पाठ – 2
एक दल के प्रभुत्व का दौर
In this post we have given the detailed notes of class 12 Political Science Chapter 2 Ek Dal Ke Prabhutva Ka Daur (Era of One Party Dominance) in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams.
इस पोस्ट में क्लास 12 के राजनीति विज्ञान के पाठ 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर (Era of One Party Dominance) के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं राजनीति विज्ञान विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Political Science |
Chapter no. | Chapter 2 |
Chapter Name | एक दल के प्रभुत्व का दौर (Era of One Party Dominance) |
Category | Class 12 Political Science Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
एक दल के प्रभुत्व का दौर
- पहली समस्या का सामना करने के बाद भारत के सामने दूसरी मुख्य समस्या लोकतंत्र स्थापित करने की थी।
- 15 अगस्त 1947 में आज़ादी प्राप्त करने के बाद भारत ने संविधान निर्माण की प्रक्रिया को पूरा किया। भारतीय संविधान को बनने में 2 साल 11 महीने और 18 दिनों का समय लगा। भारतीय संविधान 26 नवंबर 1949 को बन कर पूरा हुआ और 26 जनवरी 1950 को लागू कर दिया गया। संविधान लागु होने के बाद सबसे बड़ा काम था लोकतंत्र की स्थापना करना ।
- जनवरी 1950 में चुनाव आयोग की स्थापना की गई और सुकुमार सेन देश के पहले चुनाव आयुक्त बने ।
- देश में केवल 16 प्रतिशत लोग ही पढ़े लिखे थे।
- देश की अधिकांश जनसख्या गरीबी से जूझ रही थी
- संचार के साधनो एवं प्रौद्योगिकी का आभाव
- 17 करोड़ मतदाताओं द्वारा 3200 विधायक और 489 संसद चुने जाने थे।
- चुनाव क्षेत्रों का निर्धारण किया जाना था।
- लगभग 3 लाख लोगो को प्रशिक्षित किया गया
- चुनाव क्षेत्रों का सीमांकन किया गया
- मतदाता सूची बनाई गई (प्रत्येक व्यक्ति जो 21 वर्ष से अधिक आयु का था)
- देश में चुनाव प्रचार शुरू हुआ।
- एक हिंदुस्तानी सम्पादक ने इसे “इतिहास का सबसे बड़ा जुआ ” कहा
- ऑर्गेनाइज़र नाम की पत्रिका ने लिखा की “जवाहर लाल नेहरू अपने जीवित रहते ही ये देख लेंगे और पछतायेंगे की भारत में भारत में सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार असफल रहा”
- भारत में पहले आम चुनाव अक्टूबर 1951 से लेकर फरवरी 1952 तक हुए। क्योंकि ज़्यादातर जगहों पर चुनाव
- 1952 में हुए इसीलिए इन्हें 1952 के चुनाव कहा गया।
- भारत में लोकतंत्र सफल रहा।
- लोगो ने बढ़ चढ़ कर चुनाव में हिस्सा लिया
- चुनाव में उम्मीदवारों के बीच कड़ा मुक़ाबला हुआ हारने वाले उम्मीदवारों ने भी परिणाम को सही बताया
- भारतीय जनता ने इस चुनावी प्रयोग को बखूबी अंजाम दिया और सभी आलोचकों के मुँह बंद हो गए।
- चुनावो में कांग्रेस ने 364 सीट जीती और सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी।
- दूसरी सबसे बड़ी पार्टी रही कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया जिसने 16 सीटे जीती
- जवाहर लाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री ।
कांग्रेस का प्रभुत्व
1952 के चुनावो में जहा एक तरफ कांग्रेस को 364 सीटे मिली वही दूसरी सबसे बड़ी पार्टी यानि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया सिर्फ 16 सीटे ही जीत सकी। यह संख्याएँ साफ़ साफ़ कांग्रेस के प्रभुत्व को दर्शाती है। पर ऐसा हुआ क्यों ?
