पाठ – 16
प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंध
In this post we have given the detailed notes of class 10 Science chapter 16 Sustainable Management of Natural Resources in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 10 board exams.
इस पोस्ट में कक्षा 10 के विज्ञान के पाठ 16 प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंध के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 10 में है एवं विज्ञान विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board, CGBSE Board, MPBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 10 |
Subject | Science |
Chapter no. | Chapter 16 |
Chapter Name | प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंध (Sustainable Management of Natural Resources) |
Category | Class 10 Science Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
Chapter – 16 प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन
प्राकृतिक संसाधन
वे संसाधन जो हमें पृकृति ने दिए हैं और जो जीवों के द्वारा इस्तेमाल किए जाते हैं|
प्राकृतिक संसाधनों का उदाहरण
मिटटी, जल, कोयला, पेट्रोलियम, वन्य जीव और वन इत्यादि|
प्रदूषण
प्राकृतिक संसाधनों का दूषित होना प्रदुषण कहलाता है|
प्रदुषण के प्रकार :
- जल प्रदुषण
- मृदा प्रदूषण
- वायु प्रदुषण
पर्यावरण समस्याएँ :– पर्यावरण समस्याएँ वैश्विक समस्याएँ हैं तथा इनके समाधान अथवा परिवर्तन में हम अपने आपको असहाय पाते हैं इनके लिए अनेक अंतर्राष्ट्रीय कानून एवं विनियमन हैं तथा हमारे देश में भी पर्यावरण संरक्षण हेतु अनेक कानून हैं। अनेक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठन भी पर्यावरण संरक्षण हेतु कार्य कर रहे हैं।
प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन की आवश्यकता :-
- प्राकृतिक संसाधनों के संपोषित विकास लिए|
- विविधता को बचाने के लिए|
- पारिस्थितिक तंत्र को बचाने के लिए|
- प्राकृतिक संसाधनों को दूषित होने से बचाने के लिए|
- संसाधनों को समाज के सभी वर्गों में उचित वितरण और शोषण से बचाना|
संसाधनों के दोहन का अर्थ :- जब हम संसाधनों का अंधाधुन उपयोग करते है तो बडी तीव्रता से प्रकृति से इनका हा्रास होने लगता है। इससे हम पर्यावरण को क्षति पहुँचाते है। जब हम खुदाई से प्राप्त धातु कर निष्कर्षण करते है तो साथ ही साथ अपशिष्ट भी प्राप्त होता है जिनका निपटारा नहीं करने पर पर्यावरण को प्रदूषित करता है। जिसके कारण बहुत सी प्राकृतिक आपदाएँ होती रहती है| ये संसाधन हमारे ही नहीं अपितु अगली कई पिढियों के भी है।
गंगा कार्य परियोजना
यह कार्ययोजना करोड़ों रूपयों का एक प्रोजेक्ट है। इसे सन् 1985 में गंगा स्तर सुधारने के लिए बनाया गया।
गंगा कार्य परियोजना का उदेश्य :-
- गंगा के जल की गुणवता बहुत कम हो गई थी|
- गंगा के जल स्तर सुधारने के लिए|
जल की गुणवता जाँचने के तरीके :-
- जल का pH जो आसानी से सार्व सूचक की मदद से मापा जा सकता है।
