अपू के साथ ढाई साल (CH- 13) Detailed Summary || Class 11 Hindi आरोह (CH- 13) ||

पाठ – 13

अपू के साथ ढाई साल

In this post we have given the detailed notes of class 11 Hindi chapter 13 अपू के साथ ढाई साल These notes are useful for the students who are going to appear in class 11 board exams

इस पोस्ट में क्लास 11 के हिंदी के पाठ 13 अपू के साथ ढाई साल के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 11 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 11
SubjectHindi (आरोह)
Chapter no.Chapter 13
Chapter Nameअपू के साथ ढाई साल
CategoryClass 11 Hindi Notes
MediumHindi
Class 11 Hindi Chapter 13 अपू के साथ ढाई साल

Chapter – 13 अपू के साथ ढाई साल

सत्यजित राय

सारांश

अपू के साथ ढाई साल नामक संस्मरण पथेर पांचाली फिल्म के अनुभवों से संबंधित है जिसका निर्माण भारतीय फिल्म के इतिहास में एक बड़ी घटना के रूप में दर्ज है। इससे फिल्म के सृजन और उनके व्याकरण से संबंधित कई बारीकियों का पता चलता है। यही नहीं, जो फिल्मी दुनिया हमें अपने ग्लैमर से चुधियाती हुई जान पड़ती है, उसका एक ऐसा सच हमारे सामने आता है, जिसमें साधनहीनता के बीच अपनी कलादृष्टि को साकार करने का संघर्ष भी है। यह पाठ मूल रूप से बांग्ला भाषा में लिखा गया है जिसका अनुवाद विलास गिते ने किया है।

किसी फिल्मकार के लिए उसकी पहली फिल्म एक अबूझ पहेली होती है। बनने या न बन पाने की अमूर्त शंकाओं से घिरी। फिल्म पूरी होने पर ही फिल्मकार जन्म लेता है। पहली फिल्म के निर्माण के दौरान हर फिल्म निर्माता का अनुभव संसार इतना रोमांचकारी होता है कि वह उसके जीवन में बचपन की स्मृतियों की तरह हमेशा जीवंत बना रहता है। इस अनुभव संसार में दाखिल होना उस बेहतरीन फिल्म से गुजरने से कम नहीं है।

लेखक बताता है कि पथेर पांचाली फिल्म की शूटिंग ढाइ साल तक चली। उस समय वह विज्ञापन कंपनी में काम करता था। काम से फुर्सत मिलते ही और पैसे होने पर शूटिंग की जाती थी। शूटिंग शुरू करने से पहले कलाकार इकट्ठे करने के लिए बड़ा आयोजन किया गया। अपू की भूमिका निभाने के लिए छह साल का लड़का नहीं मिल रहा था। इसके लिए अखबार में विज्ञापन दिया। रासबिहारी एवेन्यू के एक भवन में किराए के कमरे पर बच्चे इंटरव्यू के लिए आते थे। एक सज्जन तो अपनी लड़की के बाल कटवाकर लाए थे। लेखक परेशान हो गया। एक दिन लेखक की पत्नी की नज़र पड़ोस में रहने वाले लड़के पर पड़ी और वह सुबीर बनर्जी ही ‘पथेर पांचाली’ में अपू बना।

फिल्म में अधिक समय लगने लगा तो लेखक को यह डर लगने लगा कि अगर अपू और दुर्गा नामक बच्चे बड़े हो गए तो दिक्कत हो जाएगी। सौभाग्य से वे नहीं बढ़े। फिल्म की शूटिंग के लिए वे पालसिट नामक गाँव गए। वहाँ रेल-लाइन के पास काशफूलों से भरा मैदान था। उस मैदान में शूटिंग शुरू हुई। एक दिन में आधी शूटिंग हुई। निर्देशक, छायाकार, कलाकार आदि सभी नए होने के कारण घबराए हुए थे। बाकी का सीन बाद में शूट करना था। सात दिन बाद वहाँ दोबारा पहुँचे तो काशफूल गायब थे। उन्हें जानवर खा गए। अत: आधे सीन की शूटिंग के लिए अगली शरद ऋतु की प्रतीक्षा करनी पड़ी।

अगले वर्ष शूटिंग हुई। उसी समय रेलगाड़ी के शॉट्स भी लिए गए। कई शॉट्स होने के लिए तीन रेलगाड़ियों से शूटिंग की गई। कलाकार दल का एक सदस्य पहले से ही गाड़ी के इंजन में सवार होता था ताकि वह शॉट्स वाले दृश्य में बायलर में कोयला डालता जाए और रेलगाड़ी का धुआँ निकलता दिख सके। सफेद काशफूलों की पृष्ठभूमि पर काला धुआँ अच्छा सीन दिखाता है। इस सीन को कोई दर्शक नहीं पहचान पाया।