ऐसा हुआ क्योकि –
- सबसे बड़ी एवं सबसे पुरानी पार्टी
- कांग्रेस एक मात्र ऐसी पार्टी थी जिसका संगठन पुरे देश में फैला हुआ था।
- स्वतंत्रता संग्राम की विरासत
- बड़े एवं करिश्माई नेताओ की अगुवाई
- सभी वर्गों का समर्थन और सभी विचारधाराओ का समावेश
कांग्रेस के प्रभुत्व की प्रकृति
भारत में कांग्रेस का शासन एक दल के प्रभुत्व जैसा ही था पर इसकी विशेषता यह थी की यह लोकतान्त्रिक परिस्थितियो में स्थापित हुआ था यानि की लोगो ने कांग्रेस को अपने मर्ज़ी से चुनकर इतने सालो तक शासन करने का मौका दिया था। यह अन्य देशो से पूरी तरह अलग था। अन्य देशो जैसे की क्यूबा, चीन और सीरिया के संविधान में केवल एक ही पार्टी के शासन की व्यवस्था है और दूसरी तरफ म्यामार और बेलारूस जैसे देशो में एक पार्टी का शासन सैन्य कारणों से हुआ। भारत में परिस्तिथि इससे अलग थी भारत में लोकतांत्रिक शासन के द्वारा ही कांग्रेस का प्रभुत्व स्थापित हुआ जो की भारत में कांग्रेस की लोकप्रियता को दर्शाता है।
मुख्य पार्टिया
सोशलिस्ट पार्टी
सोशलिस्ट पार्टी का गठन 1934 में कांग्रेस भीतर ही कुछ नेताओ द्वारा किया गया पर 1948 में जब कांग्रेस ने अपने संविधान में परिवर्तन करके दोहरी नागरिकता को समाप्त किया तो समाजवादियों ने 1948 में अलग से सोशलिस्ट पार्टी बनाई पर इस पार्टी को चुनाव में खास सफलता नहीं मिली।
संस्थापक आचार्य नरेंद्र देव –
अन्य मुख्य नेता- राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण, अशोक मेहता, एम. एस. जोशी, अच्युत पटवर्धन
विचारणारा
- समाजवाद में विश्वास,
- अमीरो और पूंजीपतियों की पार्टी बता कर कांग्रेस की आलोचना की।
भविष्य में जाकर सोशलिस्ट पार्टी का विभाजन हो गया और नई पार्टिया बनी
- किसान मजदूर पार्टी
- प्रजा सोशलिस्ट पार्टी
- संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी:
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया
1917 में हुई रूस की क्रांति से प्रेरित हो कर भारत में भी कई साम्यवादी समूह उभरे। यह वो समूह थे जो देश की समस्याओ का समाधान साम्यवादी विचारधारा द्वारा करना चाहते थे।
1935 तक इन सभी समूहों ने कांग्रेस के अंदर रह के ही कार्य किया और दिसंबर 1941 में कांग्रेस से अलग हो गए और अलग से कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया की स्थापना की।
मुख्य नेता- ई एस नम्बूरीपाद, पी सी जोशी, अजय घोष, ए के गोपालन।
विचारधारा
- यह पार्टी साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित थी।
- इन्होने कहा की 1947 में मिली स्वतंत्रता सच्ची स्वतंत्रता नहीं है।
- 1951 में हिंसक विद्रोह का रास्ता छोड़ चुनाव लड़ा और दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी
विभाजन
1964 में CPI का विभाजन हो गया और दो पार्टिया बनी
- कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (CPI)
- कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी) CPI (M)
स्वतन्त्र पार्टी
स्वतन्त्र पार्टी की स्थापना 1959 में सी राजगोपालाचारी द्वारा की गई
विचारधारा
स्वतन्त्र पार्टी की विचारधारा पूंजीवाद से प्रेरित से थी।
- इस पार्टी के अनुसार सरकार को अर्थव्यवस्था में कम हस्तक्षेप करना चाहिए
- निजी क्षेत्र को छूट देनी चाहिए
- इस पार्टी द्वारा सोवियत संघ से दोस्ती का विरोध किया गया
- अमेरिका से सम्बन्ध बढ़ाने को समर्थन किया
- गुटनिरपेक्षता की नीति का विरोध किया
मुख्य नेता
- सी राजगोपालाचारी
- के एन मुशी
- एन जी रंगा
- मीनू मसानी
भारतीय जनसंघ
भारतीय जनसंघ की स्थापना 1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा की गई।
विचारधारा
- भारतीय जनसंघ की विचारधारा राष्ट्रवाद से प्रेरित थी
- इन्होने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का समर्थन किया
- अंग्रेजी का विरोध किया
- पाकिस्तान को मिला कर अखंड भारत बनाने का समर्थन किया।
- एक देश, एक राष्ट्र, एक संस्कृति का समर्थन किया।
मुख्य नेता
- श्यामा प्रसाद मुखर्जी,
- बलराज मधोक
- दीनदयाल उपाध्याय
समर्थन
दिल्ली, राजस्थान, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश
- 1957 में भारत में दूसरे आम चुनाव हुए इस बार भी स्तिथि पिछली बार की तरह ही रही और कांग्रेस ने लगभग सभी जगह आराम से चुनाव जीत लिए लोक सभा में कांग्रेस को 371 सीटे मिली और जवाहर लाल नेहरू दूसरी बार भारत के प्रधानमंत्री बने पर केरल में कम्युनिस्ट पार्टी का प्रभाव दिखा और कांग्रेस केरल में सरकार नहीं बना पाई।
- 1957 में केरल में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया ने सरकार बनाई और ई एस नम्बूरीपाद मुख्यमंत्री बने पर 1959 में केंद्र सरकार (कांग्रेस) ने संविधान के आर्टिकल 356 का प्रयोग करके इनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया। इस फैसले पर भविष्य में बहुत विवाद भी हुआ।
- 1962 में भारत में तीसरा आम चुनाव हुआ जिसमे फिर से कांग्रेस बड़े आराम से ही लगभग सभी जगहों पर चुनाव जीत गई। इस चुनाव में कांग्रेस ने लोक सभा में 361 सीटे जीती और जवाहर लाल नेहरु तीसरी बार प्रधानमंत्री बने।
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