- जल में कोलिफार्म जीवाणु की उपस्थिति जो मानव की आंत्र में पाया जाता है| इसकी उपस्थिति जल का संदूषित होना दिखाता है।
तीन R का अर्थ और महत्त्व :- तीन R का अर्थ है (कम करना), (पुन: चक्रण), (पुन: प्रयोग) है|
(कम प्रयोग) :- संसाधनों के कम से कम प्रयोग कर व्यर्थ उपयोग रोक सकते है कम उपयोग से प्रदुषण भी कम फैलता है|
(पुन: चक्रण) :- प्लास्टिक, कागज, काँच, धातु की वस्तुएँ आदि का (पुनः चक्रण) कर उपयोगी वस्तुएँ बनाना चाहिए। जल्द समाप्त होने वाली संसाधनों को बचाया जा सके और ये पर्यावरण को प्रदूषित न कर सके। यू ही फेंक देने से ये पर्यावरण में प्रदूषण फैलाती हैं।
संपोषित विकास
संपोषित विकास की संकल्पना से तात्पर्य है ऐसा विकास जो पर्यावरण को बिना नुकसान पहुँचाए मनुष्य की वर्त्तमान अवश्यकातों की पूर्ति और विकास के साथ साथ भावी संतति के लिए संसाधनों का संरक्षण भी करती है।
संपोषित विकास का उदेश्य :-
- मनुष्य की वर्तमान आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति एवं विकास को प्रोत्साहित करना|
- पर्यावरण को नुकसान से बचाना और भावी पीढ़ी के लिए संसाधनों का संरक्षण करना|
- पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास को बढ़ाना|
प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन करते समय किन-किन बातों पर ध्यान देना चाहिए :
- दीर्घकालिक दृष्टिकोण : ताकि ये संसाधन अगली पीढ़ियों तक उपलब्ध हो सके|
- इन्हें दोहन या शोषण से बचाया जा सके|
- यह भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि इनका वितरण सभी वर्गों में सामान रूप से हो न कि मात्र मुटठी भर अमीर और शक्तिशाली लोगों को इनका लाभ मिले|
- संपोषित प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन में अपशिष्टों के सुरक्षित निपटान की भी व्यवस्था होनी चाहिए।
वन्य एवं वन्य जीवन
वन जैव विविधता के तप्त स्थल है :- वास्तव में केवल वन ही एक ऐसा स्थल है जिसे जैव विविधता का तप्त स्थल कहा जा सकता है क्योंकि वनों में जैव विविधता के अनेकों उदाहरण संरक्षित है| ये उस स्थल के सभी प्राणीजात और वनस्पति जात को न केवल प्राकृतिक संरक्षण प्रदान करता है अपितु वन उनके वृद्धि और विकास के लिए पोषण प्रदान करता है|
जैव विविधता :- जैव विविधता किसी एक क्षेत्र में पाई जाने वाली विविध स्पीशीज की संख्या है जैसे पुष्पी पादप, पक्षी, कीट, सरीसृप, जीवाणु और कवक आदि।
जैव विविधता के नष्ट होने के परिणाम :- प्रयोगों और वस्तुस्थिति के अध्ययन से हमें पता चलता है कि विविधता के नष्ट होने से पारिस्थितिक स्थायित्व भी नष्ट हो सकता है। क्योंकि किसी पारिस्थितिक तंत्र में उपस्थिति जैव और अजैव घटक उस पारिस्थितिक तंत्र को संतुलन प्रदान करते हैं| जैसे ही ये जैव विविधतता नष्ट होती है पारिस्थितिक तंत्र में असंतुलन उत्पन होता है और यह नष्ट हो जाता है|
तप्त स्थल :– ऐसा क्षेत्र जहा अनेक प्रकार की संपदा पाई जाती है।
दावेदार :- ऐसे लोग जिनका जीवन, कार्य किसी चीज पर निर्भर हो, वे उसके दावेदार होते हैं।
वनों के दावेदार
