिच लौट आए थे। उनसे खबर मिली कि 6000 मी. की ऊँचाई पर कैंप-1 तक जाने का रास्ता पुरी तरह से साफ़ कर दिया गया है। दूसरे-तीसरे दिन पार कर चौथे दिन दल के सदस्य अंगदोरजी, गगन बिस्सा और लोपसांग साउथ कोल पहुंच गए। 29 अप्रैल को 7900 मीटर की ऊँचाई पर उन लोगों ने कैंप-4 लगाया। लेखिका 15-16 मई, 1984 को बुद्ध पूर्णिमा के दिन ल्होत्से की बर्फीली सीधी ढलान पर लगाए गए सुंदर रंग के नाइलोन के बने टेंट के कैंप-3 में थी। कैंप में 10 और व्यक्ति थे। साउथ कोल कैंप पहुँचने पर लेखिका ने अपनी महत्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी शुरू कर दी। सारी तैयारिओं के बीच अभियान चल रही थी, पर्वतारोही दल आगे बढ़ता रहा और 23 मई, 1984 दोपहर के एक बजकर सात मिनट पर लेखिका एवरेस्ट की चोटी पर पहुँच गई।

एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी होकर लेखिका ने अद्भुत अनुभव किया। लेखिका ने उन छोटी-छोटी भावों को भी लिपिबद्ध किया, जिन भावों को अभिव्यक्त कर पाना बहुत कठिन है। इस सफलता के बाद लेखिका को बहुत सारी बधाईयाँ मिली। लेखिका ने उस स्थान को फरसे से काटकर चौड़ा किया, जिस पर वह खड़ी हो सके। उन्होंने वहा राष्ट्रध्वज फहराया, और कुछ संक्षिप्त पूजा-अर्चना भी किया । विजय दल का वर्णन किया,लेखिका ने वर्णनात्मक शैली को एकरूप बनाए रखा कि पाठक को इन घटनाओं का वर्णन आँखों देखा दृश्य जैसा लगने लगा।

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