लेखक को धन की कमी से कई समस्याएँ झेलनी पड़ीं। फिल्म में ‘भूलो’ नामक कुत्ते के लिए गाँव का कुत्ता लिया गया। दृश्य में कुत्ते को भात खाते हुए दिखाया जाना था, परंतु जैसे ही यह शॉट शुरू होने को था, सूरज की रोशनी व पैसे-दोनों ही खत्म हो गए। छह महीने बाद पैसे इकट्ठे करके बोडाल गाँव पहुँचे तो पता चला कि वह कुत्ता मर गया था। फिर भूलो जैसा दिखने वाला कुत्ता पकड़ा गया और उससे फिल्म की शूटिंग पूरी की गई। लेखक को आदमी के संदर्भ में भी यही समस्या हुई। फिल्म में मिठाई बेचने वाला है-श्रीनिवास। अपू व दुर्गा के पास पैसे नहीं थे। वे मुखर्जी के घर गए जो उससे मिठाई खरीदेंगे और बच्चे मिठाई खरीदते देखकर ही खुश होंगे। पैसे के अभाव के कारण दृश्य का कुछ अंश चित्रित किया गया। बाद में वहाँ पहुँचे तो श्रीनिवास का देहांत हो चुका था। किसी तरह उनके शरीर से मिलता-जुलता व्यक्ति मिला और उनकी पीठ वाले दृश्य से शूटिंग पूरी की गई।

श्रीनिवास के सीन में भूलो कुत्ते के कारण भी परेशानी हुई। एक खास सीन में दुर्गा व अपू को मिठाई वाले के पीछे दौड़ना होता है तथा उसी समय झुरमुट में बैठे भूलो कुत्ते को भी छलाँग लगाकर दौड़ना होता है। भूलो प्रशिक्षित नहीं था, अत: वह मालिक की आज्ञा को नहीं मान रहा था। अंत में दुर्गा के हाथ में थोड़ी मिठाई छिपा कुत्ते को दिखाकर दौड़ने की योजना से शूटिंग पूरी की गई।

बारिश के दृश्य चित्रित करने में पैसे का अभाव परेशान करता था। बरसात में पैसे नहीं थे। अक्टूबर में बारिश की संभावना कम थी। वे हर रोज देहात में बारिश का इंतजार करते। एक दिन शरद ऋतु में बादल आए और धुआँधार बारिश हुई। दुर्गा व अप्पू ने बारिश में भीगने का सीन किया। ठंड से दोनों काँप रहे थे, फिर उन्हें दूध में ब्रांडी मिलाकर पिलाई गई। बोडाल गाँव में अपू-दुर्गा का घर, स्कूल, गाँव के मैदान, खेत, आम के पेड़, बाँस की झुरमुट आदि मिले। यहाँ उन्हें कई तरह के विचित्र व्यक्ति भी मिले। सुबोध दा साठ वर्ष से अधिक के थे और झोंपड़ी में अकेले रहकर बड़बड़ाते रहते थे। फिल्मवालों को देखकर उन्हें मारने की कहने लगे। बाद में वे वायलिन पर लोकगीतों की धुनें बजाकर सुनाते थे। वे सनकी थे।

इसी तरह शूटिंग के साथ वाले घर में एक धोबी था जो पागल था। वह किसी समय राजकीय मुद्दे पर भाषण देने लगता था। शूटिंग के दौरान उसके भाषण साउंड के काम को प्रभावित करता था। पथेर पांचाली की शूटिंग के लिए लिया गया घर खंडहर था। उसे ठीक करवाने में एक महीना लगा। इस घर के कई कमरों में सामान रखा था तथा उन्हें फिल्म में नहीं दिखाया गया था। भूपेन बाबू एक कमरे में रिकॉर्डिंग मशीन लेकर बैठते थे। वे साउंड के बारे में बताते थे। एक दिन जब उनसे साउंड के बारे में पूछा गया तो आवाज नदारद थी। उनके कमरे से एक बड़ा साँप खिड़की से नीचे उतर रहा था। उनकी बोलती बंद थी। लोगों ने उसे मारने से रोका, क्योंकि वह वास्तुसर्प था जो बहुत दिनों से वहाँ रह रहा था।

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