- स्थानीय लोग :- वन के अंदर एवं इसके निकट रहने वाले लोग अपनी अनेक आवश्यकताओं के लिए वन पर निर्भर रहते हैं।
- सरकार और वन विभाग :- सरकार और वन विभाग जिनके पास वनों का स्वामित्व है तथा वे वनों से प्राप्त संसाधनों का नियंत्रण करते हैं।
- वन उत्पादों पर निर्भर व्यवसायी :- ऐसे छोटे व्यवसायी जो तेंदु पत्ती का उपयोग बीड़ी बनाने से लेकर कागज मिल तक विभिन्न वन उत्पादों का उपयोग करते हैं, परंतु वे वनों के किसी भी एक क्षेत्र पर निर्भर नहीं करते।
- वन्य जीव और पर्यावरण प्रेमी :- वन जीवन एवं प्रकृति प्रेमी जो प्रकृति का संरक्षण इसकी आद्य अवस्था में करना चाहते हैं।
मानव गतिविधियाँ जो वनों को प्रभावित करती हैं :-
- स्थानीय लोग ईधन के लिए जलावन की काफी मात्रा में उपयोग करते है।
- झोपड़ी बनाने के लिए, भोजन एकत्र करने के लिए एवं भण्डारण के लिए लकड़ी का प्रयोग करते है।
- खेती के औजार एवं अन्य उपयोगी साधन मानव वन से प्राप्त करते हैं।
- औषधि और पशुओं का चारा वन से प्राप्त करते हैं।
अम्लीय वर्षा का वनों एवं कृषि पर प्रभाव
जब वर्षा होती हैं तो सल्फर तथा नाइट्रोजन के ऑक्साइड बिजली की चमक के कारण पानी में घुल जाते हैं जो तेजाब के रूप में वर्षा के साथ गिरते हैं इसे अम्लीय वर्षा कहते है। ये कृषि उत्पादकता तथा वन को प्रभावित करते हैं तथा जब ये अम्ल हरे पत्तों पर पड़ते हैं तो पत्ते के साथ साथ पौधा भी सूख जाता हैं।
संसाधनों के दोहन
जब हम संसाधनों का अंधाधुन उपयोग करते है तो बडी तीव्रता से प्रकृति से इनका ह्रास होने लगता है। इसे ही संसाधनों का दोहन कहते है|
संसाधनों के दोहन से होने वाली हानियाँ :-
- इससे हम पर्यावरण को क्षति पहुँचाते है।
- जब हम खुदाई से प्राप्त धातु कर निष्कर्षण करते है तो साथ ही साथ अपशिष्ट भी प्राप्त होता है जिनका निपटारा नहीं करने पर पर्यावरण को प्रदूषित करता है।
- ये संसाधन हमारे ही नहीं अपितु अगली कई पिढियों के भी है, हम आने वाली कई पीढ़ियों को उनके हक़ से वंचित करते है।
चिपकों आन्दोलन
यह आंदोलन गढ़वाल के ‘रेनी’ नामक गाँव में 1970 के प्रारम्भिक दशक में हुआ था। लकड़ी के ढेकेदारों ने गाँव के समीप के वृक्षों को काट रहे थे। उस गाँव में उस वक्त पुरूष नहीं थे। इस बात से निडर महिलाँए फौरन वहाँ पहुँच गई और पेड़ो कों अपनी बाहों पकड़कर चिपक गई। अंततः ठेकेदार को विचलित होकर काम रोकना पड़ा। यह आंदोलन तीव्रता से बहुत से समुदायों में फ़ैल गया और सरकार को वन संसाधनों के उपयोग के लिए प्राथमिकता निश्चित करने पर पुनः विचार करने पर मजबूर कर दिया। यह आंदोलन चिपको आंदोलन के नाम से प्रसिद्ध हैं।
अमृता देवी विश्नोई राष्ट्रीय पुरस्कार :- अमृता देवी विश्नोई राष्ट्रीय पुरस्कार भारत सरकार द्वारा जैव सरंक्षण के लिए दिया जाता हैं। यह पुरस्कार अमृता देवी विश्नोई की याद में दिया जाता हैं जिन्होंने 1731 में राजस्थान के जोधपुर के पास खेजराली गाँव में खेजरी वृक्षों को बचाने हेतु 363 लोगों के साथ अपने आप को बलिदान कर दिया।
वनों पर निर्भर उद्योग :- बीडी उद्योग, टिम्बर (इमारती लकड़ी), कागज, लाख तथा खेल के समान आदि|
वनों के संरक्षण में स्थानीय लोगों की भागीदारी :- पश्चिम बंगाल के मिदनापुर के अराबाड़ी वन क्षेत्र में एक योजना प्रारंभ की। यहाँ वन विभाग के एक दूरदर्शी अधिकारी ए.के बनर्जी ने ग्रामीणों को अपनी योजना में शामिल किया तथा उनके सहयोग से बुरी तरह से क्षतिग्रस्त साल के वन की 1272 हेक्टेयर क्षेत्र का संरक्षण किया। इसके बदले में निवासियों को क्षेत्र की देखभाल की जिम्मेदारी के लिए रोजगार मिला साथ ही उन्हें वहाँ से उपज की 25 प्रतिशत के उपयोग का अधिकार भी मिला और बहुत कम मूल्य पर ईंधन के लिए लकड़ी और पशुओं को चराने की अनुमति भी दी गई। स्थानीय समुदाय की सहमति एवं सक्रिय भागीदारी से 1983 तक अराबाड़ी का सालवन समृद्ध हो गया तथा पहले बेकार कहे जाने वाले वन का मूल्य 12.5 करोड़ आँका गया।
जल संग्रहण
जल संग्रहण :- इसका मुख्य उद्देश्य है भूमि एवं जल के प्राथमिक स्रोतों का विकास करना।
वर्षा जल संचयन :- वर्षा जल संचयन से वर्षा जल को भूमि के अंदर भौम जल के रूप में संरक्षित किया जाता है।
जल संग्रहण की देशी विधियाँ :-
- कुआँ
- ताल
- कूल्ह
- तालाब
बांध :– बांध में जल संग्रहण काफी मात्रा में किया जाता है जिसका उपयोग सिंचाई में ही नहीं बल्कि विद्युत उत्पादन में भी किया जाता है। बड़े-बड़े नदियों पर बांध बनाकर बहुउद्देश्यीय नदी परियोजनाएँ चलायी जाती है| जिसके कई लाभ हैं|
नदियों पर बाँध :-
- टिहरी बांध – नदी भगीरथी (गंगा)
- सरदार सरोवर बांध – नर्मदा नदी
- भाखड़ा नांगल बांध – सतलुज नदी।
बांधों को लेकर विरोध और आन्दोलन :- गंगा नदी पर बना टिहरी बाँध को लेकर कई वर्षों तक आन्दोलन हुआ| नर्मदा बचाओं आन्दोलन हुआ जो नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर बाँध को लेकर विरोध हुआ|
बांधों के लाभ :-
- सिंचाई के लिए पर्याप्त जल सुनिश्चित करना।
- विद्युत उत्पादन
- क्षेत्रों में जल का लगातार वितरण करना।
- पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकास
- मत्स्य पालन
बांधों की हानियाँ :-
- कृषि योग्य भूमि का ह्रास और स्थानीय लोगों का विस्थापन
- पारिस्थितिक तंत्र का असंतुलन
- जैव विविधता को हानि होती है|
- बाढ़ का खतरा
- जीवों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो जाता है|
भौम जल के लाभ :-
- यह वाष्प बनकर नहीं उड़ता हैं।
- भौम जल छोटे-छोटे जलाशयों के जल स्तर मे सुधार लाता हैं।
- पौधों को नमी पहुँचाता हैं।
- यह मच्छरों एवं जंतुओं के अपशिष्ट से सुरक्षित रहता हैं।
- यह जल संदूषण से बचा रहता है|
चैक डैम :- चैक डैम जल संग्रहण के लिए अर्धचंद्रकार मिट्टी के गढ्ढे अथवा निचले स्थान पर कंकरीट अथवा छोटे कंकड़ पत्थरों द्वारा बनाए जाते हैं। ये वर्षा ऋतु में पूरी तरह भर जाने वाली नालियाँ या प्राकृतिक जलमार्ग पर बनाए जाते हैं।
जल संभर प्रबंधन :– जल संभर प्रबंधन में मिट्टी एवं जल संरंक्षण पर जोर दिया जाता हैं जिससे कि जैव मात्रा उत्पादन में वृद्धि हो सके। इसका मुख्य उद्वेश्य भूमि एवं प्राथमिक स्त्रोतों का विकास, द्वितीयक संसाधन पौधा एवं जंतुओं का उत्पादन इस प्रकार करना जिसे पारिस्थितिक असंतुलन पैदा ना हो।
जल प्रदुषण का कारण :-
- जलाशयों में उद्योगों का कचरा डालना।
- जलाशयों के नजदीक कपड़े धोना या माल-मूत्र डालना।
- जलाशयों के अवांछित पदार्थ डालना।
- नदियों में मरे हुए जीवों को बहाना|
जल प्रदूषण के लिए उत्तरदायी मनुष्यों के क्रियाकलाप :-
- घर एवं कारखानों (कागज उद्ध्योग) द्वारा छोड़ा गया विषैला एवं रसायन युक्त पानी|
- कृषि कार्य में उपयोग होने वाले पीड़कनाशी या उर्वरक आदि का जलशयों में मिल जाना (iii) नदियों में मरे हुए जीवों को प्रवाहित करना आदि|
कोयला और पेट्रोलियम
जीवाश्मी ईंधन :- कोयला और पेट्रोलियम का महत्व
- जीवाश्म ईंधन अर्थात कोयला एवं पेट्रोलियम जो ऊर्जा के प्रमुख स्रोत हैं।
- औद्योगिक क्रांति के समय से हम उत्तरोत्तर अधिक ऊर्जा की खपत कर रहे हैं।
- इस ऊर्जा का प्रयोग हम दैनिक ऊर्जा आवश्यकता की पूर्ति तथा जीवनोपयोगी पदार्थों के उत्पादन हेतु कर रहे हैं।
- ऊर्जा संबंधी यह आवश्यकता हमें कोयला तथा पेट्रोलियम से प्राप्त होती है।
- आज भी हम अपनी ऊर्जा खपत का 70 % हिस्सा कोयला और पेट्रोलियम पर निर्भर हैं|
कोयला और पेट्रोलियम जैसे ईंधनों का संरक्षण :- कोयला और पेट्रोलियम जैसे ईंधनों का संरक्षण की आवश्यकता है क्योंकि
- पेट्रोलियम एवं कोयला लाखों वर्ष पूर्व जीवों की जैव-मात्रा के अपघटन से प्राप्त होते हैं।
- अतः चाहे हम जितनी भी सावधानी से इनका उपयोग करें फिर भी यह स्रोत भविष्य में समाप्त हो जाएँगे। अतः तब हमें ऊर्जा के विकल्पी स्रोतों की खोज करने की आवश्यकता होगी।
जीवाश्मी ईंधनों के उपयोग के होने वाली हानियां
(i) वायु प्रदुषण :- कोयला एवं पेट्रोलियम जैव-मात्रा से बनते हैं जिनमें कार्बन के अतिरिक्त हाइड्रोजन, नाइट्रोजन एवं सल्फर (गंधक) भी होते हैं। जब इन्हें जलाया (दहन किया) जाता है तो कार्बनडाइऑक्साइड, जल, नाइट्रोजन के ऑक्साइड तथा सल्फर के ऑक्साइड बनते हैं।
(ii) बीमारियाँ :- अपर्याप्त वायु (ऑक्सीजन) में जलाने पर कार्बन डाइऑक्साइड के स्थान पर कार्बन मोनोऑक्साइड बनाती है। इन उत्पादों में से नाइट्रोजन एवं सल्फर के ऑक्साइड तथा कार्बन मोनोऑक्साइड विषैली गैसें हैं जिससे कई प्रकार की श्वसन संबंधी समस्याएँ उत्पन्न होती है| जैसे – खांसी, दमा और अन्य कई फेंफडे की बिमारियाँ होती हैं|
(iii) वैश्विक ऊष्मन :- कोयला एवं पेट्रोलियम पर विचार करने का एक अन्य दृष्टिकोण यह भी है कि ये कार्बन के विशाल भंडार हैं, यदि इनकी संपूर्ण मात्रा का कार्बन जलाने पर कार्बन डाइऑक्साइड में परिवर्तित हो गया तो वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा अत्यधिक हो जाएगी जिससे तीव्र वैश्विक ऊष्मण होने की संभावना है।
ऊर्जा खपत बचाने या कम करने के उपाय :-
- बस में यात्रा, अपना वाहन प्रयोग में लाना अथवा पैदल/ साइकिल से चलना।
- अपने घरों में बल्ब, फ्रलोरोसेंट ट्यूब का प्रयोग करना।
- लिफ्ट का प्रयोग करना अथवा सीढि़यों का उपयोग करना।
- सर्दी में एक अतिरिक्त स्वेटर पहनना अथवा हीटर या सिगड़ी का प्रयोग करना।
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